₹400
ऋषि पतञ्जलि प्रणीत पतञ्जलि योग दर्शन आत्म-भू-योग दर्शन हैं। यह अनन्य, अनूठा, अनुपमेय योग-दर्शन, जो अपने लिए आप ही प्रमाण है। इस अपूर्व और अद्भुत ग्रंथ के समान सृष्टि में कोई अन्य यौगिक ग्रंथ है ही नहीं। एक तरह से इसे प्रकृति की अद्भुत और चमत्कृत घटना कह सकते हैं।
‘पतञ्जलि योग दर्शन’ गणतीय भाषा में एवं सूत्रात्मक शैली में रचित, सृष्टि का एक अद्वितीय, यौगिक विज्ञान का विस्मयकारी ग्रंथ है, जिसमें मनुष्य के प्राण से लेकर महाप्राण तक की अंतर्यात्रा, मृण्मय से चिन्मय तक जाने का यौगिक ज्ञान, मूलाधार से सहस्रार तक ब्रह्मैक्य का आंतरिक ज्ञान, मर्म और दर्शन समाहित है।
योग-दर्शन जीव के पंचमय कोषों, अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, ज्ञानमय कोषों के गूढ़ मर्म और उनमें छुपी शक्तियों को उजागर करता हुआ, देह के सुप्त बिंदुओं को जाग्रत् कर, विदेह की ओर उन्मुख कर आनंदमय कोष में प्रवेश कराने का विज्ञान है। साधना देह में रहकर ही होती है, विदेह अंतरात्मा साधना नहीं कर सकता, इसीलिए देह तो आत्मोन्नति का साधन है, अतः देह का स्वस्थ, संयमी और स्वच्छ रखना योग का ही अंग है। शरीर हेय नहीं, श्रेय पाने का साधन है। बिखराव तब आता है, जब हम देह को ही सर्वस्व मान लेते हैं।
यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार तक केवल देह के घटकों में समाहित शक्ति केंद्रों को जाग्रत करने का ज्ञान है। धारणा, ध्यान और समाधि अंतर्मन में निहित बिंदुओं को संयमित कर दिव्यता की ओर जाने का विज्ञान है। वस्तुतः योग-दर्शन ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः’ के चारों ओर ही परिक्रमायित है क्योंकि साधना कठिन नहीं, किंतु मन का सधना कठिन है।
शिक्षा : पी-एच.डी. (राजनीति शास्त्र), मेरठ विश्वविद्यालय (उ.प्र.)।
रचना-संसार : सामवेद (काव्यानुवाद चौपाई छंद में), ईशादि नौ उपनिषद् (काव्यानुवाद हरिगीतिका छंद में), इहातीत क्षण (आध्यात्मिक गद्य काव्य), श्रीभगवद्गीता (काव्यानुवाद ब्रज भाषा में), वेदों पर शोध कार्य। बेध से बोध तक, जीवित समिधा (उपन्यास) शीघ्र प्रकाश्य।
सम्मान : उ.प्र. संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ वक्ता का सम्मान, दूरदर्शन पर वेदों पर अनेकों साक्षात्कार, अनेकों आर्य और साहित्यिक संगोष्ठियों द्वारा सम्मान, नेपाल के महाराज और मॉरिशस के राजदूत द्वारा विशेष सम्मान, वेदों की प्रखर अध्येता व शोधकर्ता, अमेरिका में तीन वैदिक सम्मेलनों में सहभागिता, अमेरिका में Emory, .G.A., G.S.U. यूनिवर्सिटी में Guest Lecture, 1999 में I.C.C.R. की ओर से भारत का .S.A. में प्रतिनिधित्व किया, विषय था ‘तुलसीदास और उनके कृतित्व’। अखिल भारतीय संस्कृत विदुषी सम्मेलन (20-22 जुलाई, 2000) में संपूर्ण कृतित्व को सम्मेलन के रूप में पढ़ा गया, Millenium Women Award 2000, अमेरिका के आर्य समाज अटलांटा में विशेष सम्मान।
आदि गुरु शंकराचार्य के विशेष स्तुति स्तोत्र का साहित्य का काव्यानुवाद; आदि गुरु शंकराचार्य के महान् ग्रंथ ‘विवेक चूड़ामणि’ का काव्यानुवाद।