Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Prem Aur Shanti ka Marg   

₹200

In stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Dadi Janki
Features
  • ISBN : 9789351866985
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Dadi Janki
  • 9789351866985
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2016
  • 104
  • Hard Cover

Description

एक आध्यात्मिक गुरु या नेता वही होता है, जिसका एक रूपांतरणपरक मान हो। आप उन लोगों को पहचान सकते हैं, क्योंकि वे केवल अपने अस्तित्व द्वारा आपके जीवन में बदलाव ला पाए हैं। 
दादी जानकी आत्म-ज्ञानी हैं। वे किसी के साथ झगड़ा या विवाद नहीं करतीं; वे तो चलती-फिरती शांति हैं। उनकी विशिष्टता यही है कि वे परम तत्त्व की अवस्था में रहती हैं। उस अवस्था से कोई बाहर नहीं आ सकता है, क्योंकि तब उसके पास कोई विकल्प नहीं रहता है। हम जब इस परम अवस्था में पहुँच जाते हैं, तब सबकुछ बदल जाता है। 
प्रेम और शांति का मार्ग हमारे सोचने के लिए एक अनूठा रास्ता बताती है, जिसने दादी जानकी को इस लक्ष्य तक पहुँचाया है। यह एक ऐसा दर्पण है, जो हमें यह दिखाता है कि हम क्या हैं और क्या बन सकते हैं। यह सबको आगे बढ़ने में मदद करेगी। 
जीवन के सत्य को उद्घाटित कर आध्यात्मिक प्रेम और शांति का मार्ग प्रशस्त करती एक विशिष्ट पुस्तक।

____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

अनुक्रम

भूमिका — Pgs. 5

मेरी बात — Pgs. 17

1 शांति की शक्ति — Pgs. 27

2 प्रेम की शक्ति — Pgs. 40

3 शुचिता की शक्ति — Pgs. 58

4 आनंद की शक्ति — Pgs. 76

5 दिव्य सत्य की शक्ति — Pgs. 94

 

The Author

Dadi Janki

दादी जानकी वर्ष 1937 में 21 वर्ष की आयु में ब्रह्मकुमारी संस्थान की संस्थापक सदस्या बनीं। उन्होंने पूरे भारत में घूम-घूमकर अनेक ब्रह्मकुमारी सेंटर शुरू किए और लाखों लोगों को उससे जोड़ा।
वर्ष 1974 में उन्होंने ब्रह्मकुमारी का पहला अंतरराष्ट्रीय सेंटर लंदन (यू.के.) में खोला। उसके बाद उन्होंने सौ से भी अधिक देशों में ब्रह्मकुमारी सेंटर खोले और ‘ब्रह्मकुमारी’ को विश्व की अग्रणी आध्यात्मिक संस्था बना दिया।

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW