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एक रात, न जाने क्या धुन में आई, बोले, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है जी!’’
‘‘आप नहीं जानते क्या?’’
‘‘सुना तो है, किंतु जानता नहीं।’’
‘‘वाह, क्या खूब? जो सुना है, वही मेरा नाम।’’
‘‘दुलारी न?’’
‘‘जी हाँ।’’
‘‘लेकिन दुलारी नाम तो बाप का होता है; बाप का कहो या नैहर का कहो।’’
‘‘तो पतिदेव का, या यों कहिए, ससुराल का नाम क्या होना चाहिए, आप ही बतलाएँ?’’
‘‘मैंने तो पहले से ही एक नाम चुन रखा है?’’
‘‘वह क्या है?’’
‘‘रानी—और मेरी कुटिया की रानी ही, मेरे दिल की रानी!’’
—इसी पुस्तक से
सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीरामवृक्ष बेनीपुरीजी की कलम से निःसृत राष्ट्र के स्वातंत्र्य के लिए बंदी जीवन काट रहे एक कैदी की पत्नी की मर्मांतक तथा उद्वेलित कर देनेवाली जीवन-व्यथा।
"जन्म : 23 दिसंबर, 1899 को बेनीपुर, मुजफ्फरपुर (बिहार) में।
शिक्षा : साहित्य सम्मेलन से विशारद।
स्वाधीनता सेनानी के रूप में लगभग नौ साल जेल में रहे। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक। 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से विधायक चुने गए।
संपादित पत्र : तरुण भारत, किसान मित्र, गोलमाल, बालक, युवक, कैदी, लोक-संग्रह, कर्मवीर, योगी, जनता, तूफान, हिमालय, जनवाणी, चुन्नू-मुन्नू तथा नई धारा।
कृतियाँ : चिता के फूल (कहानी संग्रह); लाल तारा, माटी की मूरतें, गेहूँ और गुलाब (शब्दचित्र-संग्रह); पतितों के देश में, कैदी की पत्नी (उपन्यास); सतरंगा इंद्रधनुष (ललित-निबंध); गांधीनामा (स्मृतिचित्र); नया आदमी (कविताएँ); अंबपाली, सीता की माँ, संघमित्रा, अमर ज्योति, तथागत, सिंहल विजय, शकुंतला, रामराज्य, नेत्रदान, गाँव का देवता, नया समाज और विजेता (नाटक); हवा पर, नई नारी, वंदे वाणी विनायकौ, अत्र-तत्र (निबंध); मुझे याद है, जंजीरें और दीवारें, कुछ मैं कुछ वे (आत्मकथात्मक संस्मरण); पैरों में पंख बाँधकर, उड़ते चलो उड़ते चलो (यात्रा साहित्य); शिवाजी, विद्यापति, लंगट सिंह, गुरु गोविंद सिंह, रोजा लग्जेम्बर्ग, जय प्रकाश, कार्ल मार्क्स (जीवनी); लाल चीन, लाल रूस, रूसी क्रांति (राजनीति); इसके अलावा बाल साहित्य की दर्जनों पुस्तकें तथा विद्यापति पदावली और बिहारी सतसई की टीका।
स्मृतिशेष : 7 सितंबर, 1968।