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राज्य-व्यवस्था चलाने के लिए पहले ' वरदीधारियों ' की एक ही जाति हुआ करती थी । सरकारी भाषा में उसे ' सिपाही ' कहा जाता था । लेकिन यह ' अंग्रेज श्री ' के भारत आने से पहले की बात है । अंग्रेज क्योंकि स्वभाव से ' विभाजन- प्रिय ' लोग हैं, सो उन्होंने अपनी इस विभाजन-प्रवृत्ति का परिचय देते हुए ' सिपाही जाति ' का रातोरात विभाजन कर दिया । उन्होंने इस जाति में से एक और प्रजाति निकाली, जिसका नाम रखा ' पुलिस ' ।
विभाजन के बाद इनके कार्यक्रम अलग- अलग हो गए । सिपाही शत्रु के विरुद्ध युद्ध छिड़ने के अवसर पर मोरचा सँभालते हैं, तो पुलिस अपने लोगों के बीच लड़ाई के अवसर पर । पहला लड़ने का काम करता है तो दूसरा लड़ाने का । और आप भलीभांति जानते हैं कि लड़ने से कहीं अधिक मुश्किल काम है लड़ाने का ।
बचपन में हम एक कहावत सुनते थे-' भाग रे सिपाही, चोर आया ' । तब हम नहीं समझते थे कि चोर के आने पर सिपाही का भाग जाना क्यों आवश्यक है! लेकिन अब समझते हैं और खूब समझते हैं, क्योंकि जैसे-जैसे पुलिस-तंत्र विकास की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे चोरों की दिलेरी और पुलिस की फरारी बढ़ रही है । इस झंझट से मुक्त होते हुए फिलहाल हम यह मुकदमा उन बुद्धिजीवी लेखकों के सुपुर्द करते हैं, जो इस सिद्धांत को नहीं मानते और पुलिस के अंदर झाँकने का बार-बार प्रयास करते हैं । आप इनसे मिलिए और पुलिस का चिट्ठा पढ़िए ।
तिल-तिलकर तिलमिलाने और हास्य स्थलों पर ठहाका लगाने को विवश करते हैं ये व्यंग्य ।
जन्म : सन् 1944, संभल ( उप्र.) ।
डॉ. अग्रवाल की पहली पुस्तक सन् 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरत साहित्य- साधना में रत आपके द्वारा लिखित एवं संपादित एक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में लेखन-कार्य किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता के साथ स्वीकार किया गया है । कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध, कोश और बाल साहित्य के लेखन में संलग्न डॉ. अग्रवाल वर्तमान में वर्धमान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर में हिंदी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष हैं । हिंदी शोध तथा संदर्भ साहित्य की दृष्टि से प्रकाशित उनके विशिष्ट ग्रंथों-' शोध संदर्भ ' ' सूर साहित्य संदर्भ ', ' हिंदी साहित्यकार संदर्भ कोश '-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है ।
पुरस्कार-सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा व्यंग्य कृति ' बाबू झोलानाथ ' (1998) तथा ' राजनीति में गिरगिटवाद ' (2002) पुरस्कृत, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली द्वारा ' मानवाधिकार : दशा और दिशा ' ( 1999) पर प्रथम पुरस्कार, ' आओ अतीत में चलें ' पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ का ' सूर पुरस्कार ' एवं डॉ. रतनलाल शर्मा स्मृति ट्रस्ट द्वारा प्रथम पुरस्कार । अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन, उज्जैन द्वारा सहस्राब्दी सम्मान ( 2000); अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानोपाधियाँ प्रदत्त ।