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Paninikaleen Bharatvarsh पाणिनिकालीन भारतवर्ष | Cultural Study of Ashtadhyaya Book In Hindi   

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Author Dr. Vasudeva Sharan Agrawala
Features
  • ISBN : 9789355218131
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Dr. Vasudeva Sharan Agrawala
  • 9789355218131
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2024
  • 480
  • Soft Cover
  • 500 Grams

Description

पाणिनिकालीन भारतवर्ष आचार्य वासुदेवशरण अग्रवाल की अक्षय कीर्ति का स्वर्णकलश है। पाणिनि-संबंधी उनकी पहली कृति है--'पाणिनि ऐज सोर्स ऑफ इंडियन हिस्टरी '। डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी के निर्देशन में लिखित यह उनका शोधप्रबंध है, जिसके लिए लखनऊ विश्वविद्यालय ने उन्हें सन्‌ 1941 में पी-एच.डी. उपाधि प्रदान की थी।

पाणिनि संबंधी उनके द्वारा संवर्द्धित रूप में पुनः प्रस्तुत दूसरा ग्रंथ-रत्न है--' इंडिया ऐज नोन टू पाणिनि '। इस पर सन्‌ 1946 में लखनऊ विश्वविद्यालय ने ही उन्हें डी.लिटू. की उपाधि से विभूषित किया। उनके परीक्षकों में डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी के अतिरिक्त महामहोपाध्याय डॉ. आर. शाम शास्त्री और प्रो. विधुशेखर भट्टाचार्य भी थे। वासुदेवजी ने द्वादश वर्षपर्यत संस्कृत भाषा और 'पाणिनीय अष्टाध्यायी ' का सम्यक्‌ अध्ययन किया था ।

इसलिए वे पाणिनि के सूत्रों की व्याख्या में इतनी गहरी पैठ बना सके और भारत के इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ हमारे लिए उद्घाटित कर सके । उन्होंने एक बार पुन: इन दोनों कृतियों की सामग्री का उपयोग करते हुए हिंदी में एक सर्वथा नई कृति 'पाणिनिकालीन भारतवर्ष ' की रचना की, जो न केवल दोनों कृतियों का समाहार है, बल्कि अधिक पूर्णतर है।

मातृभाषा हिंदी की अनुपम सेवा के साथ ही हिंदी-भाषियों पर उनका यह अतिशय अनुग्रह और उपकार है। प्राचीन बृहत्तर भारत की प्रामाणिक तस्वीर के लिए डॉ. अग्रवाल का यह ग्रंथ अनिवार्य है। इसमें पाणिनि और उनके शास्त्र के अतिरिक्त तत्कालीन भारत के भूगोल, सामाजिक जीवन, आर्थिक दशा, प्राचीन जनपद, राज्यतंत्र एवं शासन, शिक्षा और साहित्य, धर्म एवं दर्शन आदि सभी का विस्तार सहित विवरण और विवेचन है। यह भारतमाता के चरणों में अर्पित उनकी अनूठी श्रद्धांजलि और राष्ट्रभक्ति का अमिट अभिलेख है।

The Author

Dr. Vasudeva Sharan Agrawala

डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल

जन्म : सन् 1904।

शिक्षा : सन् 1929 में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए.; तदनंतर सन् 1940 तक मथुरा के पुरातत्त्व संग्रहालय के अध्यक्ष पद पर रहे। सन् 1941 में पी-एच.डी. तथा सन् 1946 में डी.लिट्.। सन् 1946 से 1951 तक सेंट्रल एशियन एक्टिविटीज म्यूजियम के सुपरिंटेंडेंट और भारतीय पुरातत्त्व विभाग के अध्यक्ष पद का कार्य; सन् 1951 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ इंडोलॉजी (भारती महाविद्यालय) में प्रोफेसर नियुक्त हुए। वे भारतीय मुद्रा परिषद् नागपुर, भारतीय संग्रहालय परिषद् पटना और ऑल इंडिया ओरिएंटल कांग्रेस, फाइन आर्ट सेक्शन बंबई आदि संस्थाओं के सभापति

भी रहे।

रचनाएँ : उनके द्वारा लिखी और संपादित कुछ प्रमुख पुस्तकें हैं—‘उरु-ज्योतिः’, ‘कला और संस्कृति’, ‘कल्पवृक्ष’, ‘कादंबरी’, ‘मलिक मुहम्मद जायसी : पद्मावत’, ‘पाणिनिकालीन भारतवर्ष’, ‘पृथिवी-पुत्र’, ‘पोद्दार अभिनंदन ग्रंथ’, ‘भारत की मौलिक एकता’, ‘भारत सावित्री’, ‘माता भूमि’, ‘हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन’, राधाकुमुद मुखर्जीकृत ‘हिंदू सभ्यता’ का अनुवाद।  डॉ. मोती चन्द्र के साथ मिलकर ‘शृंगारहाट’ का संपादन किया; कालिदास के ‘मेघदूत’ एवं बाणभट्ट के ‘हर्षचरित’ की नवीन पीठिका प्रस्तुत की।

स्मृतिशेष : 27 जुलाई, 1966।

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