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‘Predictive होम्योपैथी: रोगों के दब जाने के सिद्धांत’ से संबंधित यह पुस्तक प्रतिरक्षा विज्ञान, जनन विज्ञान, भ्रूण विज्ञान, मानवीय जीव-रसायन विज्ञान और तांत्रिकीय-अंत:स्रावी विज्ञान के मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित है। यह प्रयास होम्योपैथी को बहुत पुराने लक्षण-आधारित यंत्रवत् विज्ञान अथवा रहस्यमय विज्ञान की परिसीमा से बाहर निकालने का है और इसे अत्याधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा-पद्धति के रूप में संसार से परिचित कराना है। इसमें होम्योपैथिक संसार के समक्ष ‘रोगों के दब जाने से संबंधित एक चार्ट’ और ‘रोगों के निरोग होने की दिशा’ को प्रस्तुत किया गया है, जिसे यदि अच्छी तरह समझ लिया जाए तो होम्योपैथिक प्रैक्टिस में सदियों से चली आ रही अनिश्चितता और चिकित्सा में होनेवाली विफलता समाप्त हो जाएगी।
ऐसा नहीं है कि इस सिद्धांत में कमियाँ नहीं हैं। इस पुस्तक को पढ़नेवाले होम्यो-चिकित्सकों को सलाह है कि इसे ध्यान में रखते हुए वे इसमें दिए चार्ट को अपनी दैनिक प्रैक्टिस में इस्तेमाल करें और अपने व्यक्तिगत अनुभवों से इन जाँच परिणामों की पुष्टि करें अथवा इनमें सुधार करें।
होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की कमियों को दूर करके रोगियों को शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ करानेवाली अत्यंत उपयोगी पुस्तक।
4 अगस्त, 1952 को मुंबई में जनमे डॉ. प्रफुल्ल विजयकर भारत के प्रसिद्ध होम्योपैथी डॉक्टर हैं। आपका पूरा परिवार पिछली एक शताब्दी से मानव सेवा में संलग्न है। दादाजी डॉ. वामनराव विजयकर एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी से LRCP व LRFP&S थे तथा नानाजी डॉ. मुकुंद कोठारे भी प्रतिष्ठित डॉक्टर थे। आपके पिताजी डॉ. गजानन विजयकर मुंबई के सफल डॉक्टर हैं।
डॉ. प्रफुल्ल विजयकर ‘डॉ. प्रफुल्ल विजयकर स्कूल ऑफ प्रिडिक्टिव होम्योपैथी’ के संस्थापक व निदेशक हैं। साथ ही वे ‘डॉ. प्रफुल्ल विजयकर होम्योपैथिक रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट फाउंडेशन’ के चेयरमैन तथा क्षीरसागर होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, बीड (महाराष्ट्र) के ऑर्गेनॉन विभाग के अध्यक्ष हैं। डॉ. प्रफुल्ल विजयकर होम्योपैथी पर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व्याख्याता हैं, जिनके भारत व विदेशों में लगभग एक सौ सेमिनार आयोजित हो चुके हैं। उनकी होम्योपैथी विषयक अनेक पुस्तकें प्रकाशित होकर बहुप्रशंसित हो चुकी हैं।