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सभी ने महमूद की बनाई ड्रैगन-पतंग के बारे में सुन लिया था और कहने लगे कि वह पतंग तिलिस्मी है। जब नवाब साहब के सामने उड़ाने के लिए वह पतंग पेश की गई, तब अच्छी-खासी भीड़ जमा हो गई थी।
पहली कोशिश फिजूल गई, पतंग जमीन से उठी नहीं। बस कागज के गोलों ने एक रुआँसी व शिकायत भरी सरसराहट की; हिलने से पतंग की आँखें, जो कि शीशों की बनी थीं, सूरज की रोशनी में चमक उठीं और पतंग एक जानदार चीज सी लगने लगी। फिर सही दिशा से हवा आई और ड्रैगन-काइट आसमान में उठ गई, इधर-उधर छटपटाते हुए वह ऊपर उठने लगी—ऊँची, और ऊँची। सूरज की रोशनी में शीशे लगी आँखें शैतानी से चमकने लगीं। जब यह बहुत ही ऊपर उठ गई तो हाथ में पकड़ी रस्सी पर जोरों का झटका लगने लगा।...रस्सी टूट गई, पतंग सूरज की तरफ लपकी, आसमान की ओर शान से जाने लगी और फिर आँखों से ओझल हो गई। वह पतंग फिर कभी मिली नहीं और महमूद ने सोचा कि उसने पतंग में जीवन भर दिया था।
—इसी पुस्तक से
रस्किन बॉण्ड की कहानियों में एक अद्भुत सजीवता है, सीधी-सरल भाषा में लिखी ये कहानियाँ सहज ही मन को छू लेती हैं। उनके पात्र हमारे आसपास के जीवन से जुड़े हैं; वे सामान्य भी हैं और सामान्य से कुछ हटकर भी हैं। दिन-ब-दिन के जीवन से गुँथे रहस्य, प्रेम, कर्तव्य आदि भावनाओं से पगी ये कहानियाँ बरबस अपनी ओर खींचती हैं।
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विषय सूची
पतंग वाला —Pgs 1
बाघ —Pgs 7
अंधेरे में एक चेहरा —Pgs16
रंग- बिरंगा कमरा —Pgs 19
चोर —Pgs 46
पड़ोसी को पत्नी —Pgs 55
मास्टर जी —Pgs 61
इंस्पेक्टर लाल का एक केस —Pgs 66
मिस मैकेंजी —Pgs 75
चीता और चांद —Pgs 84
सुरंग —Pgs 119
मुक़ाबला —Pgs 128
छोटी सी शुरुआत —Pgs 137
पेड़ों की मौत —Pgs 152
बिनिया करीब से गुज़रती है —Pgs 155
धूल भरे पहाड़ —Pgs 168
चाची की अंत्येष्टि —Pgs 190
जन्म 19 मई, 1934 को हिमाचल प्रदेश के कसौली में हुआ था। बचपन में ही मलेरिया से इनके पिता की मृत्यु हो गई, तत्पश्चात् इनका पालन-पोषण शिमला, जामनगर, मसूरी, देहरादून तथा लंदन में हुआ। इनकी रचनाओं में हिमालय की गोद में बसे छोटे शहरों के जन-जीवन की छाप स्पष्ट है। इक्कीस वर्ष की आयु में ही इनका पहला उपन्यास ‘द रूम ऑन रूफ’ (The Room on Roof) प्रकाशित हुआ। इसमें इनके और इनके मित्र के देहरा में रहते हुए बिताए गए अनुभवों का लेखा-जोखा है। भारतीय लेखकों में बॉण्ड विशिष्ट स्थान रखते हैं। उपन्यास तथा बाल साहित्य की इनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुई हैं। साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने 1999 में इन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया।