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स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देनेवाले अनेक वीर सपूतों की कथा हमें पढ़ने को मिलती है, परंतु यह कथा एक ऐसे वीर पुरुष की है, जिसे 1942 से लेकर 1982 तक लड़ाई लड़नी पड़ी। पहले अंग्रेजों से और बाद में उस व्यवस्था और मानसिकता से जो अंग्रेज छोड़ गए।
प्रयाग में जन्म लेनेवाला यह वीर 17 वर्ष की आयु में ही स्वतंत्रता संग्राम में कूद गया। 1942 से 1946 तक जेल में रहा, यातनाएँ सहीं पर हारा नहीं। स्वतंत्र भारत में किस प्रकार उसका उत्साह तथा सेवा की भावना कुंठित हुई, उसे विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा और किस प्रकार संघर्ष करते त्रासदी व विषाद में सन् 1982 में उसकी मृत्यु हुई, यही है प्रताप की संघर्ष-गाथा जो आपको यह सोचने के लिए विवश करेगी कि क्या यह भारत स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सपनों का भारत नहीं है? क्या हमारा स्वतंत्रता संग्राम अधूरा रह गया?
सन् 1942 में हम क्या थे, 1982 तक क्या हुए और आज हम कहाँ पहुँच गए, इस पर चिंतन कर भविष्य के भारत का निर्माण करना प्रत्येक भारतवासी का उत्तरदायित्व है।
जन्म : 20 जुलाई, 1958, सहारनपुर।
स्वतंत्रता सेनानी पिता से प्रेरित होकर बाल्यकाल से देशभक्ति के गीतों का लेखन व मंचन प्रारंभ कर दिया। देश व समाज की समस्याओं को लेकर लघु फिल्मों का निर्माण किया। दूरदर्शन व मंचों पर अहोम शासकों के अत्याचार व विदेशी आक्रांताओं के विरुद्ध विद्रोह पर आधारित अज्ञेय रचित ‘जयदोल’ तथा जयशंकर प्रसाद रचित ‘ध्रुवस्वामिनी’ में नायक की भूमिका अभिनीत की। कुंभ, गंगा स्वच्छीकरण, राष्ट्र निर्माण व कन्याओं के लिए प्रेरणागीत लिखे व स्वरबद्ध किए। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम व भगवान् कृष्ण पर अनेक गीत व भजन लिखे व मंचों पर प्रस्तुत किए।
जिलाधिकारी हरदोई व उत्तर प्रदेश शासन में निदेशक महिला कल्याण, महानिदेशक युवा कल्याण व सचिव उच्च शिक्षा के पदों पर रहते हुए शिक्षा से विमुख निर्धन कन्याओं के लिए विशेष शिक्षा केंद्र, विकलांग व मंदबुद्धि निराश्रित कन्याओं के लिए पुनर्वास केंद्र, युवक व महिला मंगल दलों के संगठन का राष्ट्रीय कार्यों में योगदान आदि सफल प्रयोग किए।
इ-मेल : rameshmisralko@gmail.com