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तोलोलिंग की चोटी पर बीस दिन से भारतीय जवान शहीद हो रहे थे। आखिरी हमले की रात वे दुश्मन के बंकर के बेहद करीब पहुँच गए, लेकिन तभी गोलियों की बौछार हो गई। वे घायल थे, लेकिन वापसी उन्हें मंजूर नहीं थी। शरीर से बहते खून की परवाह किए बिना उन्होंने एक ग्रेनेड दागा और कारगिल में भारत को पहली जीत मिल गई।
उसके सामने 100 चीनी सिपाही खड़े थे; गिनती की गोलियाँ बची थीं, लेकिन मातृभूमि का कर्ज चुकाते वक्त उसके हाथ नहीं काँपे और उसने युद्ध के मैदान को दुश्मन सिपाहियों का कब्रिस्तान बना दिया।
ये भारतीय सेना की वे युद्ध गाथाएँ हैं, जो आप शायद आज तक नहीं जान पाए होंगे। रणभूमि में कान के पास से निकलती गोलियाँ जो सरसराहट पैदा करती हैं, वही कहानी इस किताब में है।
बडगाम में मेजर सोमनाथ शर्मा की कंपनी ने कैसे श्रीनगर को बचाया और सियाचिन में पाकिस्तान के किले को किसने ढहाया, इस पराक्रम के हर पल का ब्योरा यह किताब देती है।
सन् 1947 से लेकर करगिल तक भारतीय सैनिकों की वीरता की ये वे सच्ची कहानियाँ हैं, जो बताती हैं कि विपरीत हालात के बावजूद कैसे अपने प्राणों की परवाह किए बिना हमारे सैनिकों ने अदम्य साहस और शौर्य दिखाया। यह उस पराक्रम की झलक है, जो युद्धभूमि में दिखा और आज इस पुस्तक के जरिए आप तक पहुँच रहा है।
भारतीय जाँबाजों के शौर्य, साहस, निडरता और राष्ट्रप्रेम का जीवंत प्रमाण है यह कृति ‘पराक्रम’, जो पाठकों को न केवल प्रेरित करेगी, वरन् भारतीय सैनिकों के समर्पण के प्रति श्रद्धा से नतमस्तक कर देगी।
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अनुक्रम
लेखक की बात —Pgs. 7
आभार —Pgs. 9
1. बडगाम की लड़ाई ने कश्मीर बचा लिया—1948 —Pgs. 15
2. हैदराबाद विलय में सेना का शौर्य—1948 —Pgs. 21
3. वेलोंग में चीन की नाक तोड़ दी—1962 —Pgs. 33
4. दुनिया का सबसे खतरनाक युद्ध रीजांग-ला—1962 —Pgs. 44
5. नूरानांग की वादियों में गूँजती है बाबा जसवंत की बहादुरी—1962 —Pgs. 56
6. लाहौर की वह नहर पाकिस्तानियों के खून से लाल हो गई—1965 —Pgs. 64
7. जब भारतीय सेना के टैंकों ने दिया ‘असल उत्तर’—1965 —Pgs. 68
8. हाजी पीर की मुश्किल लड़ाई और जीत—1965 —Pgs. 72
9. लोंगेवाला को पाकिस्तान की कब्रगाह बना दिया—1971 —Pgs. 77
10. बाउंड्री पिलर 638 पर दुश्मन को दिन दहाड़े मारा—1971 —Pgs. 85
11. बसंतार में पाकिस्तान की छाती को चीर दिया—1971 —Pgs. 92
12. सियाचिन में पाकिस्तान देखता रह गया—1984 —Pgs. 96
13. सियाचिन में पाकिस्तान के अजेय किले को ढहा दिया गया—1987 —Pgs. 105
14. मालदीव से सारे कैक्टस हटा दिए—1988 —Pgs. 115
15. कारगिल की मार कभी नहीं भूलेगा पाकिस्तान—1999 —Pgs. 118
16. तोलोलिंग से जीत की शुरुआत—1999 —Pgs. 125
संदर्भ सूची —Pgs. 141
दिनेश काण्डपाल पिछले 16 सालों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय हैं। 5 साल से इंडिया टी.वी. में सीनियर प्रोड्यूसर, उससे पहले न्यूज एक्सप्रेस, एस-1 और ई.टी.वी.। कॅरियर के शुरुआती दिनों में आकाशवाणी की युववाणी और विदेश प्रसारण सेवा में एनाउंसर व अनुवादक रहे। पत्रकारिता के कॅरियर में एंकर, रिपोर्टर से लेकर प्रोग्राम बनाने तक के दौरान रक्षा से जुड़े मामलों पर बारीक नजर रखी। सन् 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध पर बनी डॉक्यूमेंट्री को तीन लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं। एन.एस.जी. की महिला कमांडो पर सन् 2006 में बनाई डॉक्यूमेंट्री को सर्वत्र सराहा गया। तिहाड़ जेल के कम उम्र के कैदियों पर बनी डॉक्यूमेंट्री को सन् 1999 में आकाशवाणी वार्षिक पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। सन् 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान आकाशवाणी के लिए कई कार्यक्रम बनाए।
दिल्ली सीरियल बम ब्लास्ट, अन्ना आंदोलन, रामदेव का आंदोलन, चुनाव और बजट की एंकरिंग और लाइव रिपोर्टिंग ने विचारों को नए आयाम दिए। दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और पी.टी.यू. से कम्यूनिकेशन साइंस में एम.एस-सी. तथा दिल्ली विश्वविद्यालय से ही रूसी भाषा में डिप्लोमा लिया। उन्होंने सेना के परिवेश को बेहद करीब से देखा है। भारतीय सैनिकों के पराक्रम की यह पहली प्रस्तुति है। इस देश में मातृभूमि के लिए शीश कटवाने वाले नायकों की अनेक कहानियाँ अभी बाकी हैं।
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