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आज दुनिया में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं मिलेगा, जो प्लास्टिक के पदार्थों को न जानता हो । गत पचास-साठ वर्षों से अनेक देशों में प्लास्टिक के पदार्थों का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जा रहा है । किंतु आम आदमी इन सभी पदार्थों को प्लास्टिक ही कहता है । प्लास्टिक पदार्थों के कई रूप हैं; जैसेकि पॉलिइथिलीन, पालिस्टायरीन, पी.वी.सी. आदि । किंतु आम आदमी प्लास्टिक के भेदाभेदों से अपरिचित है ।
' प्लास्टिक का रोचक संसार ' पुस्तक में पॉलिइथिलीन, पॉलिस्टायरीन, पीवी. सी., टेफलॉन, थर्मोकोल आदि विशेष प्रकार के प्लास्टिक पदार्थों और विशेषकर डायलिसिस के लिए उपयोग में लाए जानेवाले हॉलो फाइबर मेंब्रेन तथा कृत्रिम हार्ट वॉल्व, कृत्रिम दाँत, कॉण्टैक्ट लेंस, कृत्रिम अवयव आदि की रोचक जानकारी दी गई है ।
डॉ. एम. बी. साबणे ( जन्म : 7 जुलाई, 1942) ने पुणे विश्वविद्यालय से एम. एस - सी. तथा पी- एच. डी. ( विद्यावाचस्पति) की उपाधियाँ प्राप्त की हैं । आज वह पुणे की ही राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला में 1965 से बहुलक रसायन विज्ञान विभाग में शोधकार्यरत हैं । उनका शोधकार्य मुख्यत: प्राकृति/ कृत्रिम रबड़ तथा ' पॉलिमर रसायन विज्ञान से संबंधित विविध प्रकार के विषयों से संलग्न है । उनके अपने शोधकार्य पर आधारित कई शोध निबंध अतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक शोध पत्रिकाओं में समय- समय पर प्रकाशित हो चुके हैं ।
उनकी ' प्लास्टिक का इंद्रजाल पुस्तक को सितंबर 1996 में पंद्रह हजार रुपए का द्वितीय पुरस्कार सी. एस. आई. आर., नई दिल्ली से प्राप्त हुआ है । उसके पहले ही कृत्रिम रबड़ - नाइट्राइल रबड़ के विकास के लिए एन. आर. डी. सी., नई दिल्ली पुरस्कार मिला है ।
इंडियन सोसाइटी ऑफ प्लास्टिर ने सोशल अवेरनेंस अवार्ड - 1994 देकर सम्मानित किया है ।
पुणे महानगर पालिका ने 15 अगस्त, 1997, भारत का पचासवाँ स्वातंत्र्य दिन के अवसर पर ' गौरव पदक ' देकर सम्मानित किया ।