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Paras-Bela   

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Author Anil Kumar Pathak
Features
  • ISBN : 9789386300560
  • Language : Hindi
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  • Kindle Store

More Information

  • Anil Kumar Pathak
  • 9789386300560
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2017
  • 136
  • Hard Cover

Description

दर्शन शास्त्र के अध्येता डॉ. अनिल कुमार पाठक का काव्य-संग्रह ‘पारस बेला’ माता-पिता को शब्द-शब्द समर्पित है। अध्यवसाय से उपार्जित ज्ञानराशि से परिपूर्ण एवं उत्तम संस्कारों में पले-बढ़े कवि ने इस कृति में अपने माता-पिता के त्याग, स्नेह, ममत्व का ही वर्णन नहीं किया है, अपितु संपूर्ण सृष्टि की संतानों को सचेत भी किया है। ‘पारस-बेला’ की रचनाएँ वैयक्तिक न होकर सार्वभौमिक एवं सार्वदेशिक हैं, क्योंकि संसार में अगर कोई जीवंत ईश्वरीय सत्ता है तो वह केवल माता-पिता के रूप में ही है। कवि ने इस बात को अपने गीतों में हृदय की अतल गहराइयों से स्वीकार किया है। आज के भौतिकवादी युग में जहाँ विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक चैनल/प्रोडक्शन घरानों के द्वारा उत्पादित एवं प्रसारित धारावाहिक ‘परिवार’ जैसी प्राचीन, पारंपरिक एवं गौरवशाली संस्था की गरिमा पर कुठाराघात कर रहे हैं, वहीं ‘परिवार’ नामक संस्था डगमगा रही है तथा बच्चों का माता-पिता के प्रति भाव नकारात्मकता की ओर अग्रसर हो रहा है। ऐसे संक्रमण काल में ‘पारस-बेला’ कृति एक शीतल प्राणदायिनी मलयानिल की तरह है, जो प्रदूषित वातावरण में संजीवनी सिद्ध होती है। 
यदि इस कृति के पारायण से राष्ट्र की युवा पीढ़ी केवल माता-पिता के प्रति आदर-भाव को ही धारण कर लेगी तो कृति का अभीष्ट पूर्ण हो जाएगा। जीवन की आपा-धापी में भी माता-पिता के प्रति दायित्व 
का बोध सदैव बना रहे, यह भी कृति का उद्देश्य है

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अनुक्रम

शुभाशंसा — 7

प्रस्तावना — 15

भूमिका — 21

वंदन

1. मैं गीत उन्हीं के गाता हूँ — 31

2. मात-पिता बिन सब रीता है — 33

श्रवण

3. सच में मैं नहिं श्रवण कुमार — 37

4. श्रवण कुमार कहाँ अब कोई... 39

पारस-परस

5. नया सवेरा, नई रोशनी लाए मेरे बाबूजी — 51

6. कोई मुझसे नहीं कहे, ‘बाबूजी’ मेरे नहीं रहे — 53

7. मुझको कोई बतलाए तो — 54

8. छोड़ गए यूँ हमें अकेले — 55

9. बाबूजी अब करो न देर — 57

10. बाबूजी मेरे आएँगे — 59

11. बाबू तेरे ही गम में — 61

12. अपने प्यारे बाबूजी — 62

13. बाबूजी मेरे रुके नहीं — 63

14. बाबू मेरे कहते रहे — 64

15. आशीष-स्नेह से आँचल मेरा भरा हुआ — 65

16. या भूल गए? जो याद करें — 66

17. बाबूजी चलते चले गए — 67

18. कवलित काल नहीं कर सकता — 68

19. सबसे न्यारे बाबूजी — 70

20. बस तेरे खो जाने से — 72

21. रोम-रोम में कण-कण में — 74

22. बाँध प्रीति के धागे सबसे — 76

23. बाबूजी को याद करें — 78

24. आखिर कैसा यह नव प्रभात — 80

25. कहाँ नहीं तुम बाबूजी — 82

26. साथ भला यूँ छोड़ गए — 84

27. आखिर ऐसा वादा यूँ — 86

28. बाबूजी अब आते होंगे... 88

बेला-स्मृति

29. माँ तो केवल माँ होती है — 97

30. सबसे न्यारी माई है — 100

31. मेरी माँ — 101

32. ममता की मूरत मेरी माँ — 102

33. माँ है तेरे रूप अनेक — 104

34. जननी जबसे तुमसे बिछुड़े — 106

35. माँ — 107

36. गाँव गया था माँ के पास — 109

37. आखिर माँ यूँ सब सहती है — 111

38. माँ ही है अनमोल रतन — 114

39. माँ से प्यारा कौन जगत् में — 115

40. माँ बहुत पुराना नाता है — 116

विविधा

41. यादें... 121

The Author

Anil Kumar Pathak

विभिन्न भाषाओं के साहित्य के अध्येता होने के साथ ही डॉ. अनिल कुमार पाठक ने मानववाद पर मात्र शोध ही नहीं किया है, अपितु मानववादी विचारधारा को मनसा-वाचा-कर्मणा आत्मसात् करते हुए व्यवहृत भी किया है। जहाँ वे मानवीय संवेदना से स्पंदित हैं, वहीं मानववादी मूल्यों के मर्मज्ञ भी हैं। कहा जाता है कि कवि इस जगत् का अत्यंत सौभाग्यशाली प्राणी है। इस संसार में प्रथमतः तो मनुष्य बनना ही एक दुर्लभ गुण है, तिस पर विद्वान् बनना और विद्वत्ता के साथ कवि होना तथा काव्य करने की शक्ति प्राप्त करना नितांत दुर्लभ है।  
किसी वस्तु के अंतर्निहित तत्त्व का ज्ञान हुए बिना कोई ‘कवि’ नहीं हो सकता। ‘हठादाकृष्टानां कतिपयपदानां रचयिता’ बनकर कविता की काया को बढ़ानेवाले तुक्कड़ों के विपरीत सत्कवि के लिए ‘दर्शन’ और ‘प्रतिभा’ अनिवार्य गुण हैं। डॉ. अनिल कुमार पाठक कविकर्म के इन अनिवार्य गुणों से सर्वथा युक्त हैं।
डॉ. पाठक ने गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में सिद्धहस्तता के साथ लेखनी चलाई है। इनकी मर्मस्पर्शी कहानियाँ एवं गीत विभिन्न आकाशवाणी केंद्रों से भी प्रसारित होते रहते हैं। वर्तमान में प्रशासकीय दायित्वों के निर्वहन के साथ ही भारतीय संस्कृति-परंपरा तथा बाल साहित्य पर भी वे लेखनरत हैं।

 

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