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‘‘हाँ...कर दिया माफ, माफ न करती तो क्या करती, प्रकृति ने ही मुझे तुम्हारे पास बुला भेजा है। अब मुझे ऑफिस से हफ्ते भर की छुट्टी मिल गई हैं। अपना अरुणाचल मुझे घुमाओगे न।’’ दीपेश की पत्नी ने उसे बाँहों में लेकर सहला दिया। फिर पलंग पर सहारा देकर बैठा दिया।
ओई बड़े ध्यान से दोनों का मिलन देख रही थी। दीपेश ने उससे कहा...‘‘दे मेरी पत्नी के सारे प्रश्नों का जवाब। मेरी बात सुनने की तो इसने जहमत ही नहीं उठाई।’’
दीपेश की पत्नी ने जवाब दे दिया, ‘‘नहीं, मुझे किसी से कोई जवाब नहीं चाहिए। किसी से कोई प्रश्न भी नहीं करना।’’
ओई बोल पड़ी, ‘‘मैं सिर्फ प्रेम-वल्लरी हूँ। दीपेश के सहारे फली-फूली हूँ। आप इस तरह समझें कि हमारा संबंध लिवइन रिलेशन जैसा ही था। अब मैं वह भी खत्म करती हूँ। दीपेश आपके थे, आपके हैं, आपके ही रहेंगे। प्रकृति हमसे यही चाहती थी तो मिला दिया, अब उसका हित पूर्ण हुआ तो दीपेश आपके हैं।’’
दीपेश की पत्नी ओई को इस तरह बोलता देखकर मंत्र-मुग्ध सी खड़ी रह गई। फिर बोली, ‘थैक्स ओई।’
—इसी उपन्यास से
प्रेम-समर्पण-त्याग के भावात्मक रागों की अभिव्यक्ति है यह औपन्यासिक कृति, जो पाठक के मन को झंकृत कर देगी।
मलिक राजकुमार
जन्म : 15 फरवरी, 1955, बबीना (उ.प्र.)।
शिक्षा : एल-एल.बी., एम.ए. (हिंदी), पी-एच.डी.।
रचना-संसार : नदी बहती है, एक लड़की पारुल (कविता-संग्रह), संपादन साँझे अला (सिरायकी कविता-संग्रह), शब-ए-मालवा (गजल-संग्रह), संबंधों की नाव, लामबहादुर के बैल, शहतूत की आँख, नींद का रिश्ता, सिरायकी कहानियाँ (कहानी-संग्रह), जड़ां दी तलाश (पंजाबी कहानी-संग्रह), पैरों तले पहाड़ (यात्रा-वर्णन), दादका-नानका (पाकिस्तान यात्रा-संस्मरण), एक और त्रिशंकु, बाई पास, प्रेमवल्लरी, स्टेशन मास्टर, कीकरवाला चौक (उपन्यास), मलोहिया दा वेड़ा (मुलतान की वार)।
संपादन : भारतीय लोरी साहित्य कोश, पंजाबी संस्कृति, हिसार, जायसी ग्रंथावली (आचार्य रामचंद्र शुक्ल), अभिनव इमरोज त्रैमासिक गचल अंक व मंटो अंक।
शोध : मलिक राजकुमार के रचना संसार पर शोध हो रहे हैं।
कहानियों, वार्त्ताओं व कविताओं का रेडियो पर हिंदी, पंजाबी एवं ब्रजभाषा में वाचन।
संप्रति : आयकर एवं वैट अधिवक्ता, दिल्ली।
दूरभाष : (मो.) 09810116001