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Raghukul Reeti Sada   

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Author Rajendra Arun
Features
  • ISBN : 9788173152306
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Rajendra Arun
  • 9788173152306
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2012
  • 308
  • Hard Cover

Description

रामकथा में दशरथ का चरित्र बड़ा ही अनूठा है। उन्हें साक्षात् विष्णु के अवतार श्रीराम का पिता होने का गौरव मिला है। प्रभु को सन्तान के रूप में पाकर दशरथ ने केवल आनन्द ही नहीं मनाया, उसका मूल्य भी चुकाया। यह मूल्य वसुदेव, देवकी और नन्द-यशोदा सबने चुकाया है। इनमें से कोई भी प्रभु को सन्तान बनाकर अपने पास नहीं रख पाया। दशरथ ने राम को बाँधा नहीं; यद्यपि बाँधने के सुदृढ़ कारण मौजूद थे। दशरथ बुढ़ापे तक पुत्र के लिए तरसते रहे; कोई साधारण-सा पुत्र भी उन्हें मिल जाता तो वे धन्य हो जाते। सौभाग्य से उन्हें गुरुकृपा से साक्षात् विष्णु के अवतार श्रीराम पुत्र के रूप में मिले। ऐसे पुत्र को वनवास देकर खोना आसान काम नहीं था। पर दशरथ ने राम को छल-कपट करके, पिता के प्रेम का वास्ता देकर नहीं रोका। उन्होंने बड़ी प्रार्थनाएँ कीं कि राम रुकें, पर स्वयं उन्होंने राम से कभी रुकने को नहीं कहा। सदाचरण करनेवाले दशरथ अपने पुत्र को सदाचरण के मार्ग पर चलने से कैसे रोकते! महाराज दशरथ ने अपने वचनों को पूरा करके अपने चरित्र को तो गरिमा दी ही, साथ-ही-साथ राम को भी गरिमायुक्‍त आचरण करने को प्रेरित किया। दशरथ ने क्षुद्रता दिखाई होती तो राम के लिए महान् बनना कठिन हो जाता। अयोध्या नरेश के सामने बड़ी विकट समस्या थी। उन्हें वचन भी निभाना था और प्रेम भी। दोनों एक-दूसरे के विरोधी थे। वचन निभाने का अर्थ था, राम के प्रति प्रेम को हृदय से निकाल फेंकना और प्रेम निभाने का अर्थ था, वचन के सत्य-संकल्प से चूक जाना। उन्होंने दोनों किए। कैकेयी को दिये गये वचन को भी निभाया और राम के वियोग में प्राण त्यागकर प्रेम को भी निभाया।

The Author

Rajendra Arun

मॉरीशस में पं. राजेन्द्र अरुण ‘रामायण गुरु’ के नाम से जाने जाते हैं। उनके अथक प्रयत्न से सन् 2001 में मॉरीशस की संसद् ने सर्वसम्मति से एक अधिनियम (ऐक्ट) पारित करके रामायण सेण्टर की स्थापना की। यह सेण्टर विश्‍व की प्रथम संस्था है, जिसे रामायण के आदर्शों के प्रचार के लिए किसी देश की संसद् ने स्थापित किया है। पं. राजेन्द्र अरुण इसके अध्यक्ष हैं। 29 जुलाई, 1945 को भारत के फैजाबाद जिले के गाँव नरवापितम्बरपुर में जनमे पं. राजेन्द्र्र अरुण ने प्रयाग विश्‍‍वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्‍त करने के बाद पत्रकारिता को व्यवसाय के रूप में चुना। सन् 1973 में वह मॉरीशस गये और मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमन्त्री डॉ. सर शिवसागर रामगुलाम के हिन्दी पत्र ‘जनता’ के सम्पादक बने। उन्होंने वहाँ रहते हुए ‘समाचार’ यू.एन.आई. और ‘हिन्दुस्तान समाचार’ जैसी न्यूज एजेंसियों के संवाददाता के रूप में भी काम किया। सन् 1983 से पं. अरुण रामायण के कार्य में जुट गये। उन्होंने नूतन-ललित शैली में रामायण के व्यावहारिक आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया है। रेडियो, टेलीविजन, प्रवचन और लेखन से वे अपने शुभ संकल्प को साकार कर रहे हैं।

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