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Parchhain Ka Sach   

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Author Narmada Prasad Upadhyay
Features
  • ISBN : 9789388984027
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : Ist
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  • Kindle Store

More Information

  • Narmada Prasad Upadhyay
  • 9789388984027
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • Ist
  • 2020
  • 184
  • Hard Cover
  • 250 Grams

Description

मन से परछाईं दूर नहीं हो पाती, लेकिन जब जीवन की देहलीज पर साँझ दस्तक देती है, तब जीवन का अर्थ समझ आने लगता है। अपनी जिंदगी की शाम में कैफ भोपाली जीवन और उससे जुड़ी परछाईं इन दोनों का अर्थ इन पंक्तियों में समझा गए हैं—
जिंदगी शायद इसी का नाम है,
दूरियाँ, मजबूरियाँ, तन्हाइयाँ।
क्या यही होती है शामे इंतजार,
आहटें, घबराहटें, परछाइयाँ।
जीवन की साँझ में ये परछाइयाँ हमें अपने अस्तित्व का स्मरण करा देती हैं। नंदकिशोर कहते हैं—
सूरज ढला तो कद से ऊँचे हो गए साये,
कभी पैरों से रौंदी थीं यही परछाइयाँ हमने।
सोचता हूँ, ये परछाइयाँ साँझ होते-होते क्यों लंबी होने लगती हैं? इसलिए कि ये ढल जाने की बाट जोहती हैं। इनके रिश्ते ऊषा से नहीं होते, भोर से नहीं होते, सुबह के आँचल में छुपी आशाओं से नहीं होते। इनके रिश्ते उस रात से होते हैं, जिसकी प्रकृति से परछाईं की प्रकृति मिलती है। दोनों स्याह होते हैं, दोनों भटकाते हैं और दोनों उजास की पराजय में अपनी जय के उत्सव रचते हैं। रात का उत्सव अँधेरा है और परछाईं का पर्व वह ढलती साँझ है, जिसके आगमन पर उजास की धड़कनें मंद होने लगती हैं।
परछाईं छलना है। उसकी परिणति अंधकार है। वह अपना उत्तराधिकार रात को सौंपती है। इसलिए भले परछाईं कुछ देर हमारे साथ-साथ चलकर हमें अपने साथ होने का आभास कराए, वह आश्वस्ति नहीं है, विश्वास नहीं है।
—इसी संग्रह से

 

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अनुक्रम

प्रयत्न की परिधि—Pgs. 7

1. मधुकर होत न प्रीत पुरानी : प्रीति के अलौकिक गायक बुंदेलखंड के लोककवि ईसुरी—Pgs. 13

2. भारतीय लोक : निरंतरता का प्रतिमान—Pgs. 25

3. गणतंत्र दिवस : संकल्प की गंगा का अवतरण पर्व—Pgs. 32

4. कुंभ : मनुष्यता की अमर यात्रा का संकल्प पर्व—Pgs. 37

5. आइसलैंड : अविश्वसनीय विस्मयों को निहारने की भूमि—Pgs. 42

6. पेरिस : कला, साहित्य और सौंदर्य में डूबा शहर—Pgs. 51

7. मातृत्व : अवधारणा और शिल्पांकन—Pgs. 57

8. कालिदास : रूपायनों के कवि—Pgs. 65

9. ‘वीणा’ : अक्षर की अमर देह—Pgs. 99

10. हिंदी की सर्जनात्मकता : निबंध एवं ललित निबंध—Pgs. 108

11. कृष्ण : धूमिल न होने वाली उजास—Pgs. 117

12. भरत होने का अर्थ—Pgs. 121

13. पंक्ति और समूह—Pgs. 125

14. परछाईं का सच—Pgs. 129

15. समय और हम—Pgs. 132

16. डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर : इतिहास पथ के महायात्री—Pgs. 138

17. वामन से विराट होने की व्यंजना—Pgs. 145

18. साक्षात्कार : द्विजत्व का एकात्म—Pgs. 159

19. ग़ज़ल का सफर—Pgs. 165

 

The Author

Narmada Prasad Upadhyay

कृतित्व : ‘समांतर लघुकथाएँ’, नरेंद्र कोहली : व्यक्‍त‌ित्व एवं कृतित्व’, ‘Sur : A Reticent Homage’ (संपादन), ‘एक भोर जुगनू की’, ‘अँधेरे के आलोक पुत्र’, ‘नदी तुम बोलती क्यों हो?’, ‘फिर फूले पलाश तुम’, ‘सुनो देवता’, ‘बैठे हैं आस लिये’, ‘प्रभास की सीपियाँ’, ‘परदेस के पेड़’, ‘अस्ताचल के सूर्य’ (ललित निबंध-संग्रह), ‘राधा माधव रंग रँगी’, ‘रामायण का काव्यमर्म’, पं. विद्यानिवास मिश्र के साथ ‘गीत-गोविंद’ और ‘रामायण के कलात्मक पक्ष’ पर कार्य। ‘भारतीय चित्रांकन परंपरा’, ‘पार रूप के’, ‘The Concept of Portrait’, ‘Kanheri Geet-Govinda’ (भारतीय कला)। पुरस्कार : ‘मुकुटधर पांडेय पुरस्कार’, ‘वागीश्‍वरी पुरस्कार’, ‘कलाभूषण सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘संत सिंगाजी सम्मान’ तथा ‘अक्षर आदित्य’ से सम्मानित। फेलोशिप : वर्ष 2003—चॉर्ल्स इंडिया वॉलेस ट्रस्ट, लंदन (ब्रिटिश काउंसिल); वर्ष 2008—शिमेंगर लेडर फेलोशिप, जर्मनी। संप्रति : सदस्य, वाणिज्यिक कर अपील बोर्ड, डी-33, चार इमली, भोपाल (म.प्र.)। इ-मेल : naman60@hotmail.com

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