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गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर प्रतिवर्ष लगनेवाले माघमेले, छह वर्ष पर होनेवाले अर्धकुंभ और बारह वर्ष पर पड़नेवाले पूर्ण कुंभ पर्वोत्सव को लक्ष्य कर तीर्थराज प्रयाग की पौराणिकता, गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों नदियों की पावनता, यहाँ के पुण्यप्रदायक प्रमुख तीर्थस्थलों, उपतीर्थस्थलों, द्वादशमाधव, परमपुण्यदायक अक्षयवट, पातालपुरी मंदिर, सरस्वती कूप, समुद्रकूप, हंसप्रपत्तन, वासुकि मंदिर, तक्षकेश्वर मंदिर जैसे प्रसिद्ध तीर्थ-कुंडों की पौराणिकता और उनके प्राचीनतम माहात्म्य पर आधारित प्रस्तुत पुस्तक ‘प्रयागराज-कुंभ-कथा’ एक ऐसी दिग्दर्शिका है, जिसमें प्रयागराज की गौरव-गाथा का मात्र स्मरण किया गया है।
यहाँ की पावन भूमि पर अवतरित होनेवाले अन्यान्य देवताओं, तपश्चर्या करनेवाले असंख्य ऋषियों, महर्षियों, मुनियों, साधु, संत, महात्माओं और आस्थावान् श्रद्धालुओं की भक्तिभावना को समुद्धृत करने का उपक्रम किया गया है, जिनकी महिमा का गुणगान पौराणिक ग्रंथों में उपलब्ध है।
तीर्थराज प्रयाग में कुंभपर्व पर आनेवाले शंकराचार्यों, महंतों, मठाधीशों, साधु, संतों, स्नानार्थियों और कल्पवासियों की परंपरा, उनकी दिनचर्या और उनके आकर्षक आयोजनों का दर्शनीय वर्णन भी प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन में प्रमुख रूप से प्रतिपाद्य बनाने का प्रयास किया गया है।
महाकुंभ पर एक संपूर्ण पुस्तक।
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अनुक्रम
आत्मोद्गार —Pgs. 5
1. प्रयागराज अतीत और वर्तमान : एक परिचय —Pgs. 13
2. पुराणों में प्रयाग —Pgs. 18
3. कुंभ-माहात्म्य —Pgs. 24
4. प्रयाग में कुंभोत्सव और माघ का माहात्म्य —Pgs. 32
5. गंगा का पौराणिक माहात्म्य —Pgs. 39
6. प्रयाग में गंगा माहात्म्य —Pgs. 47
7. यमुना का पौराणिक माहात्म्य —Pgs. 58
8. प्रयाग में सरस्वती का प्रादुर्भाव —Pgs. 67
9. कुंभ महापर्व के गौरव—साधु-संत और अखाड़े —Pgs. 71
10. प्रयाग का कुंभ महापर्व-2013—एक अनुभव —Pgs. 82
11. सरस्वती कूप—एक जिज्ञासा —Pgs. 93
12. प्रयाग में अक्षयवट और उसका पौराणिक माहात्म्य —Pgs. 101
13. प्रयाग में प्रतिष्ठानपुर के समुद्रकूप और हंसकूप का माहात्म्य —Pgs. 106
14. कुंभ के कल्पवासी —Pgs. 111
15. प्रयागराज में कल्पवास, विधि और विधान —Pgs. 115
16. प्रयाग में पाताल पुरी मंदिर का पौराणिक माहात्म्य —Pgs. 121
17. तीर्थराज प्रयाग में वेणी और माधव का माहात्म्य —Pgs. 129
18. तीर्थराज प्रयाग में भोगवती एवं वासुकि तीर्थमाहात्म्य —Pgs. 136
19. तीर्थराज प्रयाग में तक्षकतीर्थ और कालियहृद् —Pgs. 139
डॉ. राजेंद्र त्रिपाठी ‘रसराज’
जन्म : 12 मार्च, 1962
शिक्षा : एम.ए. (संस्कृत, हिंदी), डी.फिल्. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)।
रचना-संसार : रूपगोस्वामी का नाट्यशिल्प (शोधप्रबंध), रसराज तरंगिणी (हिंदी गीत-संग्रह), रसराज-मंजूषा (आलेख-संग्रह), रसराज-स्वर-लहरी (सस्वर हिंदी गीत—ऑडियो सी.डी.), कौशांबी-महिमा (हिंदी एकांकी), रसराजतोषिणी (संस्कृत-गीत-संग्रह), संस्कृत ग्रंथों में कौशांबी : अतीत और वर्तमान।
सम्मान-पुरस्कार : हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से संस्कृत महामहोपाध्याय की मानद उपाधि। ऑल इंडिया ओरियंटल कॉन्फ्रेंस के कार्यकारिणी सदस्य; उ.प्र. संस्कृत एवं हिंदी संस्थान लखनऊ तथा अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक व प्रशासनिक संस्थाओं से पुरस्कृत-सम्मानित।
संप्रति : अध्यक्ष, संस्कृत विभाग इलाहाबाद डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज।
संपर्क : ‘रसराज निवास’ 2ए/1 मिंटोरोड, प्रयागराज-211001
मो. : 09415645722
इ-मेल : rasrajkaushambi@gmail.com