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"नृत्यकला में सौंदर्य का विशेष महत्त्व है। भाव और रस के आश्रय से उत्पन्न सौंदर्य की अनुभूति केवल कलाकार ही नहीं करता, अपितु दर्शक भी करते हैं। वैसे तो नृत्य का प्रत्येक तत्त्व सौंदर्य की अनुभूति से अनुप्राणित है, किंतु नर्तक जब नृत्य की रचनाओं को अंग-भंगिमाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करता है, तो सामान्य सा दिखने वाला सौंदर्य द्विगुणित हो जाता है।
इस पुस्तक में राजा चक्रधर सिंहजी द्वारा रचित रचनाओं में निहित सौंदर्य-बोध को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है, जिससे कथक नृत्य, विशेष रूप से रायगढ़ घराने की इस नृत्य-शैली के विकास का नवीन अध्याय प्रारंभ होगा, ऐसी आशा है।"