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भारत में उपनिवेशवाद और राष्ट्रवाद के इतिहास को ‘राज से स्वराज’ में लिपिबद्ध किया गया है। साथ ही इस पुस्तक में कुछ सैद्धांतिक प्रश्नों पर भी विचार किया गया है। भारत की गुलामी की कहानी जितनी दर्दनाक और हृदय-विदारक है, उतना ही रोमांचकारी है इसका स्वतंत्रता संग्राम। अपने अद्वितीय नेतृत्व-क्षमता, गौरवमयी गाथा और अहिंसक वैचारिक आधार के चलते भारत की आजादी की लड़ाई इतिहासकारों का ध्यान बरबस आकर्षित करती रही है।
यह पुस्तक मूलतः स्नातक और स्नातकोत्तर कक्षाओं के लिए उच्चस्तरीय और प्रामाणिक पाठ्यपुस्तक के रूप में प्रकाशित की गई है। यह लेखक के जीवनपर्यंत शोध, अध्ययन और अध्यापन की निष्पत्ति है। इस विषय पर उपलब्ध पुस्तकों से इसे कुछ अलग रखने का प्रयास किया गया है। इसमें घटनाक्रम के स्थान पर विषयानुकूल लेखन पद्धति को अपनाया गया है। साथ ही, इसमें आधुनिक भारत के इतिहास के हर पहलू और पक्ष पर गंभीरता से विचार किया गया है। अपनी रोचक शैली, संप्रेषण की सहजता और भाषा प्रवाह के चलते यह पुस्तक पठनीय-माननीय बन गई है।
अंग्रेजी में इस पुस्तक के अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। पाठकों की माँग पर इसका हिंदी का यह संवर्द्धित-परिवर्द्धित संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है। यह पुस्तक राजनीति विज्ञान तथा आधुनिक भारत के इतिहास के छात्रों के साथ-साथ सामान्य पाठकों के लिए भी समान रूप से उपयोगी साबित होगी।
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अनुक्रम
प्राक्कथन—v
विशेष संस्करण के लिए लेखक के दो शब्द—vii
भाग एक : कुछ सैद्धान्तिक अवधारणाएँ
1. पूँजीवाद/पूँजीवादी व्यवस्था—3
2. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद—14
3. साम्राज्यवाद के प्रमुख सिद्धान्त—22
4. नव-उपनिवेशवाद—33
5. उत्तर-उपनिवेशवाद/उत्तर उपनिवेशवाद?—39
6. राष्ट्रवाद—47
7. भारत में उपनिवेशवाद और राष्ट्रवाद : इतिहास लेखन की विभिन्न दृष्टियाँ—58
भाग दो : भारत में अंग्रेजी राज की स्थापना और विभिन्न क्षेत्रों में उसका प्रभाव
8. अंग्रेजों की भारत पर विजय—73
9. ब्रिटिश राज का भारत की कृषि व्यवस्था पर प्रभाव—95
10. ब्रिटिश राज और भारत के हस्तशिल्प एवम् उद्योग-धंधे—102
11. अंग्रेजी राज की शिक्षा नीति : विकास और प्रभाव—109
12. अंग्रेजी राज में संवैधानिक विकास—118
13. भारतीय समाज की संरचना : औपनिवेशिक जानकारी के विभिन्न चरण—130
14. ब्रिटिश राज की चुनौती : भारत की जवाबी कार्रवाई—147
15. सामाजिक-धार्मिक सुधारवादी आन्दोलन—162
16. भारत में राष्ट्रवाद का उदय—168
17. भारत में उपनिवेशी राज : एक लेखा-जोखा—173
भाग तीन : राष्ट्रीय आन्दोलन की मुख्य धारा
18. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना—181
19. उदारवादी और राष्ट्रीय आंदोलन में उनकी भूमिका—187
20. बंग-भंग और स्वदेशी आन्दोलन—197
21. उग्रवादी और उनका राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान—204
22. होम रूल आन्दोलन—214
23. लखनऊ समझौता—219
24. खिलाफत आन्दोलन—224
25. असहयोग आन्दोलन—230
26. स्वराज पार्टी—236
27. साइमन कमीशन—242
28. नेहरू रिपोर्ट—247
29. सविनय अवज्ञा आन्दोलन और दांडी मार्च—252
30. गाँधी-इरविन समझौता (1931)—260
31. गोलमेज बैठक (1930-34)—265
32. कम्युनल अवार्ड (अगस्त 1932)—269
33. भारत छोड़ो आन्दोलन (1942-45)—278
34. भारत की आजादी की लड़ाई में महात्मा गाँधी की भूमिका—285
भाग चार : राष्ट्रीय आन्दोलन की कनिष्ठ धाराएँ
35. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और कम्युनिस्ट पार्टी—297
36. कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी और राष्ट्रीय आन्दोलन—303
37. किसान आन्दोलन और स्वतंत्रता संग्राम—312
38. मजदूर आन्दोलन और भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन—318
39. आदिवासी आन्दोलन और भारत का स्वतंत्रता संग्राम—324
40. राष्ट्रीय आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका—330
41. राष्ट्रीय आन्दोलन में पिछड़े और दलित वर्गों की भूमिका—337
42. भारत के रजवाड़े और राष्ट्रीय आन्दोलन—345
भाग पाँच : राष्ट्रीय आन्दोलन और सशस्त्र विद्रोह के विभिन्न प्रयास
43. राष्ट्रीय आन्दोलन और सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन—353
44. गदर पार्टी और राष्ट्रीय आन्दोलन—361
45. क्रान्तिकारी आन्दोलन (1925-1934) और राष्ट्रीय आन्दोलन—368
46. आजाद हिन्द फौज और भारत का स्वतंत्रता संग्राम—376
भाग छ : भारत : स्वतंत्रता और विभाजन की ओर
47. क्रिप्स मिशन (मार्च-अप्रैल 1942)—383
48. कैबिनेट मिशन योजना (1946)—389
49. माउंटबेटन योजना और भारत का विभाजन—396
50. भारत में इस्लामी अलगाववाद : एक ऐतिहासिक सर्वेक्षण—402
51. भारत का विभाजन : विवाद के मुख्य बिन्दु—411
52. राष्ट्रीय आन्दोलन की देन—420
भारत में अंग्रेजी राज : प्रमुख घटना-क्रम—427
Select Bibliography —429
Index—437
रामचंद्र प्रधान एक जाने-माने समाजशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में उन्होंने लगभग चार दशकों तक अध्यापन का कार्य किया है। उन्हें सीनियर फुलब्राइट फेलोशिप और इंडो-कनाडियन शास्त्री फेलोशिप भी प्राप्त हैं। अपनी कई विश्व यात्राओं के दौरान उन्होंने अनेकों चिंतकों के साथ परिसंवाद किया है। वे इंस्टीट्यूट फॉर गांधियन स्टडीज, वर्धा में अवैतनिक अध्यापन का काम करते हैं। आजकल वे भारतीय समाजवादी आंदोलन पर विस्तृत शोधकार्य में संलग्न हैं।