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राजस्थान में कहानी को ‘वात’ नाम से भी जाना जाता है। वात के साथ ‘ख्यात’ नाम भी प्रचलन में है। कुछ जातियों का काम ही कहानियाँ सुनाना रहा। इन्हें बड़वाजी, रावजी अथवा बारैठजी कहते हैं, जो कहानियाँ सुनाने की एवज में यजमानों से मेहनताना स्वरूप नेग प्राप्त करते।
कहानी का मजा पढ़ने में नहीं, उसके सुनने तथा सुनाने में है। सुनाई जानेवाली कहानियाँ ही अधिक रसमय लगती हैं। राजस्थान में कहानी-कथन की चार शैलियों में कथा-कथन, कथा-वाचन, कथा-गायन तथा कथा-नर्तन जैसी शैलियाँ प्रमुख रही हैं। कहानी चाहे कोई कहता हो, उसका हुंकारा अवश्य दिया जाता है। सुनने वालों में से किसी के द्वारा हुंकारा ‘हूँ’ कहकर दिया जाता है। हुंकारा देनेवाले को ‘हुंकारची’ कहते हैं। हुंकारा कहानी में जान लाता है और उसकी कथन-रफ्तार को बनाए रखता है।
अत्यंत अजीबोगरीब तथा मीठी-मजेदार लगनेवाली ये लोककथाएँ निराश जीवन में आशा का संचार करती हैं तो कर्मशील बने रहने का जागरण देती हैं। ज्ञान का भंडार भरती हैं तो कल्पनाओं के कल्पतरु बन हमारी उत्सुकता और जिज्ञासा को शंखनाद देकर सवाया बनाती हैं।
इन लोककथाओं में हास्य है तो विनोद भी; व्यंग्य है तो रुदन भी; जोश है तो उत्साह भी; सीख है तो उपदेश भी; कर्तव्य के प्रति समर्पण है तो मर-मिटने का जज्बा भी। इनके माध्यम से बच्चे अपनी स्मरणशक्ति, कल्पनाशक्ति और विचारशक्ति का संचयन करते हैं। शुद्ध सात्त्विक एवं शुचितापूर्वक जीवन-निर्वाह के लिए आध्यात्मिक अनुशासन एवं अंतर्मन में उजास भरते हैं।
महेंद्र भानावत
राजस्थान, उदयपुर के छोटे से गाँव कानोड़ में 13 नवंबर, 1937 को जन्म।
डॉ. भानावत ने देश के विभिन्न प्रांतों में भ्रमण कर वहाँ की कलाधर्मी जातियों, लोकानुरंजनकारी प्रवृत्तियों, जनजाति सरोकारों तथा कठपुतली, पड़, कावड़ जैसी विधाओं पर खोजपूर्ण लेखन कर सौ से अधिक प्रकाशन दिए हैं। लोककला, रंगायन, ट्राइब, रंगयोग, पर्यटन दिग्दर्शन, पीछोला, सुलगते प्रश्न जैसी शोध पत्रिकाओं का संपादन करने के साथ ही डॉ. भानावत ने कई समाचार-पत्रों में स्तंभकार के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। देश की 500 से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में उनके दस हजार से अधिक आलेख छप चुके हैं।
साहित्यवारिधि, लोककला मनीषी, सृजन विभूति, लोकसंस्कृति रत्न, श्रेष्ठकला आचार्य जैसे सम्मानों, स्वर्ण-रजत पदकों से सम्मानित डॉ. भानावत राजस्थान की संगीत नाटक अकादमी, राजस्थानी साहित्य भाषा, साहित्य संस्कृति अकादमी, जवाहर कलाकेंद्र, पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के सदस्य एवं फेलो रह चुके हैं।
निवास : 352, श्रीकृष्णपुरा, सेंटपॉल स्कूल के पास, उदयपुर-313001
मोबाइल : 9351609040