‘परमार्थ ही जीवन है’ पुस्तक के छोटे-छोटे कथानकों के माध्यम से ज्ञान को पाठकों की रुचि के अनुकूल बनाना इस पुस्तक की विशेषता है।
इस पुस्तक द्वारा प्रदत्त ज्ञान हर वर्ग में एक ऐसी जिज्ञासा पैदा करता है, जो पुस्तक को बार-बार पढ़ने पर भी हमारे मन में एक कौतूहल बना रहता है।
परिश्रम, धर्म, स्त्री शिक्षा, परमार्थ-शस्त्र और शास्त्र-स्वावलंबन दादू सुभाष मालवीय से जुड़े प्रसंग जापानी छात्रों की देश भक्ति, जन्मभूमि का महत्त्व, अहिंसा, स्वतंत्रता, परोपकार, विवेकानंद, गुरु प्रकाश का महत्त्व, गीता, कर्तव्य निष्ठा, स्वामी रामतीर्थ आदि ऐसे प्रसंग हैं, जो हमारे जीवन निर्माण की आधारिशला है।
इस प्रकार की पुस्तकों का संग्रह हमारे मस्तिष्क की सोच को दर्शाता है।
इस पुस्तक के माध्यम से नागरिकों का चरित्र-निर्माण होकर उन्हें सदैव आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती रहेगी।
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अनुक्रम | ||
संदेश—7 | 71. बीरबल की चतुराई से वैद्यों को सजा से मुक्ति मिली—87 | 143. अच्छे काम ही धर्म हैं—148 |
भूमिका—9 | 72. बालक शेख सादी ने ऐसे छोड़ी परनिंदा—88 | 144. निःस्पृह साहित्य साधना—149 |
1. स्वर्ग और नरक का अस्तित्व—23 | 73. संत राबिया ने युवाओं को बताया सेवा का महत्त्व—89 | 145. मुक्त करता है उदात्त प्रेम—150 |
2. मन के साधे—24 | 74. बेटे ने जब माँ को क्षमा नहीं किया—90 | 146. जीवन के प्रति सम्मान हो—150 |
3. क्यों कहलाए युधिष्ठिर ‘धर्मराज’—24 | 75. श्रीराम ने राज्य से बड़ा सत्य को माना—91 | 147. झूठे की बात का कोई मूल्य नहीं होता—151 |
4. संसार की ममता—25 | 76. रावण का प्रतीक हैं हमारी बुराइयाँ—92 | 148. शैतान और भगवान् की उपासना एक साथ नहीं की जा सकती—152 |
5. धर्म—26 | 77. जापानी छात्रों की अनुकरणीय देशभक्ति—92 | 149. लालच से दूर—153 |
6. देशद्रोह—26 | 78. आइंस्टाइन की मानवीयता—93 | 150. मातृभूमि महान् है—154 |
7. उपयोगिता—27 | 79. संकल्प से नहीं डिगीं एनी बेसेंट—94 | 151. जीवट का धनी—155 |
8. खतरनाक ज्ञान—27 | 80. श्रीराम ने बताया जन्मभूमि का महत्त्व—95 | 152. प्रोत्साहन से विकसित होता है आत्मविश्वास—155 |
9. दान मुझे स्वीकार नहीं—28 | 81. जब नेहरूजी ने दोष को खूबी में बदला—96 | 153. हृदय-परिवर्तन—156 |
10. असली रस्म—29 | 82. अनुकरणीय है आनंद की समदृष्टि—96 | 154. ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति है गुरु—157 |
11. स्त्री शिक्षा—29 | 83. राजेंद्र प्रसाद ने किया निरुत्तर—97 | 155. रामचरितमानस—158 |
12. परिश्रम—29 | 84. बेईमानी से सुकून नहीं मिलता—98 | 156. प्रसन्नचित्त होना चिंतामुक्त—159 |
13. महानता—30 | 85. पुत्र ने दिखाई पिता को सही राह—99 | 157. साधु की शिक्षा—159 |
14. तू कहाँ था?—30 | 86. राष्ट्रभक्ति का रूप है कर्तव्यनिष्ठा—100 | 158. सोच बदलो—160 |
15. एकाग्रता—31 | 87. कल्याण की वेदी पर मातृभक्ति की बलि—101 | 159. अनर्थ की जड़—160 |
16. चोर कौन—31 | 88. विवेकानंद की सच्ची शिष्या निवेदिता—102 | 160. सौंदर्य भाव का हो सम्मान—161 |
17. परमार्थ मनुष्य का धर्म है—32 | 89. वेदव्यास को दिखाई नारद ने राह—103 | 161. भीड़ का भविष्य—162 |
18. दयालु बादशाह—33 | 90. सत्य ने किया बालक को भयमुक्त —104 | 162. फूल की विनम्रता—163 |
19. उदारता का उच्च आदर्श—34 | 91. संस्कार छोड़कर खोई शिवकृपा—105 | 163. रचनात्मक अनुशासन का मूल है परहित चिंतन—163 |
20. गलत अन्न का कुप्रभाव—35 | 92. बंदी बादशाह ने कैद में भी दिखाई जीवटता—105 | 164. नेकी करे, नेक बनो—164 |
21. मन की भाषा—36 | 93. विवेक लाता है विचार व कार्य में संतुलन—106 | 165. अतिरिक्त धन दान के लिए है—165 |
22. दीनदयाल उपाध्याय के जीवन का प्रेरक प्रसंग—37 | 94. आचरण बनाता है मनुष्य को विश्वसनीय—107 | 166. लक्ष्य-प्राप्ति का मूल मंत्र है जागृति—165 |
23. फकीर का बादशाह को सबक—37 | 95. अनुरक्ति का महत्त्व—108 | 167. हालत नहीं बदलते—166 |
24. महत्त्वपूर्ण कदम—38 | 96. सत्य का ज्ञान ही मुक्त करता है—109 | 168. जिंदगी की अहमियत—167 |
25. मान-अपमान-समान—39 | 97. कालिदास विक्रमादित्य संवाद—110 | 169. ब्राह्मण का विश्वासघात—167 |
26. शस्त्र और शास्त्र दोनों का समन्वय—40 | 98. शिष्यत्व जगाने पर मिल जाते हैं गुरु —110 | 170. सेवा का आनंद—168 |
27. साधु का राजा को उपदेश—41 | 99. इंद्र के अहंकार का दमन—111 | 171. विराट् के लिए लघु हित का त्याग साधा जाए—169 |
28. दुष्टों के कर्म—42 | 100. परमात्मा की खोज ज्ञान से नहीं—112 | 172. जो भी बनें, आदर्श बनें—169 |
29. अच्छे प्रभाव से बुरे को भी बदला जा सकता है—43 | 101. स्वयं का शत्रु है क्रोध—113 | 173. दूसरों के धन की तुच्छता—170 |
30. बुराई एक जगह तथा भलाई सर्वत्र फैले—44 | 102. सत्य की खोज—114 | 174. प्रण करें, लक्ष्य-प्राप्ति सुनिश्चित है—171 |
31. स्वावलंबन का महत्त्व—45 | 103. कबीर की सत्यनिष्ठा—115 | 175. सच्चा ध्यान—172 |
32. अरविंद की साधना—47 | 104. दुर्व्यवहार का नतीजा—115 | 176. इच्छाएँ ही अशांति का कारण—173 |
33. सत्य ही स्वर्ग है—48 | 105. संघर्ष की आग में तपकर बने महान्—116 | 177. शिष्य की परीक्षा—173 |
34. सिद्धि जनहित में हो—49 | 106. विश्वास सफलता की कुंजी—117 | 178. एक पुरातन भूल—174 |
35. वस्तु का मूल्य अवश्य चुकाएँ—50 | 107. अहिंसा—118 | 179. संघे शक्ति—175 |
36. मनुष्य द्वारा बनाए भेदभाव—51 | 108. निर्णय से पूर्व सोचें—118 | 180. मनुष्य की तृष्णा दुःख का कारण—176 |
37. परहित की कामना ही श्रेष्ठ है—52 | 109. मृत्यु के भय से परिवर्तन—119 | 181. सुहाग व सुख की मंगलकामना का पर्व—176 |
38. न्याय युद्ध के लिए संघर्ष अनिवार्य—54 | 110. सुगंध से भी सूक्ष्म रहे साधक की सतर्कता—120 | 182. आकस्मिक प्रेरणा—177 |
39. जीवन की नश्वरता—55 | 111. श्रेय का मार्ग चुनें —121 | 183. सच्चा प्रायश्चित्त—178 |
40. दादू की महानता—56 | 112. अन्य को देखकर चोर साधु में परिवर्तन—122 | 184. लगन से पाया गुरु—179 |
41. एकादशी का महत्त्व—57 | 113. बहते जल की तरह निःस्पृह रहे, वह संत—123 | 185. पाप का घड़ा—179 |
42. घमंड और गरिमा का भेद—58 | 114. जीवन का सूत्र है बढ़ते चलो—123 | 186. आज—180 |
43. तपोवन और सत्संग का पावन संगम—59 | 115. दूसरों का दुःख हमसे ज्यादा नहीं—124 | 187. तिनके के बदले सोना—180 |
44. माता-पिता की सेवा अक्षयपात्र—60 | 116. स्वतंत्रता का अर्थ—125 | 188. गुरुमंत्र—181 |
45. सुभाष का आदर्श रूप—61 | 117. संत हृदय नवनीत समाना—126 | 189. गुलामी की जंजीरें—182 |
46. मालवीयजी की सहृदयता—62 | 118. श्रद्धा से प्रबल होता है ज्ञान—127 | 190. लुटेरे चुप हो गए—182 |
47. राजकुमार की दानशीलता—63 | 119. मृत्यु बताती है—कौन है ज्ञानी, कौन अज्ञानी—128 | 191. प्रकाश का महत्त्व—183 |
48. हक—65 | 120. सबसे कीमती भेंट—129 | 192. गुरु का महत्त्व—184 |
49. भक्त भगवान् से बड़ा है—65 | 121. लालच बुरा है—130 | 193. जटायु का जीवट—184 |
50. ढोगी संत—66 | 122. सम्यक् आहार-विहार से जीवन का विकास—130 | 194. महल या चिकित्सालय?—185 |
51. दीनबंधु की संवेदनशीलता—68 | 123. चरित्र-धर्म प्रचार का साधन—131 | 195. गीता का स्थान—186 |
52. सेठजी की उदारता—69 | 124. फूलों का संदेश—132 | 196. दुःखों का कारण—187 |
53. सुख स्वार्थ में नहीं परमार्थ में होता है—70 | 125. छोटे की सहायता राशि की पवित्रता—133 | 197. पुत्र की अनूठी सीख—187 |
54. जनता की सेवा—71 | 126. प्रभु भक्ति में ही जीवन की श्रेष्ठता है—133 | 198. मित्र के लिए—188 |
55. अभिमानी का सिर नीचा—72 | 127. श्रेष्ठ विचारों को अपनाया जाए—134 | 199. खुशी—189 |
56. धन लालसा जगाता है—73 | 128. सत्य पर विश्वास रख अनीति का मुकाबला करें —135 | 200. कर्तव्यनिष्ठा—189 |
57. भूख से छुटकारा—74 | 129. धर्म की जीवंतता का लक्ष्य है परिवर्तनशीलता—136 | 201. विलासिता का परिणाम—190 |
58. भक्ति के प्रति स्नेह—75 | 130. परोपकार को मान्यता—137 | 202. पुण्य कार्य कल पर मत टालो—191 |
59. कल्याण का मार्ग सर्वोत्तम—76 | 131. भावना—138 | 203. राजधर्म की प्रेरणा—191 |
60. पर पीड़ा का असर—77 | 132. प्रेम दो, प्रेम पाओ—138 | 204. परोपकारी स्वभाव—192 |
61. सेवा परमोधर्म—78 | 133. चैतन्य महाप्रभु का त्याग—139 | 205. भय व संकीर्णता को छोड़ो—193 |
62. अभिमान व्यर्थ है—79 | 134. पुरुषार्थ का महत्त्व—140 | 206. नीचा सिर क्यों?—194 |
63. छोटा समझकर महत्त्व कम न आँकें—80 | 135. सत्य अनर्थ का कारण न बने—141 | 207. उपयोगिता—194 |
64. असीमित इच्छाओं का दुष्परिणाम—81 | 136. विद्रोह सकारात्मक होना चाहिए—142 | 208. आत्मविश्वास—195 |
65. राष्ट्रकवि दिनकरजी अभिभूत हो उठे—82 | 137. भक्ति तो छिपी ही रहे—143 | 209. स्वामी रामतीर्थ की भक्ति-भावना—195 |
66. मनोबल बढ़ाती है आशा—83 | 138. शक्ति के अनुरूप लक्ष्य बनाया जाए—144 | 210. मांस की कीमत—196 |
67. कूप के पनघट से शिक्षा—83 | 139. सच्चा समत्व आंतरिक दृष्टि से आता है—145 | 211. दुष्कर्म बड़ी बाधा—197 |
68. अष्टावक्र ने सिखाया शारीरिक सौंदर्य से बड़ा है ज्ञान—84 | 140. भावनात्मक बुद्धिमत्ता का महत्त्व—146 | |
69. बुरे काम की बारी आए तो विलंब करें—85 | 141. विद्यासागर की महानता—146 | |
70. बालक ध्रुव का हठ सभी के लिए आदर्श बन गया—86 | 142. विवेकानंद की माँ के प्रति सच्ची भक्ति—147 |
जन्म : 19 अगस्त, 1934।
शिक्षा : एम.ए. (राजनीति विज्ञान), बी.टी.।
कर्तृत्व : समाज के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, पूर्व जिला समाज-अध्यक्ष, स्थानीय समाज के पूर्व अध्यक्ष, समाज के राष्ट्रीय संरक्षक, जिला वैश्य महासम्मेलन-उपाध्यक्ष, समाज पत्रिका प्रभारी, सुंदरदास पुस्तकालय की स्थापना, स्थानीय समाज भवन में संत श्री सुंदरदास एवं बलराम दासजी की प्रतिमाओं की स्थापना, स्थानीय मंडी चौराहा पर संत श्री सुंदर दास की प्रतिमा की स्थापना, स्थानीय स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में सेवा कार्य।
प्रकाशन : ‘प्रकृति की गोद में’, ‘सांस्कृतिक उत्थान का मार्ग’, ‘कर्म ही पूजा है’, ‘परमार्थ ही जीवन है’ प्रकाशित।
संपर्क : वार्ड नं. 16, खेरली जिला अलवर (राज.)।