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राधा और कृष्ण एक रूप हैं। उनके प्रेम का आधार है—कर्तव्य-पराणयता तथा विश्व-कल्याण की भावना।
राधा और कृष्ण के पवित्रतम प्रेम संबंध को ‘राधा की पाती, कृष्ण के नाम’ के माध्यम से परिलक्षित किया गया है, जिसमें संयोग है, वियोग है तथा त्याग की पराकाष्ठा है। रास एवं महारास के माध्यम से दोनों के लौकिक प्रेम को नृत्य द्वारा प्रस्तुत किया गया है, जो सांसारिक मानव को आनंद, सुख तथा शांति प्रदान करेगा।
आधुनिक काल में कामना और प्रेम की एकरूपता के विरुद्ध यह एक धर्मयुद्ध है। आशा है कि आधुनिक पीढ़ी इस कृति से प्रेरणा ग्रहण करके प्रेम के वास्तविक रूप को ग्रहण करेगी। उसे आनंद एवं सुख की अनुभूति होगी।
भारतीय प्रशासनिक सेवा से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात साहित्य-रचना के माध्यम से समाज के उत्थान के कार्य हेतु समर्पित। हिंदी व अंग्रेजी में लगभग 50 पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें उनके तीन खंडों में प्रकाशित एक दर्जन उपन्यास भी सम्मिलित। भूमि-सुधारों पर अंतरराष्ट्रीय ख्याति के विचारक।
कर्मयोग पर ‘भगवद्गीता : नाट्य रूप’ शीर्षक से गीता पर उनका भाष्य, राजधर्म को केंद्रबिंदु बनाकर उनके द्वारा लिखित ‘चित्रकूट में राम-भरत मिलाप’, भारतीयता की परिचायक कृति ‘भारतीय सोच’ तथा तुलसीकृत ‘रामचरितमानस’ को यथार्थ व नाट्य रूप में प्रस्तुत करनेवाली कृति ‘रामचरितमानस : नाट्य रूप’ भारतीय संस्कृति के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण पड़ाव हैं।
संप्रति भारत के अग्रणी विधि प्रतिष्ठान ‘खेतान एंड कंपनी’, नई दिल्ली में प्रमुख सलाहकार।
स्थायी संपर्क सूत्र : 105, चौक बाजार, बरुआ सागर, झाँसी-284201 (उ.प्र)
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