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विलियम टेलर ने सन् 1857 में पटना विद्रोह को दबाने में अहम भूमिका निभाई थी, किंतु उसकी अनेक गतिविधियाँ ऊपर के पदाधिकारियों को पसंद नहीं आईं। अति उत्साह में उसके द्वारा उठाए गए कदमों की काफी आलोचना हुई। बिना पुख्ता सबूत के लोगों को फाँसी देना, धोखे से वहाबी पंथ के तीनों मौलवियों को गिरफ्तार करना, उद्योग विद्यालय खोलने के लिए जमींदारों से जबरदस्ती चंदा वसूल करना, पटना के प्रतिष्ठित बैंकर लुत्फ अली खाँ के साथ बदसलूकी से पेश आना, मेजर आयर को आरा की तरफ कूच करने से मना करना, बगावत की आशंका से सारे यूरोपीयनों को पटना बुला लेना इत्यादि अनेक कदम टेलर ने उठाए, जिससे ऊपर के पदाधिकारी, खासकर लेफ्टिनेंट गवर्नर हैलिडे बहुत नाराज हुए। परिणामस्वरूप 5 अगस्त, 1857 को विलियम टेलर को पदमुक्त कर दिया गया।
प्रस्तुत पुस्तक ‘पटना में 1857 की बगावत’ विलियम टेलर द्वारा अपने आपको दोषमुक्त साबित करने के लिए लिखी गई थी। इसमें उसने बताया है कि कितनी विषम परिस्थितियों में अपनी जान जोखिम में डालकर उसने अंग्रेज कौम का भला किया और एक सच्चे अंग्रेज का फर्ज निभाया।
पटना में स्वतंत्रता के प्रथम आंदोलन का जीवंत एवं प्रामाणिक इतिहास।
सन् 1857 के प्रसिद्ध जन विद्रोह के समय विलियम टेलर पटना का कमिश्नर था। पटना के विद्रोह को कुचलने में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। एक ही साथ वह दो चुनौतियों का सामना कर रहा था। एक तरफ उसे अंग्रेजी राज के खिलाफ उठ रही विद्रोह की चिंगारियों पर काबू पाना था, तो दूसरी तरफ पटना में हमवतन अंग्रेजों की सुरक्षा की जिम्मेवारी उसके कंधों पर थी। दुधारी तलवार पर चलते हुए उसने कई ऐसी गलतियाँ कीं, जिससे उच्च अंग्रेज पदाधिकारी उससे नाराज हो गए। फलस्वरूप उसे बीच में ही पदमुक्त कर दिया गया, जबकि वह सरकार से शाबाशी की उम्मीद कर रहा था। पदमुक्त होने के बाद भी विलियम टेलर पटना में बना रहा। इस दौरान वह खुद को दोषमुक्त करने की कोशिश करता रहा। कामयाबी नहीं मिलती देख वह सन् 1867 में इंग्लैंड चला गया। वहाँ जाकर उसने सन् 1857 के विद्रोह पर कई किताबें लिखीं। ‘पटना में 1857 की बगावत के तीन माह’ शीर्षक वृत्तांत उसने इसी पश्चात्ताप के क्षण में लिखा है।