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यदि भाषा ' बहता नीर' है तो व्याकरण उसका ' तटबंध ' । जिस प्रकार तटबंध जलधारा का नियमन करता है उसी प्रकार व्याकरण भाषा का । तटबंध यदि जलधारा को मर्यादा तोड़ने से रोकता है तो व्याकरण भी भाषा को मर्यादा का उल्लंघन केरने से रोकता है । जलधारा और भाषा यदि दोनों प्राकृतिक अजसता की प्रतीक हैं तो तटबंध और व्याकरण उन्हें मर्यादित करने के मानवीय अध्यवसाय के । यदि धारा कुपित अवस्था में धन-जन की हानि करती है तो भाषा भी अराजक स्थिति में विचार- संपत्ति को विश्रृंखलित करती है । यदि धारा की अराजकता के बावजूद तटबंध का महत्त्व अक्षुण्ण रहता है तो भाषा की अराजकता के बावजूद व्याकरण की उपयोगिता कम नहीं होती।
प्रस्तुत पुस्तक में प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी व वैयाकरण डॉ. बदरीनाथ कपूर ने व्याकरण के सूक्ष्म-से -सूक्ष्म उपयोग को दृष्टिगत करते हुए व्याकरण संबंधी विवादास्पद बातों का समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास किया है । यह पुस्तक हिंदी व्याकरण का एक मानक स्वरूप स्थापित करने में सफल होगी तथा स्कूल-कॉलेज के छात्र- अध्यापक' व सुधी पाठक इससे अपनी भाषा को और परिष्कृत कर पाएँगे, ऐसा हमारा विश्वास है ।
कोश कला के आचार्य श्री रामचंद्र वर्मा के सुयोग्य शिष्य डॉ. बदरीनाथ कपूर हिंदी की शब्द सामर्थ्य को प्रकट और प्रतिष्ठापित करने के अनुष्ठान में आधी सदी से जुटे हुए हैं। डॉ. कपूर की अब तक 32 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें से अधिकांश शब्दकोश, 3 जीवनियाँ और 5 अनुवाद ग्रंथ हैं। डॉ. कपूर ने आचार्य रामचंद्र वर्मा के तीन महत्त्वपूर्ण कोशों का संशोधन-परिवर्द्धन कर उनकी स्मृति और अवदान को अक्षुण्ण बनाए रखने का स्थायी महत्त्व का कार्य किया है।