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डेढ़ सौ साल के घोर परिश्रम और यातनाएँ झेलने तथा आंदोलनों के बाद ही मॉरीशस अपने को अंग्रेजों की हुकूमत से रिहा कर पाया। देश आजाद हुआ। आजादी के बीस साल पहले देश को कई प्रलयंकर तूफानों का सामना करना पड़ा। उस प्रकोप से बचने के लिए धीरे-धीरे गाँव और शहरों में टीन की छतों वाले घर बनने शुरू हुए। आजाद देश के आजाद लोग अपनी स्थिति को बेहतर कर पाए और देश के हर इलाके में सीमेंट के घर बनते गए।
जिस गाँव से यह कहानी शुरू हुई, उस बस्ती के आधे से कम लोग अपने लिए अधिक सुरक्षित घर बना पाए। बाकी घर सीमेंट की छाजन से महरूम रहकर टीन की छाजन के भीतर ही जिंदगी जीते रहे। कहानी के दो प्रमुख पात्र प्रिया और अविनाश तीन-चार घरों के फासले पर रहकर भी दो एकदम भिन्न घरों में सोते-जागते थे। आजादी के अभियान में राजनेताओं के साथ जुटकर आजादी को बुलंद करनेवाले प्रिया के पिता आजादी के चंद सालों के बाद ही राजनेताओं के लिए अजनबी बनकर रह गए। 1968 में गूँजती रही प्रिया के पिता की आवाज आजादी के तीसरे ही साल में नीम खामोशी बन गई थी।
यह स्थिति केवल मॉरीशस की ही नहीं, वरन् किसी भी उस देश की है, जिसे स्वाधीन कराने के लिए असंख्य युवाओं ने अपने जीवन को दाँव पर लगा दिया, पर आजादी मिलते ही वे नेपथ्य में फेंक दिए गए, भुला दिए गए। यह उपन्यास समाज के उस अन्यमनस्क भाव से साक्षात्कार करवाता है।
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जन्म : 9 अगस्त, 1937 को।
अठारह वर्ष हिंदी का अध्यापन, तीन वर्ष तक युवा मंत्रालय में नाट्य कला विभाग में नाट्य प्रशिक्षक। इसके उपरांत दो वर्ष के लिए महात्मा गांधी संस्थान में हिंदी अध्यक्ष और अनेक वर्षों तक संस्थान की हिंदी पत्रिका ‘वसंत’ के संपादक रहे।
प्रकाशित पुस्तकें : ‘लहरों की बेटी’, ‘मार्क ट्वेन का स्वर्ग’, ‘फैसला आपका’, ‘मुडि़या पहाड़ बोल उठा’, ‘और नदी बहती रही’, ‘आंदोलन’, ‘एक बीघा प्यार’, ‘जम गया सूरज’, ‘तीसरे किनारे पर’, ‘चौथा प्राणी’, ‘लाल पसीना’, ‘तपती दोपहरी’, ‘कुहासे का दायरा’, ‘शेफाली’, ‘हड़ताल कब होगी’, ‘चुन-चुन चुनाव’, ‘अपनी ही तलाश’, ‘पर पगडंडी मरती नहीं’, ‘अपनी-अपनी सीमा’, ‘गांधीजी बोले थे’, ‘शब्द भंग’, ‘पसीना बहता रहा’, ‘आसमान अपना आँगन’, ‘अस्ति-अस्तु’ (उपन्यास); ‘एक थाली समंदर’, ‘खामोशी के चीत्कार’, ‘इनसान और मशीन’, ‘वह बीच का आदमी’, ‘अब कल आएगा यमराज’ (कहानी-संग्रह); ‘विरोध’, ‘तीन दृश्य’, ‘गूँगा इतिहास’, ‘रोक दो कान्हा’ (नाटक); ‘गुलमोहर खौल उठा’, ‘नागफनी में उलझी साँसें’, ‘कैक्टस के दाँत’, ‘एक डायरी बयान’ (काव्य)।
इसके अतिरिक्त एक प्रतिनिधि संकलन, एक अनुवादित पुस्तक तथा दो संपादित ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं।
संप्रति : मॉरिशस स्थित रवींद्रनाथ टैगोर संस्थान के निदेशक।