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‘प्रेमचंद की हिंदी-उर्दू कहानियाँ’ पुस्तक हिंदी में ऐसा पहला प्रयास है, जिसमें प्रख्यात लेखक प्रेमचंद की उर्दू से हिंदी तथा हिंदी से उर्दू में आई कहानियों को देवनागरी लिपि में एक साथ प्रस्तुत किया गया है।
प्रेमचंद को केवल उर्दू का या केवल हिंदी का लेखक कहनेवालों की संख्या कम नहीं है, परंतु सत्य यह है कि वे पहले उर्दू के और बाद में हिंदी के लेखक बने तथा जीवन-पर्यंत दोनों ही भाषाओं में लिखते रहे। वे इसके लिए भी विशेष रूप से प्रयत्नशील रहे कि उनकी उर्दू कहानियाँ हिंदी में तथा हिंदी कहानियाँ उर्दू में निरंतर आती रहें। इससे वे दो भाषा-समूहों से जुड़कर पूरे देश से जुड़ना चाहते थे, परंतु साहित्य-संसार में यह अत्यंत रोचक एवं चुनौतीपूर्ण प्रश्न है कि प्रेमचंद किस प्रकार उर्दू तथा हिंदी दो भाषाओं के सर्जनात्मक तनाव को झेलते थे, किस प्रकार एक संवेदना को दो भाषा-रूप प्रदान करते थे तथा किस प्रकार वे हिंदी तथा उर्दू को निकट लाने के साथ उन्हें अपना-अपना वैशिष्ट्य भी दे रहे थे।
इन सभी प्रश्नों को उठाने तथा उनका उत्तर पाने के लिए ही यह पुस्तक पाठकों के हाथों में है। इस दुस्साध्य कार्य को किया है देश-विदेश में प्रेमचंद-विशेषज्ञ के रूप में प्रख्यात डॉ. कमल किशोर गोयनका ने, जिन्होंने अपने 50 वर्षों के शोध-कार्य से अज्ञात एवं अलक्षित प्रेमचंद के उद्घाटन के साथ उनके अध्ययन की अनेक नई दिशाओं के द्वार भी खोले हैं।
‘नमक का दारोगा’ कहानी का उर्दू व हिंदी पाठांश
उर्दू पाठ : नमक का दारोगा
‘‘जब नमक का महकमा ़कायम हुआ और ़खुदादाद (ईश्वर प्रदत्त) निआमत (वरदान) से ़फायदा उठाने की आम मुमानियत (मनाही) कर दी गई तो लोग दरवाज़ा सदर (मुख्य द्वार) बंद पाकर रोज़न व शिगा़फ (रंध्र, दरार) की ़िफके्रं करने लगे। चारों तऱफ ़खयानत (धरोहर का अपहरण) और गबन और तहरीस (लालच) का बाज़ार गरम था। पटवार गीरी का मुअज्ज़िज़ (प्रतिष्ठित) और मुना़फअत (लाभ) औहदा छोड़-छोड़कर सी़ग-ए-नमक (नमक विभाग) की ब़र्कंदाज़ी (चपरासगीरी) करते थे और इस महकमे का दारो़गा तो वकीलों के लिए भी रश्क (स्पर्धा) का बाइस था।’’
(‘हमदर्द’ उर्दू मासिक पत्रिका, अक्तूबर, 1913)
हिंदी पाठ : नमक का दारोगा
जब नमक का नया विभाग बना और ईश्वर-प्रदत्त वस्तु के व्यवहार करने का निषेध हो गया, तो लोग चोरी-छिपे इसका व्यापार करने लगे। अनेक प्रकार के छल-प्रपंचों का सूत्रपात हुआ, कोई घूस से काम निकालता था, कोई चालाकी से। अधिकारियों के पौबारह थे। पटवारीगीरी का सर्वसम्मानित पद छोड़-छोड़कर लोग इस विभाग की बरकंदाजी करते थे। इसके दारोगा पद के लिए तो वकीलों का भी जी ललचाता था।
(‘सप्त-सरोज’, प्रथम हिंदी कहानी-संग्रह, जून, 1917)
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अनुक्रम | |
भूमिका (द्वितीय संस्करण) — 5 | |
— भूमिका — 13 | 1. सौत — 312 |
(अ) उर्दू से हिंदी में | — सौत — 313 |
1. रानी सारंधा — 34 | 2. शंखनाद — 334 |
— रानी सारंधा — 35 | — बाँगे सहर — 335 |
2. बड़े घर की बेटी — 72 | 3. शतरंज के खिलाड़ी — 352 |
— बड़े घर की बेटी — 73 | — शतरंज की बाज़ी — 353 |
3. नमक का दारो़गा — 92 | 4. सवा सेर गेहूँ — 376 |
— नमक का दारोगा — 93 | — सवा सेर गेहूँ — 377 |
4. शिकारी और राजकुमार — 112 | 5. मंत्र — 390 |
— शिकारी राजकुमार — 113 | — मंतर — 391 |
5. दो भाई — 132 | 6. अलग्योझा — 416 |
— दो भाई — 133 | — अलहदगी — 417 |
6. पंचायत — 146 | 7. आहुति — 454 |
— पंच-परमेश्वर — 147 | — जेल — 455 |
7. बूढ़ी काकी — 168 | 8. दो बैलों की कथा — 474 |
— बूढ़ी काकी — 169 | — दो बैल — 475 |
8. द़फ्तरी — 186 | 9. सद्गति — 498 |
— द़फ्तरी — 187 | — नजात — 499 |
9. आत्माराम — 208 | 10. गुल्ली-डंडा — 514 |
— आत्माराम — 209 | — गिल्ली-डंडा — 515 |
10. ईदगाह — 228 | 11. दूध का दाम — 532 |
— ईदगाह — 229 | — दूध की कीमत — 533 |
11. क़फन — 254 | 12. बड़े भाई साहब — 552 |
— क़फन — 255 | — बड़े भाई साहब — 553 |
12. जादे राह — 270 | परिशिष्ट |
— मृतक-भोज — 271 | (क) संकलित हिंदी-उर्दू कहानियाँ — 569 |
(आ) हिंदी से उर्दू में | (ख) संकलित उर्दू कहानियाँ — 573 |
प्रेमचंद के जीवन, साहित्य, विचार तथा उनकी पांडुलिपियों के अध्ययन, अनुसंधान और आलोचना एवं उनकी सैकड़ों पृष्ठों की अज्ञान-दुर्लभ सामग्री को खोजने एवं प्रकाशित कराने में आधी शताब्दी अर्पित करनेवाले, इनके संबंध में सर्वथा नवीन अवधारणाओं के प्रतिपादक तथा उनकी भारतीयवादी समग्र मूर्ति के अन्वेषक-स्थापक तथा देश-विदेश में ‘प्रेमचंद स्कॉलर’ के रूप में विख्यात; प्रेमचंद पर 30 तथा अन्य हिंदी लेखकों पर 27 पुस्तकें प्रकाशित; कुछ प्रमुख पुस्तकें; ‘प्रेमचंद के उपन्यासों का शिल्प-विधान’, ‘प्रेमचंद : विश्वकोश’ (दो खंड), ‘प्रेमचंद : अध्ययन की नई दिशाएँ’, ‘प्रेमचंद : चित्रात्मक जीवनी’, ‘प्रेमचंद का अप्राप्य साहित्य’ (दो खंड), ‘प्रेमचंद : अनछुए प्रसंग’, ‘प्रेमचंद : वाद, प्रतिवाद और संवाद’, ‘प्रेमचंद : कहानी रचनावली’ (6 खंड), ‘प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन’ (के.के. बिड़ला फाउंडेशन के ‘व्यास सम्मान-2014’ से सम्मानित), ‘गांधी : पत्रकारिता के प्रतिमान’, ‘हिंदी का प्रवासी साहित्य’, ‘प्रवासी साहित्य : जोहान्सबर्ग के आगे’, ‘बालशौरि रेड्डी कथा रचनावली’ (4 खंड), ‘रवींद्रनाथ त्यागी रचनावली’ (6 खंड प्रेस में), केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा (मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार) के उपाध्यक्ष, दिल्ली विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्ति के बाद साहित्य-साधना में संलग्न।