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महात्मा गांधी ने बाबू अनुग्रह नारायण सिंह के लिए कहा था, ‘‘1917 से अनुग्रह बाबू मेरे सब कामों में साथ देते आए हैं। उनका त्याग हमारे देश के लिए गौरव की बात है। उनमें आडंबर नहीं है। वे सब कामों को ईमानदारी से करते हैं। सांप्रदायिक एकता में उनका उतना ही विश्वास है, जितना मेरा।’’
वे ऋषि-राजनेता थे। उनके निधन पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने उचित ही कहा था, ‘‘आधुनिक समय में ऐसे बहुत थोड़े लोग हुए हैं, जिनके प्रति बिहार उतना ऋणी रहा हो, जितना कि अनुग्रह बाबू के प्रति। वे बिहार के अग्रगण्य निर्माताओं में थे और वर्षों तक बिहार को उनका नेतृत्व मिला। बिहार की भूमि के इस महान् पुत्र के प्रति इस राज्य की जनता ऋणी है।’’
यह दुर्योग ही है कि हमारी संसदीय राजनीति स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों और लोकतंत्र के उद्देश्यों से निरंतर विपन्न होती जा रही है। ऐसे में यह पुस्तक ‘राजनीति और नैतिकता’ हमें अपने मूल्यों, सपनों और संघर्षों की बार-बार याद दिलाने का एक बेहद गंभीर और संवेदनशील प्रयास है। इसके जरिए अनुग्रह बाबू को तनिक और करीब तथा बेहतर ढंग से जानना संभव होगा। साथ ही राष्ट्रभाव को समर्पित उस समूची पीढ़ी, उसकी राजनीति और उसके जीवन-दर्शन को समझने में भी यह प्रयास सहायक सिद्ध होगा।
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अनुक्रम
दो शद — 7
भूमिका — 9
अनुग्रह बाबू का जीवन : हैं दिए हुए मेरे प्रमाण — 17
अनुग्रह बाबू का लेखन : लिखे और जिए का अभेद — 32
1. मेरे श्रीबाबू — 45
2. युगपुरुष महात्मा गांधी — 48
3. गांधीजी के सच्चे अनुयायी : राजेंद्र बाबू — 52
4. चेतना की लहर — 55
5. संशय के क्षण — 60
6. गया कांग्रेस — 64
7. कौंसिल-प्रवेश का प्रश्न — 70
8. नमक-सत्याग्रह — 74
9. किसान आंदोलन — 81
10. प्रथम कांग्रेसी मंत्रिमंडल — 86
11. पदत्याग — 93
12. सत्याग्रह — 100
13. हिंदी का अपेक्षित दृष्टिकोण — 106
14. सरदार पटेल — 110
15. मंगल पांडे — 114
16. बिहार और 1857 की जनक्रांति — 120
17. महाराजा कुँवर सिंह — 131
18. राजा अमर सिंह — 148
19. राजनीति और नैतिकता — 154
20. राष्ट्रभाषा हिंदी — 158
21. हमारे बजट की रूपरेखा — 164
जीवन क्षणभंगुर भव राम-राम! — 175
जन्म : 12 फरवरी, 1982।
शिक्षा : पटना विश्वविद्यालय से स्नातक एवं स्नातकोत्तर।
शोधकार्य : ‘प्रेमचंद के समग्र लेखन के परिप्रेक्ष्य में उनके आरंभिक लेखन (1901-1915) का महत्त्व’ विषय पर पी-एच.डी. उपाधि। ‘नवजागरणकालीन हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित साहित्येतर विज्ञापनों का अध्ययन’ तथा ‘प्रेमचंद की कहानियों
के हिंदी-उर्दू पाठ का तुलनात्मक अध्ययन’ विषय पर यूजीसी की लघु शोध परियोजना हेतु शोध-कार्य।
प्रकाशन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख-शोधालेख प्रकाशित। ‘प्रेमचंद का सोजे-वतन’ व ‘हिंदी विज्ञापनों का पहला दौर’ पुस्तकें प्रकाशित। ‘अनामा’ त्रैमासिक का संपादन। ‘बिहार पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2008’ के निर्माण में भागीदारी। बिहार राज्य के स्कूलों के लिए हिंदी विषय की पाठ्य-पुस्तकों एवं पाठ्य-सामग्री का निर्माण। पटना विश्वविद्यालय एवं नालंदा खुला विश्वविद्यालय के विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए पाठ्य-सामग्री का निर्माण।
संप्रति : हिंदी विभाग, ओरिएंटल कॉलेज पटना सिटी, पटना।
संपर्क : भगवती कॉलोनी, हाजीपुर-844101 (वैशाली)।
दूरभाष : 9934260232
इ-मेल : parthdot@gmail.com