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पंचतंत्र की कहानियों की रचना आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व भारत के दक्षिण में स्थित तत्कालीन महिलारोप्य नामक नगर में राजा अमरशक्ति के शासनकाल में हुई। राजा अमरशक्ति ने अपने तीन मूर्ख और अहंकारी पुत्रों— बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनंतशक्ति के प्रशिक्षण की जिम्मेदारी सर्वशास्त्रों के ज्ञाता और कुशल ब्राह्मण पंडित विष्णु शर्मा को सौंपी।
राजकुमारों को व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षित करने के लिए पंडित विष्णु शर्मा ने नीतिशास्त्र से संबंधित कथाएँ उन्हें सुनाईं। इन कथाओं में पात्रों के रूप में उन्होंने पशु-पक्षियों का वर्णन किया और अपने विचारों को कथारूप में मुख से व्यक्त कर राजकुमारों को उचित-अनुचित आदि का ज्ञान दिया व व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षित किया।
राजकुमारों का शिक्षण पूरा होने पर पंडित विष्णु शर्मा ने इन कहानियों को पंचतंत्र की प्रेरक कहानियों के रूप में संकलित किया। आज भी इन अमर कथाओं की प्रासंगिकता जस-की-तस बनी हुई है। इनके अध्ययन और अनुकरण द्वारा निश्चित ही नीतिशास्त्र में निपुण हुआ जा सकता है, इसमें जरा भी संदेह नहीं है।
हर आयु के पाठकों के लिए पठनीय, संग्रणीय और अनुकरणीय पुस्तक।
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अनुक्रम
अपनी बात — 5
1. चाल — 9
2. कटी पूँछ — 12
3. काली करतूत — 15
4. रँगा सियार — 19
5. सच्ची मित्रता — 25
6. बिगड़ैल साँड़ — 31
7. चींटी सेना — 34
8. सच्चा राजा — 38
9. मुसीबत में दोस्ती की परख — 41
10. जाल — 44
11. नादान उल्लू — 49
12. झूठी भति — 54
13. ढोल की पोल — 58
14. भाग्य भरोसे — 62
15. स्वार्थ — 66
16. युति से मुति — 70
17. नकल का दुष्परिणाम — 75
18. झूठ-सच — 77
19. बंदर का कलेजा — 80
20. बगुला भगत — 85
21. लोभ बनी मौत — 90
22. परछाईं — 93
23. बहरूप गधा — 97
24. बोलती गुफा — 100
25. कंजूस गीदड़ — 103
26. टोपीवाले बंदर — 106
27. चालाक खटमल — 109
28. मूर्ख बंदर — 112
29. बातूनी का अंत बुरा — 115
30. चुहिया की चुहिया — 118
31. सयाना हंस — 123
32. तीन मछलियाँ — 126
33. चालाक बिल्ली — 130
34. माँ की सीख — 133
35. खरगोश और गजराज — 136
36. बाज ले उड़ा — 141
37. एक शरीर, दो विचार — 144
38. एक और एक ग्यारह — 148
39. चतुराई — 152
40. सयाना कौआ — 156
41. महाचतुरक — 163
42. चतुर खरगोश — 166
43. मददगार — 171
44. गधा का गधा — 176
45. मित्र की परख — 180
46. घंटीधारी ऊँट — 183
47. चापलूस भति — 187
हिंदी के प्रतिष्ठित लेखक महेश दत्त शर्मा का लेखन कार्य सन् 1983 में आरंभ हुआ, जब वे हाईस्कूल में अध्ययनरत थे। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी से 1989 में हिंदी में स्नातकोत्तर। उसके बाद कुछ वर्षों तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए संवाददाता, संपादक और प्रतिनिधि के रूप में कार्य। लिखी व संपादित दो सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाश्य। भारत की अनेक प्रमुख हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक विविध रचनाएँ प्रकाश्य।
हिंदी लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अनेक पुरस्कार प्राप्त, प्रमुख हैं—मध्य प्रदेश विधानसभा का गांधी दर्शन पुरस्कार (द्वितीय), पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलाँग (मेघालय) द्वारा डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति पुरस्कार, समग्र लेखन एवं साहित्यधर्मिता हेतु डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान, नटराज कला संस्थान, झाँसी द्वारा लेखन के क्षेत्र में ‘बुंदेलखंड युवा पुरस्कार’, समाचार व फीचर सेवा, अंतर्धारा, दिल्ली द्वारा लेखक रत्न पुरस्कार इत्यादि।
संप्रति : स्वतंत्र लेखक-पत्रकार।