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पं. भीमसेन जोशी का जन्म 4 फरवरी, 1922 को गडग (कर्नाटक) में हुआ। उन्हें बचपन से ही संगीत का बहुत शौक था। वह किराना घराने के संस्थापक अब्दुल करीम खान से बहुत प्रभावित थे। सन् 1932 में वह गुरु की तलाश में घर से निकल पड़े। अब्दुल करीम खान के शिष्य पं. रामभाऊ कुंडालकर से उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शुरुआती शिक्षा ली। घर वापसी से पहले वह कलकत्ता और पंजाब भी गए। भीमसेन जोशी ने 19 वर्ष की उम्र में पहली बार किसी सार्वजनिक मंच से अपनी गायन कला का प्रदर्शन किया। उन्होंने पहली बार जनवरी 1946 में अपने गुरु सवाई गंधर्व के 60वें जन्मदिवस पर पुणे में अपना गायन प्रस्तुत किया था।
पं. भीमसेन जोशी ने अपनी विशिष्ट शैली विकसित करके किराना घराने को समृद्ध किया और दूसरे घरानों की विशिष्टताओं को भी अपने गायन में समाहित किया। उन्हें इस बात का भी श्रेय जाता है कि उन्होंने कई रागों को मिलाकर ‘कलाश्री’ और ‘ललित भटियार’ जैसे नए रागों की रचना की।
भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ के अलावा उन्हें देश तथा विश्व भर के अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया गया। अपने मधुर गायन से सबको सम्मोहित करनेवाले अप्रतिम गायक पं. भीमसेन जोशी की प्रामाणिक जीवनी, जो हर संगीत-प्रेमी और कलाकार को रोमांचित कर देगी।
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अनुक्रमणिका
भूमिका — Pgs. ७
१. कलंदरों सी जिद — Pgs. १३
२. एक गुरु : बारह सूर्य — Pgs. ४०
३. गुरु गृह में (पूर्वरंग) — Pgs. ६०
४. दर-दर भटकना — Pgs. ६६
५. गुरुगृह में (उत्तररंग) — Pgs. ७२
६. कल्पवृक्ष के फूल कानों में खोंसे — Pgs. ७७
७. पुनरपि चरैवेति — Pgs. ८४
८. मंगलूर में — Pgs. ९२
९. कोलकाता — Pgs. ९९
१०. जालंधर — Pgs. ११९
११. स्वर ने नापी धरती — Pgs. १३२
१२. वरदहस्त — Pgs. १३८
१३. भीमसेन और... १४८
१४. ‘संतवाणी’ — Pgs. १६७
१५. ऋषि — Pgs. १७३
१६. गुरु — Pgs. १८३
१७. भीमसेन उवाच — Pgs. १९३
१८. कीमियागर — Pgs. १९९
१९. वंश बेल — Pgs. २०७
२०. जनकाध्याय — Pgs. २११
२१. स्वभाव — Pgs. २१७
२२. शौक — Pgs. २३३
२३. आज यहाँ, तो कल... २४१
२४. वत्सला-भीमसेन — Pgs. २४६
२५. गपशप — Pgs. २५५
२६. मेरे दो तानपुरे भी — Pgs. २६०
२७. पुनर्जन्म — Pgs. २६५
२८. उपसंहार — Pgs. २६९
२९. दिनक्रम — Pgs. २७४
श्रेयनामावली — Pgs. २७७
संदर्भ-ग्रंथ — Pgs. २७९
जन्म : 6 सितंबर, 1937, जबलपुर।
शिक्षा : होलकर कॉलेज, इंदौर।
1961 में संगीतकार सी. रामचंद्रजी के निजी सहायक के रूप में मुंबई पहुँचे।
कृतित्व : 1964 में प्रख्यात मराठी व्यंग्य लेखक पु.ल. देशपांडे के मार्गदर्शन में ‘वंदे मातरम्’ की क्रांतिगाथा पर एकल नाट्य प्रयोग का आविष्कार किया। फिर ‘सेर शिवराज’ (शिवाजी), ‘योद्धा संन्यासी’ (विवेकानंद) जैसे विख्यात पात्रों पर एकल नाट्य प्रयोग करने हेतु पूरे भारत में तथा विदेश में भ्रमण किया।
मराठी, हिंदी एवं बांग्ला भाषी प्रसिद्ध समाचार-पत्रों में विपुल लेखन।