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"मनुष्य के जीवन में सदगुरुका आगमन उसके सुकर्मों का प्रस्फुटन तो है ही, साथ-ही-साथ उस सद्गुरु रूपी परमात्मा के स्नेहिल सान्निध्य से व्यक्ति का पूरा परिवेश और उसका संपूर्ण वातावरण एक अद्भुत उमंग, उत्साह और सकारात्मक ऊर्जा से ओत-प्रोत हो जाता है। आध्यात्मिक जीवन के पथिक की सबसे बड़ी पूँजी उसका अपने ईष्ट (सद्गुरु) में श्रद्धा, विश्वास व प्रेम है।
इन समस्त तथ्यों को साथ लेकर जब पथिक चलता है तो उसका मार्ग नित्य-प्रति नए- नए अनुभवों से ओत-प्रोत रहते हुए अंततः अपने सद्गुरु में विलीन होने को तत्पर रहता है और तभी सद्गुरु अपने वास्तविक स्वरूप से उसका साक्षात्कार कराते हैं। यह भजन-संग्रह एक वैचारिक व सांस्कृतिक प्रवाह है, जो शिष्य के सद्गुरु व आत्मा से परमात्मा के मिलन की दिशा और दशा तय करने की प्रेरणा से ओत-प्रोत है।"