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प्रपंचपंचशती की परिकल्पना एवं रचना एक मुक्तक काव्य के रूप में की गई है। पाँच सौ पद्यों के विस्तार में रचित इस काव्य में प्रपंच रूप जगत् तथा उसके अंशभूत मानव समाज, विशेष रूप से भारतीय समाज की विविध सामयिक प्रवृत्तियों एवं सामान्य जनों के मनोभावों व विचारों का सार रूप में दिग्दर्शन व विवेचन किया गया है। काव्य में जिन विषयों का विचार किया गया है, वे हैं नीति, लोक, प्रकृति, नारी, राजनीति, शिक्षा, वाक्, धन, धर्म, जीवन व मृत्यु, काल आदि। मुक्तक काव्य होने के नाते इसके पद्यों में किसी भी विषय का सांगोपांग तथा शास्त्रीयता से पूर्ण विस्तृत विवेचन नहीं किया गया है। एक ही विषय को लेकर विभिन्न अवसरों पर रचित सभी पद्यों को एक ही विषयसूचक शीर्षक के अंतर्गत संकलित किया गया है। काव्य के नामकरण में प्रपंच शब्द का प्रयोग इसके शास्त्रीय अभिप्राय को लेकर नहीं, अपितु इसके लोक प्रचलित अर्थ को ही लेकर किया गया है। इसमें कहीं सामान्य रूप से वर्णनात्मक, कहीं व्याख्यात्मक तो कहीं व्यंग्यात्मक शैली का आश्रय लिया गया है। जिन विषयों व भावों को इसमें प्रकट किया गया है, वे लेखक की अपनी विचारणा, लोकदृष्टि व जीवनदृष्टि के सूचक हैं।
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विषयानुक्रमः
भूमिका — Pgs. ३
१. प्रस्तावना — Pgs. ९
२. नीतिः — Pgs. ११
३. लोकः — Pgs. २५
४. प्रकृतिः — Pgs. ६४
५. नारी — Pgs. ७८
६. राजनीतिः — Pgs. ८४
७. शिक्षा — Pgs. ९६
८. वाक् — Pgs. १००
९. धनम् — Pgs. १११
१०. धर्मः — Pgs. ११६
११. जीवनं मृत्युश्च — Pgs. १२३
१२. कालः — Pgs. १२९
१३. क्रीडाकौतुकम् — Pgs. १३५
१४. मनोभावाः — Pgs. १३८
१५. लेखकपरिचयः — Pgs. १४३
जन्म : 6 अक्तूबर, 1932 को जयपुर (राज.) में।
शिक्षा : एम.ए. (संस्कृत व हिंदी), पी-एच.डी. (संस्कृत)।
कृतित्व : ‘संस्कृत नाटक में अतिप्राकृत तत्त्व’ (शोध ग्रंथ), ‘सिकता का स्वप्न’ (काव्य-संग्रह), ‘राजरत्नाकर महाकाव्य’ हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर संस्कृत मूलपाठ का संपादन एवं अनुवाद, ‘भगवद्गीता-काव्य’ (गीता का काव्यानुवाद), ‘भर्तृहरि का नीति शतक’, ‘भर्तृहरि का श्रृंगार शतक’, ‘भर्तृहरि का वैराग्य शतक’ (मुक्तछंदीय काव्यानुवाद), ‘रघुवंश महाकाव्य’ (काव्यानुवाद), ‘पर्यावरणशतकम्’ (संस्कृत काव्य)।
सम्मान-पुरस्कार : मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार तथा राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली; राजस्थान सरकार तथा राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर द्वारा विद्वत्सम्मान।