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संदर्भ व्यक्ति का हो या समाज का, राष्ट्र का हो अथवा विश्व का, प्रगति तथा अनुशासन दोनों की ही भूमिका परम महत्त्व की है। दूसरे शब्दों में, वास्तविक प्रगति और अनुशासन दोनों की ही मर्यादाओं का सतत आदर करने में ही व्यक्ति का, समाज का, राष्ट्र तथा विश्व का कल्याण निहित है। साथ ही इन दोनों में से किसी एक की भी अवहेलना होने पर व्यक्ति, समाज, राष्ट्र तथा विश्व सभी विनाश की ओर उन्मुख होंगे, इसमें किंचित् भी संशय नहीं है। दोनों ही तत्त्व एक-दूसरे पर इतने अवलंबित हैं कि दोनों का अध्ययन एक ही स्थान पर करना आवश्यक हो गया।
अनुशासन एवं प्रगति जैसे अत्यंत गहन और महत्त्वपूर्ण विषयों को समझने से पूर्व यह आवश्यक होगा कि हम एक बार अपने चारों ओर देखें और थोड़ा सा ही अंकन इस बात का करें कि आज के मानव की, विशेषतः हमारे देशवासियों की क्या दशा है?
—इसी पुस्तक से
इस पुस्तक में जीवन को संस्कारवान बनाने और उसे सही दिशा में ले जाने के जिन सूत्रों की आवश्यकता है, उनका बहुत व्यावहारिक विश्लेषण किया है। लेखक के व्यापक अनुभव से निःसृत इस पुस्तक के विचार मौलिक और आसानी से समझ में आनेवाले हैं।
जीवन को सफल व सार्थक बनाने की प्रैक्टिकल हैंडबुक है यह कृति।
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अनुक्रमणिका
प्राक्कथन — Pgs. 7
1. कर्म की महिमा — Pgs. 23
2. प्रगति और अनुशासन — Pgs. 101
स्वर्गीय रायबहादुर महाबीरसिंह सिंहल के सात पुत्रों में पाँचवें। बाल्यकाल में एक असाधारण स्काउट और सर्वांगीण सर्वोत्कृष्ट छात्र के नाते इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सन् 1954-55 सत्र के एकमात्र चांसलर्स पदक विजेता। यहीं से फिजिक्स में एम.एस-सी. और एल-एल.बी. की उपाधियाँ पाईं। सन् 1955 में आई.पी.एस. में चुने गए। उत्तर प्रदेश में नियुक्ति हुई। पुलिस अधीक्षक, आई.जी. पुलिस, प्रशिक्षण विद्यालय के प्रधानाचार्य जैसे पदों पर कार्य करते हुए भारत सरकार में अतिरिक्त गृह सचिव तथा महानिदेशक नागरिक सुरक्षा के महत्त्वपूर्ण पद से सेवा-निवृत्त हुए। अपने अनुकरणीय जीवन से असंख्य पुलिस अधिकारियों के आदर्श बने। दस्यु-उन्मूलन, अदम्य साहस, वीरता तथा सराहनीय सेवाओं के लिए राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित। सेवा-निवृत्ति के बाद केंद्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष नियुक्त हुए। वर्ष पर्यंत त्याग-पत्र देकर राजनीति में प्रवेश। राजनीति करने नहीं, राजनीति के क्षेत्र में चरित्रवान, प्रतिष्ठित लोगों के पुनरागमन को प्रेरित करने के लिए।
अपने सेवाकाल में दस हजार कॉलेज और यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों एवं प्राध्यापकों के अलावा आई.पी.एस., आई.ए.एस. तथा राज्यों की प्रशिक्षण संस्थाओं एवं विदेश में लेक्चर देते रहे हैं। इन वार्त्ताओं को सुनने पर श्रोता एक ऐसी दुनिया में पहुँच जाते हैं, जहाँ प्रकाश-ही-प्रकाश है।