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प्रस्तुत पुस्तक में प्रशिक्षण से संबंधित सभी प्रमुख पहलुओं के विविध आयामों की चर्चा की गई है। नौ खंडों में वर्णित ये पहलू हैं—संगठन में प्रशिक्षण की भूमिका और महत्त्व, प्रशिक्षक की भूमिका, सिखाने के मनोवैज्ञानिक पक्ष, प्रशिक्षण प्रबंध के आवश्यक अंगों की चर्चा, संप्रेषण कला का विकास, प्रशिक्षण के प्रमुख तरीके और उनका अभ्यास, सहायक सामग्री और प्रशिक्षण की समीक्षा एवं मूल्यांकन आदि।
पुस्तक का उपयोग व्यावहारिक ढंग से किया जा सके, इसके लिए इसमें अनेक प्रयोग, सुझाव, अभ्यास, जाँच-यंत्र आदि सम्मिलित किए गए हैं। प्रशिक्षण से किसी भी तरह से संबद्ध पाठकों के लिए उपयोगिता का ध्यान रखते हुए प्रस्तुत पुस्तक की रचना की गई है। विश्वास है, यह कृति पाठकों के लिए जानकारीपरक व उपयोगी सिद्ध होगी।
जन्म : 12 जून, 1933 को कानपुर में।
शिक्षा : एम.कॉम., एम.ए. (अंग्रेजी), साहित्यरत्न, डिप्लोमा ट्रेनिंग मैनेजमेंट (यू.के.)।
कार्मिक प्रबंध : औद्योगिक संबंध, वेलफेयर और प्रशिक्षण के क्षेत्रों में छत्तीस वर्ष से अधिक का विशद् अनुभव। सरकारी और निजी संगठनों के मैनेजरों एवं पर्यवेक्षकों के लिए लगातार प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन, प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण।
प्रकाशन : प्रबंधन-साहित्यिक-सांस्कृतिक विषयों पर अनेक पुस्तकें प्रकाशित। अनुशासन प्रबंध कला, सार लेखन प्रारूपण और पत्र-व्यवहार, सेवा नियम और श्रम कानून संहिता, औद्योगिक प्रबंध कला, आयकर कार्यालय पद्धति तथा नियम-कानूनों पर कई पुस्तकों की रचना (अनेक पुरस्कृत भी)। असम में हिंदी लेखन-माला के अंतर्गत ‘मुट्ठी-मुट्ठी अक्षत’ एवं ‘कुछ कहानियाँ’ तथा अनेक लेख, कहानियाँ, कविताएँ, नाटक, रूपक, रेडियो-वार्त्ताओं की रचना। अनेक पत्रिकाओं, जर्नलों व पाठ्य सामग्री का संपादन।
भारत सरकार के परिवहन मंत्रालय का प्रथम पुरस्कार 1986, ‘इंदिरा गांधी पुरस्कार’ 1987।