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पहला सूरज और पवनपुत्र जैसे बहुचर्चित ऐतिहासिक एवं पौराणिक उपन्यासों के पश्चात् श्रीकृष्ण पर आधारित यह बृहत्काय कृति उनके जीवन के पूर्वार्द्ध को अत्यन्त रोचक भाषा और आकर्षक शैली में प्रस्तुत करती है ।
सिद्धहस्त लेखक ने श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े चमत्कारों की वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत करते हुए आज के जीवन में उसकी प्रासंगिकता को अत्यन्त सफलतापूर्वक रेखांकित किया है ।
उपन्यासकार की अवधारणा है कि भगवान् पैदा नहीं होता, बनता है । व्यक्ति ही अपने कृत्यों, आचरणों एवं चरित्र के बल पर शनै: -शनै: मनुष्यत्व से देवत्व, और देवत्व से ईश्वरत्व की ओर अग्रसर होता है ।
आधुनिक काल में, जहां जीवन-मूल्य विघटनकारी तत्त्वों के आखेट हो रहे हैं, मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना ही इस आदर्शोन्मुख उपन्यास का लक्ष्य है, जिसमें लेखक को पर्याप्त फल मिला है । भाषा की प्रांजलता एवं कथा की अबाध गतिशीलता ग्रन्थ को पठनीय बनाती है ।
भगवतीशरण मिश्र नाम है एक ऐसे साहित्यकार का जिनकी ऐतिहासिक एवं सामाजिक औपन्यासिक कृतियों द्वारा अपनी एक विशिष्ट पहचान बन गयी है । उन्होंने अपने समकालीनों को सचमुच मीलों पीछे छोड़ दिया है । विलक्षण भाषा, मनोहारी शिल्प और प्रस्तुतीकरण का वह अप्रतिम अंदाज ही उनकी कृतियों की विशेषता है जो केवल उन्हीं की हो सकती है । हजारों पंक्तियों के बीच में से भी डॉ. मिश्र की पंक्ति को पहचान लेना उनके हर पाठक के लिए सरल है ।
प्रमुख कृतियां
हिन्दी - प्रथम पुरुष, पुरुषोत्तम, एकला चलो, पीताम्बरा, बंधक आत्माएं यदा यदा हि धर्मस्य, नदी नहीं मुड़ती, सूरज के आने तक, शापित लोग, मील के पत्थर, ऊंचाइयों का ईश्वर, पहला सूरज, काके लागूं पांव, पवनपुत्र, एक और अहिल्या ।
अंग्रेजी - In Defence of Nonsense, Municipal Taxation In a Developing Economy, The Gita : All Riddles Resolved.