₹300
झारखंड में सब कुछ है। यहाँ कुछ भी नहीं है। सरकार है। प्रशासन है। नेता है। पुलिस है। वायदे हैं। भाषण है। योजना है। घोटाला है। संघर्ष है। जीवन है। जल है। जमीन है। आदिवासी है। तमाशा है। लूट है। भ्रष्टाचार है। अखबार है। समाचार है। अदालत है। वकील है। न्याय है। अन्याय है। भूख है। गरीबी है। फटे हालजी है। कंगाली है। यहाँ तो रोटी पर नून नहीं है। खनिज है। संपदा है। बेरोजगारी है। मजदूर है। किसान है। गाँव है। खेत है। खलिहान है। सब उजड़ रहे हैं। जमीन छिन रही है। संघर्ष जारी है। पत्रकारिता के अखबारी दुनिया से अलग झारखंड संक्रमण के दौर में है। पत्रकारिता भी इसका शिकार है। इसलिए बिना अक्षरों का मुखौटा लगाए सच बयान करने का साहस कर रहा हूँ। पत्रकारिता तथा उसके सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक जीवन पर पड़ रहे प्रभाव का विश्लेषण किया गया है,
जो सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए रुचिकर है।
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अनुक्रम
मेरी बात — Pgs. 7
1. बिहार टू झारखंड — Pgs. 11
2. झारखंड की पत्रकारिता — Pgs. 18
3. मीडिया से बेदखल आदिवासी — Pgs. 23
4. जनसंघर्ष और मीडिया — Pgs. 29
5. पत्रकारिता व जनजाति — Pgs. 34
6. सांप्रदायिकता और अखबार — Pgs. 38
7. अखबार में घोटाला — Pgs. 42
8. न्यूज चैनलों का सफर — Pgs. 47
9. मीडिया का बाजारीकरण — Pgs. 52
10. यहाँ शगुन प्रथा नहीं — Pgs. 57
11. ग्रामीण पत्रकारिता का है भविष्य — Pgs. 62
12. पैकेजिंग की पत्रकारिता — Pgs. 66
13. पत्रकारिता अब समाज का दर्पण नहीं — Pgs. 71
14. निराशावाद की बैचेनी — Pgs. 74
15. पत्रकारिता जनता का हथियार — Pgs. 85
16. सब मुनाफे का धंधा — Pgs. 89
17. खतरनाक है सपनों का मरना — Pgs. 93
18. मौकाटेरियन पत्रकारिता — Pgs. 97
19. मीडिया में माओवाद — Pgs. 104
20. मीडिया की नीलामी — Pgs. 109
21. कस्बाई पत्रकारिता का सच — Pgs. 114
गाँव : मुरादपुर, जिला-सहरसा, बिहार।
शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिक शास्त्र)।
कृतित्व : लगभग दो दशक से पत्रकारिता, अमर उजाला, तहलका, दैनिक जागरण, साप्ताहिक हिंदुस्तान, समझ सूत्रधार, संध्या प्रहरी, नवभारत टाइम्स, संडे मेल, हिमालय दर्पण, विचार मीमांसा सहित दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में नौकरी।
प्रकाशन : ‘बॉर्डर लाईन’ (भारत-पाक जनजीवन पर आधारित रिपोर्ट), ‘बिहार-झारखंड भ्रूण-हत्या एक रिपोर्ट’ (नवभारत जागृति केंद्र से प्रकाशित), ‘दलुदास के हाथ क्यों कटे’ (भारत ज्ञान-विज्ञान समिति से प्रकाशित), पोपुलर एजुकेशन एण्ड एक्शन सेंटर (पीस) दिल्ली में दो वर्ष कार्यरत। ‘लोकसंवाद’ शोध-पत्रिका का संपादन। वर्ल्ड बैंक के खिलाफ वृत्त चित्र का निर्माण। पत्रकारिता के साथ-साथ सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन से जुड़ाव। लेखन के कारण देहरादून, पंजाब व बिहार में तीन बार जानलेवा हमला।