अशोक भगत उपाख्य बाबाजी द्वारा अलिखित पुस्तक वस्तुतः बाबाजी द्वारा समय-समय पर लिखे गए आलेखों का संग्रह है। इन आलेखों में कहीं वर्तमान व्यवस्था से संघर्ष का शंखनाद है तो कहीं रचनात्मक वंशी की कर्णप्रिय धुन । पुस्तक की विषय-वस्तु न तो फंतासी है और न ही आकाशी । आम जीवन में जो सुलभ है, वह इस पुस्तक में उपलब्ध है। कुल मिलाकर पुस्तक बाबाजी के जीवन-अनुभव का शब्द-रूपांतरण है। इसमें प्रयोग है और परंपरा भी। बाबाजी ने अपने जीवन का अधिकतर समय जनजातीय समाज के बीच व्यतीत किया, इसलिए उसकी चर्चा अधिक है। चूँकि जंगल और पहाड़ भगतजी के साथ जुड़ा रहा, इसलिए पर्यावरण पर भी विशेष चर्चा है। इस पुस्तक में खेती, मानव सभ्यता, आदि सनातन संस्कृति पर सरल- सहज भाषा में कई विमर्श प्रस्तुत हैं । भारत की विविध जैविक संपदा के संरक्षण- संवर्धन के तरीकों पर भी कई आलेख हैं। पुस्तक कई मायनों में उपयोगी और संग्रहणीय है।