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Parmarth Hi Jeevan   

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Author Ram Sahay
Features
  • ISBN : 9789352665822
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : Ist
  • ...more

More Information

  • Ram Sahay
  • 9789352665822
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • Ist
  • 2018
  • 200
  • Hard Cover
  • 300 Grams

Description

‘परमार्थ ही जीवन है’ पुस्तक के छोटे-छोटे कथानकों के माध्यम से ज्ञान को पाठकों की रुचि के अनुकूल बनाना इस पुस्तक की विशेषता है।
इस पुस्तक द्वारा प्रदत्त ज्ञान हर वर्ग में एक ऐसी जिज्ञासा पैदा करता है, जो पुस्तक को बार-बार पढ़ने पर भी हमारे मन में एक कौतूहल बना रहता है। 
परिश्रम, धर्म, स्त्री शिक्षा, परमार्थ-शस्त्र और शास्त्र-स्वावलंबन दादू सुभाष मालवीय से जुड़े प्रसंग जापानी छात्रों की देश भक्ति, जन्मभूमि का महत्त्व, अहिंसा, स्वतंत्रता, परोपकार, विवेकानंद, गुरु प्रकाश का महत्त्व, गीता, कर्तव्य निष्ठा, स्वामी रामतीर्थ आदि ऐसे प्रसंग हैं, जो हमारे जीवन निर्माण की आधारिशला है।
इस प्रकार की पुस्तकों का संग्रह हमारे मस्तिष्क की सोच को दर्शाता है।
इस पुस्तक के माध्यम से नागरिकों का चरित्र-निर्माण होकर उन्हें सदैव आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती रहेगी।

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अनुक्रम    
संदेश—7 71. बीरबल की चतुराई से वैद्यों को सजा से मुक्ति मिली—87 143. अच्छे काम ही धर्म हैं—148
भूमिका—9 72. बालक शेख सादी ने ऐसे छोड़ी परनिंदा—88 144. निःस्पृह साहित्य साधना—149
1. स्वर्ग और नरक का अस्तित्व—23 73. संत राबिया ने युवाओं को बताया सेवा का महत्त्व—89 145. मुक्त करता है उदात्त प्रेम—150
2. मन के साधे—24 74. बेटे ने जब माँ को क्षमा नहीं किया—90 146. जीवन के प्रति सम्मान हो—150
3. क्यों कहलाए युधिष्ठिर ‘धर्मराज’—24 75. श्रीराम ने राज्य से बड़ा सत्य को माना—91 147. झूठे की बात का कोई मूल्य नहीं होता—151
4. संसार की ममता—25 76. रावण का प्रतीक हैं हमारी बुराइयाँ—92 148. शैतान और भगवान् की उपासना एक साथ नहीं की जा सकती—152
5. धर्म—26 77. जापानी छात्रों की अनुकरणीय देशभक्ति—92 149. लालच से दूर—153
6. देशद्रोह—26 78. आइंस्टाइन की मानवीयता—93 150. मातृभूमि महान् है—154
7. उपयोगिता—27 79. संकल्प से नहीं डिगीं एनी बेसेंट—94 151. जीवट का धनी—155
8. खतरनाक ज्ञान—27 80. श्रीराम ने बताया जन्मभूमि का महत्त्व—95 152. प्रोत्साहन से विकसित होता है आत्मविश्वास—155
9. दान मुझे स्वीकार नहीं—28 81. जब नेहरूजी ने दोष को खूबी में बदला—96 153. हृदय-परिवर्तन—156
10. असली रस्म—29 82. अनुकरणीय है आनंद की समदृष्टि—96 154. ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति है गुरु—157
11. स्त्री शिक्षा—29 83. राजेंद्र प्रसाद ने किया निरुत्तर—97 155. रामचरितमानस—158
12. परिश्रम—29 84. बेईमानी से सुकून नहीं मिलता—98 156. प्रसन्नचित्त होना चिंतामुक्त—159
13. महानता—30 85. पुत्र ने दिखाई पिता को सही राह—99 157. साधु की शिक्षा—159
14. तू कहाँ था?—30 86. राष्ट्रभक्ति का रूप है कर्तव्यनिष्ठा—100 158. सोच बदलो—160
15. एकाग्रता—31 87. कल्याण की वेदी पर मातृभक्ति की बलि—101 159. अनर्थ की जड़—160
16. चोर कौन—31 88. विवेकानंद की सच्‍ची शिष्या निवेदिता—102 160. सौंदर्य भाव का हो सम्मान—161
17. परमार्थ मनुष्य का धर्म है—32 89. वेदव्यास को दिखाई नारद ने राह—103 161. भीड़ का भविष्य—162
18. दयालु बादशाह—33 90. सत्य ने किया बालक को भयमुक्त —104 162. फूल की विनम्रता—163
19. उदारता का उच्‍च आदर्श—34 91. संस्कार छोड़कर खोई शिवकृपा—105 163. रचनात्मक अनुशासन का मूल है परहित चिंतन—163
20. गलत अन्न का कुप्रभाव—35 92. बंदी बादशाह ने कैद में भी दिखाई जीवटता—105 164. नेकी करे, नेक बनो—164
21. मन की भाषा—36 93. विवेक लाता है विचार व कार्य में संतुलन—106 165. अतिरिक्त धन दान के लिए है—165
22. दीनदयाल उपाध्याय के जीवन का प्रेरक प्रसंग—37 94. आचरण बनाता है मनुष्य को विश्वसनीय—107 166. लक्ष्य-प्राप्ति का मूल मंत्र है जागृति—165
23. फकीर का बादशाह को सबक—37 95. अनुरक्ति का महत्त्व—108 167. हालत नहीं बदलते—166
24. महत्त्वपूर्ण कदम—38 96. सत्य का ज्ञान ही मुक्त करता है—109 168. जिंदगी की अहमियत—167
25. मान-अपमान-समान—39 97. कालिदास विक्रमादित्य संवाद—110 169. ब्राह्म‍ण का विश्वासघात—167
26. शस्त्र और शास्त्र दोनों का समन्वय—40 98. शिष्यत्व जगाने पर मिल जाते हैं गुरु —110 170. सेवा का आनंद—168
27. साधु का राजा को उपदेश—41 99. इंद्र के अहंकार का दमन—111 171. विराट् के लिए लघु हित का त्याग साधा जाए—169
28. दुष्टों के कर्म—42 100. परमात्मा की खोज ज्ञान से नहीं—112 172. जो भी बनें, आदर्श बनें—169
29. अच्छे प्रभाव से बुरे को भी बदला जा सकता है—43 101. स्वयं का शत्रु है क्रोध—113 173. दूसरों के धन की तुच्छता—170
30. बुराई एक जगह तथा भलाई सर्वत्र फैले—44 102. सत्य की खोज—114 174. प्रण करें, लक्ष्य-प्राप्ति सुनिश्चित है—171
31. स्वावलंबन का महत्त्व—45 103. कबीर की सत्यनिष्ठा—115 175. सच्चा ध्यान—172
32. अरविंद की साधना—47 104. दुर्व्यवहार का नतीजा—115 176. इच्छाएँ ही अशांति का कारण—173
33. सत्य ही स्वर्ग है—48 105. संघर्ष की आग में तपकर बने महान्—116 177. शिष्य की परीक्षा—173
34. सिद्धि जनहित में हो—49 106. विश्वास सफलता की कुंजी—117 178. एक पुरातन भूल—174
35. वस्तु का मूल्य अवश्य चुकाएँ—50 107. अहिंसा—118 179. संघे शक्ति—175
36. मनुष्य द्वारा बनाए भेदभाव—51 108. निर्णय से पूर्व सोचें—118 180. मनुष्य की तृष्णा दुःख का कारण—176
37. परहित की कामना ही श्रेष्ठ है—52 109. मृत्यु के भय से परिवर्तन—119 181. सुहाग व सुख की मंगलकामना का पर्व—176
38. न्याय युद्ध के लिए संघर्ष अनिवार्य—54 110. सुगंध से भी सूक्ष्म रहे साधक की सतर्कता—120 182. आकस्मिक प्रेरणा—177
39. जीवन की नश्वरता—55 111. श्रेय का मार्ग चुनें —121 183. सच्चा प्रायश्चित्त—178
40. दादू की महानता—56 112. अन्य को देखकर चोर साधु में परिवर्तन—122 184. लगन से पाया गुरु—179
41. एकादशी का महत्त्व—57 113. बहते जल की तरह निःस्पृह रहे, वह संत—123 185. पाप का घड़ा—179
42. घमंड और गरिमा का भेद—58 114. जीवन का सूत्र है बढ़ते चलो—123 186. आज—180
43. तपोवन और सत्संग का पावन संगम—59 115. दूसरों का दुःख हमसे ज्यादा नहीं—124 187. तिनके के बदले सोना—180
44. माता-पिता की सेवा अक्षयपात्र—60 116. स्वतंत्रता का अर्थ—125 188. गुरुमंत्र—181
45. सुभाष का आदर्श रूप—61 117. संत हृदय नवनीत समाना—126 189. गुलामी की जंजीरें—182
46. मालवीयजी की सहृदयता—62 118. श्रद्धा से प्रबल होता है ज्ञान—127 190. लुटेरे चुप हो गए—182
47. राजकुमार की दानशीलता—63 119. मृत्यु बताती है—कौन है ज्ञानी, कौन अज्ञानी—128 191. प्रकाश का महत्त्व—183
48. हक—65 120. सबसे कीमती भेंट—129 192. गुरु का महत्त्व—184
49. भक्त भगवान् से बड़ा है—65 121. लालच बुरा है—130 193. जटायु का जीवट—184
50. ढोगी संत—66 122. सम्यक् आहार-विहार से जीवन का विकास—130 194. महल या चिकित्सालय?—185
51. दीनबंधु की संवेदनशीलता—68 123. चरित्र-धर्म प्रचार का साधन—131 195. गीता का स्थान—186
52. सेठजी की उदारता—69 124. फूलों का संदेश—132 196. दुःखों का कारण—187
53. सुख स्वार्थ में नहीं परमार्थ में होता है—70 125. छोटे की सहायता राशि की पवित्रता—133 197. पुत्र की अनूठी सीख—187
54. जनता की सेवा—71 126. प्रभु भक्ति में ही जीवन की श्रेष्ठता है—133 198. मित्र के लिए—188
55. अभिमानी का सिर नीचा—72 127. श्रेष्ठ विचारों को अपनाया जाए—134 199. खुशी—189
56. धन लालसा जगाता है—73 128. सत्य पर विश्वास रख अनीति का मुकाबला करें —135 200. कर्तव्यनिष्ठा—189
57. भूख से छुटकारा—74 129. धर्म की जीवंतता का लक्ष्य है परिवर्तनशीलता—136 201. विलासिता का परिणाम—190
58. भक्ति के प्रति स्नेह—75 130. परोपकार को मान्यता—137 202. पुण्य कार्य कल पर मत टालो—191
59. कल्याण का मार्ग सर्वोत्तम—76 131. भावना—138 203. राजधर्म की प्रेरणा—191
60. पर पीड़ा का असर—77 132. प्रेम दो, प्रेम पाओ—138 204. परोपकारी स्वभाव—192
61. सेवा परमोधर्म—78 133. चैतन्य महाप्रभु का त्याग—139 205. भय व संकीर्णता को छोड़ो—193
62. अभिमान व्यर्थ है—79 134. पुरुषार्थ का महत्त्व—140 206. नीचा सिर क्यों?—194
63. छोटा समझकर महत्त्व कम न आँकें—80 135. सत्य अनर्थ का कारण न बने—141 207. उपयोगिता—194
64. असीमित इच्छाओं का दुष्परिणाम—81 136. विद्रोह सकारात्मक होना चाहिए—142 208. आत्मविश्वास—195
65. राष्ट्रकवि दिनकरजी अभिभूत हो उठे—82 137. भक्ति तो छिपी ही रहे—143 209. स्वामी रामतीर्थ की भक्ति-भावना—195
66. मनोबल बढ़ाती है आशा—83 138. शक्ति के अनुरूप लक्ष्य बनाया जाए—144 210. मांस की कीमत—196
67. कूप के पनघट से शिक्षा—83 139. सच्चा समत्व आंतरिक दृष्टि से आता है—145 211. दुष्कर्म बड़ी बाधा—197
68. अष्टावक्र ने सिखाया शारीरिक सौंदर्य से बड़ा है ज्ञान—84 140. भावनात्मक बुद्धिमत्ता का महत्त्व—146  
69. बुरे काम की बारी आए तो विलंब करें—85 141. विद्यासागर की महानता—146  
70. बालक ध्रुव का हठ सभी के लिए आदर्श बन गया—86 142. विवेकानंद की माँ के प्रति सच्‍ची भक्ति—147  

The Author

Ram Sahay

जन्म  :  19 अगस्त, 1934।
शिक्षा  :  एम.ए. (राजनीति विज्ञान), बी.टी.।
कर्तृत्व  :  समाज के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, पूर्व जिला समाज-अध्यक्ष, स्थानीय समाज के पूर्व अध्यक्ष, समाज के राष्ट्रीय संरक्षक, जिला वैश्य महासम्मेलन-उपाध्यक्ष, समाज पत्रिका प्रभारी, सुंदरदास पुस्तकालय की स्थापना, स्थानीय समाज भवन में संत श्री सुंदरदास एवं बलराम दासजी की प्रतिमाओं की स्थापना, स्थानीय मंडी चौराहा पर संत श्री सुंदर दास की प्रतिमा की स्थापना, स्थानीय स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में सेवा कार्य।
प्रकाशन  :  ‘प्रकृति की गोद में’, ‘सांस्कृतिक उत्थान का मार्ग’, ‘कर्म ही पूजा है’, ‘परमार्थ ही जीवन है’ प्रकाशित। 
संपर्क  :  वार्ड नं. 16, खेरली जिला अलवर (राज.)।

 

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