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आमतौर पर किसी भी व्यक्ति में यह प्रवृत्ति होती है कि वह बिना मेहनत किए सबकुछ पा लेना चाहता है। इसी प्रवृत्ति के चलते लोग शेयर बाजार में बगैर कोई पुस्तक पढ़े, बगैर मेहनत किए सीधे ही सुनी-सुनाई बातों और दोस्तों की सलाह से निवेश कर बैठते हैं तथा अपनी पूरी पूँजी गँवाकर जिंदगी भर शेयर बाजार फ्यूचर ट्रेडिंग, ऑहृश्वशन ट्रेडिंग को कोसते रहते हैं। ऑप्शन ट्रेडिंग में लोग साधारण शेयर खरीदने-बेचने की तुलना में 10 गुना ज्यादा तेजी से पैसा कमा सकते हैं और इसका विपरीत भी उतना ही सत्य है कि लोग दस गुना तेजी से पैसे गँवा भी सकते हैं।
ट्रेडिंग को बैंक एफ.डी. की तरह निश्चित रिटर्न देने वाला निवेश न समझें। निवेश व ट्रेडिंग दो अलग-अलग सिद्धांत हैं। ट्रेडिंग में नफा-नुकसान दोनों हो सकते हैं, इसलिए इस पुस्तक के शुरुआती अध्यायों में आपको ऑप्शन ट्रेडिंग की मानसिक परिपक्वता तैयार करने तथा पोजीशन साइज मैनेज करने के जो सिद्धांत बताए गए हैं, वे पुस्तक के आवश्यक भाग हैं। अपेक्षा की जाती है कि पाठक शुरुआती अध्यायों को ध्यानपूर्वक पढ़कर तथा अमल करके पहले ट्रेडिंग के लिए मानसिक रूप से पर्याहृश्वत परिपक्वता अर्जित करें, फिर पोजीशन साइज के अनुसार वे कितनी पोजीशन लेंगे, यह सुनिश्चित करें और किसी भी परिस्थिति में लालच करने एवं ओवर पोजीशन लेने से बचें। इसमें पाठकों को जो भी सिद्धांत बताए हैं, उनमें कम-से-कम एक माह तक पेपर ट्रेड करके अनुभव अर्जित करें।
शेयर बाजार के एक महत्त्वपूर्ण घटक ‘ऑप्शन ट्रेडिंग’ पर एक संपूर्ण व्यावहारिक पुस्तक।
भारतीय संस्कृति के अध्येता और संस्कृत भाषा के विद्वान् श्री सूर्यकान्त बाली ने भारत के प्रसिद्ध हिंदी दैनिक अखबार ‘नवभारत टाइम्स’ के सहायक संपादक (1987) बनने से पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। नवभारत के स्थानीय संपादक (1994-97) रहने के बाद वे जी न्यूज के कार्यकारी संपादक रहे। विपुल राजनीतिक लेखन के अलावा भारतीय संस्कृति पर इनका लेखन खासतौर से सराहा गया। काफी समय तक भारत के मील पत्थर (रविवार्ता, नवभारत टाइम्स) पाठकों का सर्वाधिक पसंदीदा कॉलम रहा, जो पर्याप्त परिवर्धनों और परिवर्तनों के साथ ‘भारतगाथा’ नामक पुस्तक के रूप में पाठकों तक पहुँचा। 9 नवंबर, 1943 को मुलतान (अब पाकिस्तान) में जनमे श्री बाली को हमेशा इस बात पर गर्व की अनुभूति होती है कि उनके संस्कारों का निर्माण करने में उनके अपने संस्कारशील परिवार के साथ-साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज और उसके प्राचार्य प्रोफेसर शांतिनारायण का निर्णायक योगदान रहा। इसी हंसराज कॉलेज से उन्होंने बी.ए. ऑनर्स (अंग्रेजी), एम.ए. (संस्कृत) और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से ही संस्कृत भाषाविज्ञान में पी-एच.डी. के बाद अध्ययन-अध्यापन और लेखन से खुद को जोड़ लिया। राजनीतिक लेखन पर केंद्रित दो पुस्तकों—‘भारत की राजनीति के महाप्रश्न’ तथा ‘भारत के व्यक्तित्व की पहचान’ के अलावा श्री बाली की भारतीय पुराविद्या पर तीन पुस्तकें—‘Contribution of Bhattoji Dikshit to Sanskrit Grammar (Ph.D. Thisis)’, ‘Historical and Critical Studies in the Atharvaved (Ed)’ और महाभारत केंद्रित पुस्तक ‘महाभारतः पुनर्पाठ’ प्रकाशित हैं। श्री बाली ने वैदिक कथारूपों को हिंदी में पहली बार दो उपन्यासों के रूप में प्रस्तुत किया—‘तुम कब आओगे श्यावा’ तथा ‘दीर्घतमा’। विचारप्रधान पुस्तकों ‘भारत को समझने की शर्तें’ और ‘महाभारत का धर्मसंकट’ ने विमर्श का नया अध्याय प्रारंभ किया।