एक बार गांधीजी के पास नेहरू, पटेल, आजाद (अबुल कलाम आजाद), जिन्ना बैठे हुए थे। उन्हें ध्यान आया कि अब बकरी की टूटी टाँग में पट्टी बाँधने का समय हो गया है और वे जिन्ना से बोले, ‘‘आप थोड़ा बैठें, मैं अभी दो मिनट में आता हूँ।’’ गांधीजी वहाँ से उठे और बकरी की टाँग में पट्टी बाँधने के उपरांत उसी स्थान पर आ गए, जहाँ पर सभी लोग बैठे हुए थे। उनकी निगाह में आजादी के लिए काम करना और बकरी की टाँग में पट्टी बाँधना समान महत्त्व रखते थे। ऐसे थे बापू, जिनमें मूक पशुओं के प्रति भी करुणा का भाव था।
पं. ईश्वरचंद्र विद्यासागर को एक आवश्यक पत्र देने एक पत्रवाहक उनके आवास पर आया। विद्यासागर ऊपर की मंजिल पर थे। उनके नीचे आने के इंतजार में पत्रवाहक बैठ गया। ग्रीष्म की भयंकर दोपहर थी। बेचारे को झपकी आ गई। इतने में कोई परिचित वहाँ पहुँचा। विद्यासागरजी को पंखा डुलाते देख, वह हैरान रह गया। आगंतुक बोला—‘‘इस सात रुपए वेतन पाने वाले को आप जैसे बड़े आदमी पंखा झले, यह उचित नहीं लगता।’’ विद्यासागर बोले, ‘‘अरे भाई, मेरे पिताजी ने अपने सात रुपए के वेतन से ही हमारे सारे परिवार को पाला था। भरी दोपहरी में वे नौकरी पर जाया करते थे।’’
—इसी पुस्तक से
मानवता के जीवन मूल्यों में गुँथी यह पुस्तक पाठकों को विचार और संस्कार देगी, ताकि इन्हें जीवन में उतारकर वे समाज-निर्माण में सहयोग कर सकें।
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अनुक्रम | ||
संदेश—7 | 65. अच्छे पड़ोसी की पहचान—77 | 131. राम द्रोही का शव गिद्ध भी नहीं खाते—128 |
भूमिका—9 | 66. सादगी में छिपी महानता—78 | 132. राजा विक्रमादित्य—129 |
1. नेकी—19 | 67. निरर्थक आलोचना व्यर्थ है—79 | 133. परिश्रम का फल—129 |
2. आत्मसम्मान का महत्त्व—19 | 68. शकटार की ईमानदारी—80 | 134. ज्ञान प्राप्ति में सजगता की सीख दी गौतम बुद्ध ने—130 |
3. दूसरों की भलमनसाहत का अनुचित लाभ नहीं उठाएँ—20 | 69. लोभ पाप का मूल—81 | 135. जब फ्रेंकलिन ने दुकानदार से पुस्तक खरीदी—130 |
4. मेहनत की कमाई का महत्त्व—21 | 70. भौतिक वस्तुओं के प्रति निर्मोही—82 | 136. छोटों की राय—131 |
5. प्रेम से दी गई वस्तु का अनादर नहीं करना चाहिए—22 | 71. हृदय का अंतर—83 | 137. अपना भद्दा चित्र देखकर प्रसन्न हुआ ओलिवर—132 |
6. राजा को सीख—22 | 72. सज्जनता सर्वोपरि—84 | 138. जब लियो टालस्टॉय ने बिना प्रमाण-पत्र वाले को चुना—133 |
7. रूढ़िग्रस्त व्यवस्था का विरोध—23 | 73. अच्छी वस्तु का दान करें—85 | 139. जब बालक के स्वावलंबन को नमन किया बापू ने —134 |
8. अनुचित कर्म से हानि—24 | 74. कला के मूल्यांकन का आधार कला होती है—86 | 140. आदर्श व्यक्तित्व—135 |
9. चलने वाले को सफलता मिलती है—25 | 75. अभ्युदय के लिए दान का महत्त्व—86 | 141. गुरु नानक की शिक्षा—136 |
10. सुप्रिया ने दान से की दुर्भिक्ष पीड़ितों की सहायता—26 | 76. मेवाड़ की गौरवगाथा—87 | 142. रेखाओं से शिक्षा—136 |
11. स्वामी राम तीर्थ का चमत्कारी व्यक्तित्व—27 | 77. विचारों की उच्चता—88 | 143. देशभक्ति का जज्बा—137 |
12. सुकुमार बालक की पीड़ा—28 | 78. समयानुसार व्यवहार करें—89 | 144. प्रेरणादायक व्यक्तित्व—137 |
13. कोशल नरेश का आदर्श—29 | 79. चमत्कारिक शिवलिंग—90 | 145. दुष्ट का स्वभाव—138 |
14. तेग हिंदुस्तान की—30 | 80. मनुष्य की तीन स्थितियाँ—91 | 146. मुस्लिम समाज एवं महिलाएँ—138 |
15. राष्ट्रसेवा प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य—31 | 81. जब रानी ने मृत्युदंड से मुक्ति दिलाई —92 | 147. जब संत रज्जब के स्पर्श से दुर्जन भी सज्जन बन गया—139 |
16. आस्तिकता का अस्तित्व—32 | 82. लक्ष्मीजी प्रेम भरे घर में निवास करती हैं—93 | 148. धन की तीन अवस्थाएँ—139 |
17. भगवान् द्वारा सहायता—33 | 83. संतोष में शांति निहित है—93 | 149. मुझे जरूरत नहीं—140 |
18. कर्म के प्रति सच्ची लगन—34 | 84. पापिनी को जीवन-दान—94 | 150. उत्तम पुरुष का वैर जल की लकीर के समान होता है—141 |
19. विलासिता विनाश का कारण—35 | 85. ईश्वरीय आस्था—95 | 151. गौतम बुद्ध से शिष्य श्रोण ने जाना संतुलित जीवन का राज—142 |
20. सबसे बड़ा पुण्य—36 | 86. गंगा के स्तुतिगान का प्रभाव—96 | 152. माँ ने संत विनोबा को परसेवा के सही मायने समझाएँ—143 |
21. चित्रकार की निष्पक्षता—36 | 87. रामकृष्ण और गुड़—97 | 153. आम आदमी बने रहे शास्त्रीजी—143 |
22. न्यायाधीश का निष्पक्ष निर्णय—37 | 88. मरीज की सेवा ही भगवान् की पूजा—98 | 154. चींटियों से बालकों ने सीखा सहभाव का पाठ—144 |
23. भाई की उदारता—38 | 89. भगवान् द्वारा परीक्षा—98 | 155. ईश्वर का अमूल्य वरदान है माँ—145 |
24. महाराणा प्रताप द्वारा चेतक का चयन—39 | 90. प्रकृति सदैव अजेय है—99 | 156. अबू हसन ने बताया संन्यास का अर्थ—146 |
25. परमेश्वर ने संसार प्राणियों से प्रेम करनेवाला बनाया है—40 | 91. रावण का झूठा अहंकार—100 | 157. हेनरी फोर्ड की सादगी ने दिल छू लिया—147 |
26. दो संतों का हृदय से जुड़ाव—41 | 92. सत्य पर बल—101 | 158. गुरु से जाना प्रेम व परिश्रम का महत्त्व—148 |
27. गुरु-शिष्य संबंध की मर्यादा—42 | 93. शारदा देवी का आशीर्वाद—101— | 159. पिप्पलाद ने देवताओं को किया क्षमा—149 |
28. देशभक्ति के सामने पैसे का कोई महत्त्व नहीं—43 | 94. हठ ठीक नहीं—102 | 160. सादगीपसंद थे टॉमस जैफरसन—150 |
29. धन-संपदा का मोह त्याग—44 | 95. सेवा के लिए शारीरिक पीड़ा बाधक नहीं हो सकती—103 | 161. आइंस्टाइन की सादगी से प्रभावित हुईं महारानी—151 |
30. अधिक सुख और सम्मान हानिकारक—46 | 96. घाट का पत्थर—104 | 162. जब प्रेमचंद ने खिताब ठुकराया—152 |
31. ईश्वर पर अटूट विश्वास—47 | 97. पुस्तक की कीमत की भरपाई—105 | 163. राजा ने लकड़हारे से सीखा कर्म का मर्म—152 |
32. ईश्वरभक्ति के लिए एकाग्रता—48 | 98. भावना का सम्मान—105 | 164. कविता की लंबाई नहीं, मर्म महत्त्वपूर्ण—153 |
33. युधिष्ठिर द्वारा भीष्म पितामह से उपदेश ग्रहण—49 | 99. माँ पर श्रद्धा—106 | 165. उपहास करने पर मिला करारा जवाब—154 |
34. खुदीराम बोस की देशभक्ति—50 | 100. पति पर अटूट आस्था—107 | 166. कीलें ठोककर पाया गुस्से पर काबू—155 |
35. चेतक की स्वामिभक्ति—51 | 101. महत्त्वाकांक्षा अधिकार की भूख है—108 | 167. एक शिष्य और चौबीस गुरुओं की सीख—156 |
36. पुरस्कार की सुगंध —52 | 102. बालक का स्वावलंबन—108 | 168. पिकासो ने की अनोखे तरीके से मदद—157 |
37. महादेव राव गोविंद रानाडे की न्याय में आस्था—53 | 103. मैत्रेयी की सांसारिक वस्तुओं से विरक्ति—109 | 169. जब कला के लिए समर्पण की जीत हुई—158 |
38. स्त्री की मूर्खता—54 | 104. शंकराचार्य द्वारा चांडाल से प्रेरणा—110 | 170. चटर्जी महाशय को पड़ा भारी व्यंग्य—159 |
39. वचन का पालन—55 | 105. स्वाभिमानी मालवीयजी—111 | 171. पत्नी का आदर्श—160 |
40. महान् नारी—56 | 106. मिथ्या अभिमान—112 | 172. पत्नीभक्ति—161 |
41. अमरसिंह राठौर का शौर्य—57 | 107. धार्मिक आचारों की पालना आस्था का विषय है—113 | 173. चुराए हुए पदार्थ की चोरी—161 |
42. सोमनाथ मंदिर—58 | 108. मानव ने मानव के बीच भेद पैदा किए हैं—114 | 174. चीनी श्रवण कुमार—163 |
43. दारा शिकोह—58 | 109. जनता की उन्नति ही मोक्ष प्राप्ति का साधन—115 | 175. नीति का महत्त्व—163 |
44. निजामुद्दीन औलिया और उनका मुरीद—59 | 110. विपत्ति के समय रक्षा पहली जरूरत—115 | 176. विद्या की शोभा सदाचार—164 |
45. संत की महानता—59 | 111. देशभक्त सपूत पर गर्व होता है—116 | 177. पेशवा में परिवर्तन—165 |
46. संत एकनाथ की उदारता—60 | 112. एक होकर देशहित के कार्यों में योग दें—117 | 178. समान व्यवहार—166 |
47. बहुमत का सत्य होना जरूरी नहीं—61 | 113. वराह प्रसंग—118 | 179. विश्वेश्वरैया के चार सूत्र—167 |
48. मृत्यु की राह—62 | 114. राजा भोज की रानी को सीख—119 | 180. हार से प्रेरणा—168 |
49. खुदा की मर्जी—62 | 115. राहुल सांस्कृत्यायन की सरस्वती श्रद्धा—120 | 181. मनुष्य—एक संकल्प मात्र—168 |
50. राजकुमारों की परीक्षा —63 | 116. विनोबा की माँ के प्रति अपार श्रद्धा—120 | 182. मुस्कराते हुए अपने कर्तव्य के प्रति आस्था—169 |
51. बालिका किस भाषा में रो रही है?—64 | 117. सादगी—120 | 183. युधिष्ठिर का प्रश्न—170 |
52. ‘खाना’ नहीं ‘प्रसाद’—65 | 118. एक नहीं दोनों—121 | 184. पिता द्वारा पुत्र में परिवर्तन लाना—171 |
53. असंभव भी संभव : युक्ति और शक्ति के सहारे —66 | 119. परोपकार की प्रधानता—121 | 185. अनवरत प्रयास से फल की प्राप्ति—172 |
54. स्पर्श पारस का—67 | 120. दीर्घ लोभ को सच्चे ज्ञान की अनुभूति—122 | 186. पुरुषार्थ का महत्त्व—173 |
55. जिंदगी दूसरों के हाथों में नहीं दूँगा—68 | 121. गुरु की महत्ता—123 | 187. सफलता का आधार—174 |
56. सबने खुद को ही देखा—68 | 122. लोभवृत्ति का त्याग—123 | 188. किसानों का संकल्प—175 |
57. गुरु-शिष्य का परस्पर भाव—69 | 123. सात रुपए वेतन—124 | 189. दरिद्रनारायण की सेवा ही प्रमुख—175 |
58. व्यक्तिगत संबंधों में कटुता नहीं आनी चाहिए—70 | 124. धन की मनुहार—124 | 190. धन्वंतरि द्वारा जड़ी-बूटियों की खोज—176 |
59. कर प्राप्त राशि जनकल्याण में खर्च हो—71 | 125. वस्तु का सदुपयोग—125 | 191. गुरु द्वारा दिए गए तीन उपहार—177 |
60. सच्ची कमाई परिश्रम की है—73 | 126. वस्तु के दुरुपयोग को रोकना—125 | 192. पुरुषार्थ—179 |
61. पद की अपेक्षा कर्म और व्यवहार श्रेष्ठ है—73 | 127. दुरुपयोग के विरोधी—126 | 193. सच्चा उपदेशक कौन?—179 |
62. साहित्य का सम्मान—74 | 128. छोटे जीवों के प्रति गांधीजी की आस्था—126 | 194. परिश्रम का महत्त्व—180 |
63. मिल-जुलकर रहना महत्त्वपूर्ण है—75 | 129. महान् तर्कशास्त्री उदयन—126 | 195. पुरुषार्थ ही सबकुछ—180 |
64. इच्छा और तृष्णा से दूर रहें—76 | 130. आदर्श गुरु जिसका दुनिया में कोई सानी नहीं—127 | 196. आज बस आज—181 |
197. संकल्प के धनी—182 |
जन्म : 19 अगस्त, 1934।
शिक्षा : एम.ए. (राजनीति विज्ञान), बी.टी.।
कर्तृत्व : समाज के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, पूर्व जिला समाज-अध्यक्ष, स्थानीय समाज के पूर्व अध्यक्ष, समाज के राष्ट्रीय संरक्षक, जिला वैश्य महासम्मेलन-उपाध्यक्ष, समाज पत्रिका प्रभारी, सुंदरदास पुस्तकालय की स्थापना, स्थानीय समाज भवन में संत श्री सुंदरदास एवं बलराम दासजी की प्रतिमाओं की स्थापना, स्थानीय मंडी चौराहा पर संत श्री सुंदर दास की प्रतिमा की स्थापना, स्थानीय स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में सेवा कार्य।
प्रकाशन : ‘प्रकृति की गोद में’, ‘सांस्कृतिक उत्थान का मार्ग’, ‘कर्म ही पूजा है’, ‘परमार्थ ही जीवन है’ प्रकाशित।
संपर्क : वार्ड नं. 16, खेरली जिला अलवर (राज.)।