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रतन लाल शांत कश्मीरी तथा हिंदी के जाने-माने कहानीकार, कवि, आलोचक हैं। अभी तक उनकी कश्मीरी व हिंदी की लगभग तीन दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
ये कहानियाँ उनके साहित्य अकादेमी से प्राप्त कथा-संग्रह ‘छयन’ (छिन्न/टूटन) से लेकर उन्होंने स्वयं अनूदित की हैं। अधिकांश प्रदेश तथा देश की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर सराही गई हैं।
इन कहानियों का मुख्य सरोकार कश्मीर में आतंक के फलस्वरूप हुए विस्थापन से पीडि़त सामान्य जन से है। अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रह रहे जन की त्रासदी के मानवीय पहलुओं को लेकर ये कहानियाँ मानव संवेदना की शून्यता और व्यवस्था की हृदयहीनता के अनेक भयावह और रोमांचक चित्र उकेरती हैं। श्री गोविंद मिश्र के शब्दों में ‘सतह पर विस्थापन अधिकांशतः शिविरों की पृष्ठभूमि तक ही सीमित है, लेकिन वह हर क्षण हर जगह मौजूद है, साँप के फन की तरह डोलता हुआ।’
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अनुक्रम
ये कहानियाँ—Pgs. 7
अपनी बात—Pgs. 9
आभार 13
1. टूटन 17
2. पठार-शिविर की सूखी नदी—Pgs. 28
3. पानी पर तैरती काई—Pgs. 42
4. आग की कोख में—Pgs. 59
5. हस्तक्षेप—Pgs. 75
6. उसका पचतंत्र—Pgs. 84
7. अटॉरनी का मालिक—Pgs. 98
8. मिट्टी उतरे मिट्टी में—Pgs. 104
9. बिना शीशे की ऐनक—Pgs. 112
10. बिल्लियाँ—Pgs. 116
11. लोक-परलोक—Pgs. 121
जन्म : 1938, श्रीनगर (जम्मू एवं कश्मीर)।
शिक्षा : एम.ए., डी.फिल. (इलाहाबाद)।
प्रकाशन : टूटन, एक त्रिकोण यह भी, खोए हुए अर्थ, बरौनियों पर पहाड़ (कश्मीरी कथा-संकलन) के अतिरिक्त और 19 पुस्तकें, आलोचना, अनुवाद, संपादन की (कश्मीरी में)।
खोटी किरणें, कविता अभी भी (कविता), कश्मीर : साहित्यिक संदर्भ, समय के तेवर (आलोचना), नुंद ऋषि, रसूल मीर, नादिम के अनुवाद, कई संपादन, अन्य अनुवादों आदि की कुल 11 पुस्तकें हिंदी में।
सम्मान-पुरस्कार : साहित्य अकादेमी, ज.क. अकादेमी, प्रयाग हिंदी साहित्य सम्मेलन, मैसूर भारतीय भाबा संस्थान, उ.प्र. हिंदी संस्थान, केंद्रीय हिंदी निदेशालय आदि से सम्मानित।
जम्मू-कश्मीर के अवर स्नातक कॉलेजों तथा कश्मीर विश्वविद्यालय में अध्यापन के बाद संप्रति लेखन-मात्र।
पता : एम-201, रॉयल पाल्म्ज, अखनूर रोड, डाक. तालाब तिल्लो, जम्मू-180002