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भारतवर्ष में ज्ञान संचय की दीर्घ परंपरा रही है। हमारे ऋषि-मुनियों तथा तपस्वियों के अनुभव और अनुसंधान पौराणिक साहित्य—वेद, पुराण, उपनिषद्, ब्राह्मण ग्रंथों आदि—में भरा पड़ा है। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जिसको इस ज्ञान से निर्देशन न मिलता हो। भारतीय जनमानस को यह अकूत ज्ञान पीढ़ी-दर-पीढ़ी मिलता रहा है।
पुराणों में एक प्रकार से इतिहास-घटनाओं का विवरण ही है, परंतु इन्हें इतिहास नहीं कहा गया है, ये इतिहास से भिन्न हैं। जो ज्ञान पुराना होते हुए आज भी प्रासंगिक है, वही पुराण है।
वैसे तो पुराण संख्या में काफी हैं, परंतु मुख्य पुराण अठारह ही हैं और सभी पुराणों में अलग-अलग विषयों का विवेचन किया गया है तथा मानव-कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया गया है।
इस प्रकार, विविध विषयी-ज्ञान से परिपूर्ण इन पुराणों का हिंदू मान्यताओं में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जन्म से लेकर मृत्यु तक के मानव-संस्कार इन्हीं पर आधारित हैं। प्रस्तुत पुस्तक इन पुराणों की रोचक एवं ज्ञानवर्द्धक कथात्मक प्रस्तुति है।
जन्म : 30 अगस्त, 1978 को जयपुर में।
शिक्षा : बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी से विधि-स्नातक।
कृतित्व : आरंभ में लेखन को शौकिया तौर पर लेते हुए इन्होंने अनेक राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में विविध-विषयी लेख, कथा, कहानी, कविताएँ आदि लिखीं। यह लेखन आज भी जारी है। वर्तमान में इनकी लिखी दर्जन से अधिक पुस्तकें बाजार में हैं।
लेखन के साथ-साथ हरीश शर्मा अनेक सामाजिक व सांस्कृतिक संस्थाओं से भी जुड़े हैं। अभिनय के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। अनेक अभिनय संस्थाओं से संबद्ध होकर रंगमंचीय गतिविधियों में संलग्न हैं। इन्होंने भारतेंदु अकादमी, लखनऊ से अभिनय कार्यशाला में प्रशिक्षण लिया और दूरदर्शन के कुछ धारावाहिकों में भी कार्य किया।
संप्रति : स्वतंत्र लेखन, सामाजिक कार्य, वकालत।