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प्राय: देखा गया है कि किसी घायल व्यक्ति या किसी रोगी की बिगड़ती अवस्था को देखकर हमारे हाथ-पाँव फूल जाते हैं, हम किंकर्तव्यविमूढ़ की अवस्था में खड़े एक दर्शक मात्र रह जाते हैं—यह हमारे अज्ञान का द्योतक है। यदि चिकित्सकीय उपचार की हमें तनिक भी जानकारी हो तो रोग को और बिगड़ने या संक्रमण आदि से बचाया जा सकता है। ऐसे रोगों में (यथा—दिल की बीमारी), जिनमें उपचार की प्रारंभिक सहायता में तनिक भी देरी किए जाने से रोगी की जान भी जा सकती है, प्राथमिक उपचार की भूमिका देवदूत सी है।
प्राथमिक उपचार वह उपचार है, जो किसी दुर्घटना में घायल व्यक्ति को अथवा किसी भयंकर रोग से अचानक पीड़ित हो जानेवाले व्यक्ति को तत्काल दिया जाता है। इसका उद्देश्य पीड़ित व्यक्ति के जीवन की रक्षा करना, उसे पीड़ा से राहत पहुँचाना, उसकी हालत को और अधिक बिगड़ने से रोकना तथा उसे पुन: स्वस्थ होने में मदद देना होता है। यह साधारण व्यक्ति द्वारा कुशल चिकित्सकीय सुविधाएँ उपलब्ध होने तक दिया जानेवाला ‘जीवनरक्षक उपचार’ है।
सरल भाषा और सचित्र व्याख्या के साथ प्रस्तुत यह बहूपयोगी पुस्तक हर आयुवर्ग के पाठकों के लिए ही नहीं, हर परिवार के लिए संग्रहणीय है।
जन्म : 8 दिसंबर, 1929 ।
आरंभिक शिक्षा जबलपुर ( मध्य प्रदेश) में । कुछ वर्षों तक रसायनशास्त्र में शोध करने के पश्चात् हिंदी में विज्ञान लेखन । 1958 से ' विज्ञान प्रगति ' ( कौंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च की हिंदी विज्ञान - मासिक) से संबद्ध; 1964 से पत्रिका का संपादन । दिसंबर 1989 में संपादक पद से अवकाश ग्रहण ।
हिंदी में विभिन्न वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों पर प्रकाशित पुस्तकों और पत्रिकाओं के विवरणों का आकलन और तृतीय विश्य हिंदी सम्मेलन के अवसर पर ' हिंदी में वैज्ञानिक और तकनीकी प्रकाशन निदेशिका ' का प्रकाशन ।
विविध वैज्ञानिक विषयों पर हिंदी में सैकड़ों लेख प्रकाशित और रेडियो वार्त्ताएँ प्रसारित । कुछ पुरस्कृत पुस्तकें है - अनंत आकाश : अथाह सागर (यूनेस्को पुरस्कार, 1969), सूक्ष्म इलेक्ट्रानिकी (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, 1987), प्रदूषण : कारण और निवारण (पर्यावरण और वन मंत्रालय, भारत सरकार, 1987), आओ चिड़ियाघर की सैर करें (हिंदी अकादमी, दिल्ली, 1985 - 86), विज्ञान परिषद् इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट संपादन हेतु सम्मानित ।