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शब्द भी गरमी और ठंडक का एहसास देते हैं। कम समय में भवेश चंद ने अपनी प्रतिभा के बल पर अच्छी दूरी तय की है, लेकिन पत्रकारों के लिए कभी आसान रहा भी नहीं यह सफर। उस पर पत्रकार व्यंग्य लेखक हो जाए तो आप उसके शब्द सामर्थ्य का अंदाजा लगा सकते हैं। खास तौर से राजनीतिक विषयों पर लिखना एक बेहतर समझदारी से गुजरना है। इस किताब में ज्यादातर व्यंग्य राजनीतिक हैं। इसकी खासियत यह कि ये कहीं से भी बोझिल नहीं हैं और आप बीच में छोड़कर पन्ना पलटने का मन नहीं बना सकते। शब्द बाँधे रखते हैं और अंतिम पूर्णविराम तक आपको पहुँचाते हैं। हर दिन की बड़ी या चर्चित खबर की इतनी बारीक समझ कम पत्रकारों में दिखती है, जितनी यहाँ है। खबर के एनालिसिस से आगे की चीज है खबर पर व्यंग्य लिखना।
‘राजनीतिकबात-बेबात’ पुस्तक समय की नब्ज पर हाथ रखने की तरह है और समय की गरमाहट महसूस करने व कराने में समर्थ है। लेखक की मुट्ठी में जो समय है, वह बालू की तरह नहीं है। हाँ, ये व्यंग्य पढ़ते हुए आपको एहसास होगा कि क्या शब्द भी गरम और ठंडे होते हैं? आप कई व्यंग्य पढ़ते हुए महसूस करते हुए इसका जवाब पा सकेंगे। बिहार की राजनीति पर लिखते वक्त ऐसे शब्दों का प्रयोग बहुत सँभलकर करना होता है, लेखक ने सँभलकर लिखा है। उन्होंने शब्द हिसाब से खर्च किए हैं। तराशे हुए शब्द, चमकते शब्द और अँधेरे को दूर करते शब्द। इसमें आप बिहार की राजनीतिक उथल-पुथल भी महसूस कर सकते हैं और शासक के मिजाज से लेकर मनमानी तक को निशाने पर लेते हुए देख
सकते हैं।
—डॉ. प्रणय प्रियंवद
युवा कवि एवं पत्रकार
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अनुक्रम | 51. हम तो सामाजिक न्याय के दायरे से बाहर हैं —Pgs. 112 |
आभार —Pgs. 7 | 52. मयमुक्त बिहार और भययुक्त बिहार —Pgs. 114 |
1. वक्तव्य —Pgs. 13 | 53. और अब पेशे खिदमत है, राजनीतिमुक्त बिहार —Pgs. 116 |
2. तू मुझे सुना, मैं तुझे सुनाऊँ अपने डर की कहानी —Pgs. 14 | 54. समाजवाद और वामपंथ का सुलहनामा पढि़ए —Pgs. 118 |
3. बलवान तो वक्त है... 16 | 55. नशा शराब में होता तो नाचती बोतल —Pgs. 120 |
4. साधुनो येन गतः पंथा —Pgs. 18 | 56. छलकने वाला जाम, सरकने वाला जाम —Pgs. 122 |
5. आओ जाति-जाति खेलें —Pgs. 20 | 57. धक्का लगा है, ड्राइवर को दोष क्यों दे रहे हो? —Pgs. 124 |
6. घर-घर में मयस्सर हैं, आज दो-दो चिराग —Pgs. 22 | 58. नियोजन सिर्फ परिवार का ही नहीं होता —Pgs. 126 |
7. पार्ट टाइम और रिटायर्ड हर्ट खिलाड़ी के बीच मैच —Pgs. 24 | 59. यह आपकी नेमत नहीं, हमारी किस्मत है —Pgs. 128 |
8. आग्रह पूर्व का नहीं होगा, जो भी होगा, ताजा होगा —Pgs. 26 | 60. कोई बच्चा भी बड़ा काम कर जाता है —Pgs. 130 |
9. विशेष दर्जा माँगने से नहीं, छीनने से मिलता है —Pgs. 28 | 61. हे लाल! आपका हार्दिक स्वागत है —Pgs. 132 |
10. नेताजी का आंदोलन उर्फ अनाज बचाओ अभियान —Pgs. 30 | 62. माफ करना बेटी, गलती तुम्हारी नहीं —Pgs. 134 |
11. बड़े-बड़े आंदोलनों में छोटी-छोटी चूक... 32 | 63. किन-किन कारणों से डूबती है नाव, बताएँ? —Pgs. 136 |
12. चोरी छोटा काम है, नियम के अनुसार डकैती करो —Pgs. 34 | 64. खून में तेरी मिट्टी, मिट्टी में तेरा खून —Pgs. 138 |
13. अलहदा प्यार, एक-दूसरे में खो जानेवाला... 36 | 65. कितना उचित होगा मसूरी की वादियों को कसूरवार कहना —Pgs. 140 |
14. संग्रहालयों में मची नारों की आपाधापी —Pgs. 38 | 66. आपको मिला पड़ोस में ताक-झाँक का आधिकारिक अधिकार —Pgs. 142 |
15. सीजन गया, चलिए लॉलीपॉप खाते हैं... 40 | 67. बड़े पटनायक अमर रहें, छोटे पटनायक जिंदाबाद —Pgs. 144 |
16. एक-दूसरे को मारना पड़े तो...हैं तैयार हम —Pgs. 42 | 68. गंगा मैया आपने कोटे का खयाल क्यों नहीं रखा? —Pgs. 146 |
17. लोकल दुकानदार को दी कॉरपोरेट ने टक्कर —Pgs. 44 | 69. सच-सच बताना प्यारे बाँध, आखिर तुम टूटे कैसे? —Pgs. 148 |
18. राम-राम...नेताजी! नेताजी राम-राम... 46 | 70. हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी —Pgs. 150 |
19. अब गिरा, तब गिरा...यह क्या...अटक गया —Pgs. 48 | 71. बाढ़ और सुखाड़ के बाद बिहार में आई तीसरी आपदा —Pgs. 152 |
20. यही मौका है आइए, भाव खाते हैं —Pgs. 50 | 72. हमें गरीबी का गिला है, मगर आप कोई शिकवा न करना —Pgs. 154 |
21. मेरे पास माँ है... 52 | 73. जितनी शानदार सर्जिकल स्ट्राइक, उतनी ही जानदार रिटर्न —Pgs. 156 |
22. परदे में रहने दो, परदा न उठाओ —Pgs. 54 | 74. प्रस्ताव पारित किया जाता है कि आप बोलने से बाज न आएँ —Pgs. 158 |
23. जारी है... विभीषणों की सूची का पुनरीक्षण —Pgs. 56 | 75. हे भगवान! इस सपने को सच न होने देना —Pgs. 160 |
24. योग, योग ही होगा या योगफल भी आएगा —Pgs. 58 | 76. राजा ने भोज दिया, प्रजा ने चटखारे लिये —Pgs. 162 |
25. आप ही बताइए, सही पकड़े हैं...कि नहीं —Pgs. 60 | 77. शराब चीज ही ऐसी है न छोड़ी जाए —Pgs. 164 |
26. नेताजी गढ़ रहे शब्दों की नई परिभाषा —Pgs. 62 | 78. आइए, आप भी अपना कीमती मशविरा दीजिए —Pgs. 166 |
27. खुद का कार्ड और अपनी ही रिपोर्ट —Pgs. 64 | 79. हाथ-में-हाथ डाल लें तो हैरत में मत पडि़ए —Pgs. 168 |
28. बाकी है राजनीति के सर्कस का आखिरी सीन —Pgs. 66 | 80. सोनम तुम इकलौती बेवफा नहीं हो —Pgs. 170 |
29. वाइड और नो बॉल का बड़ा ही महत्त्व है —Pgs. 68 | 81. नए साल पर सरकार ला रही है नसबंदी का कानून —Pgs. 172 |
30. मुझे पता है, डी.एन.ए. यानी डेवलपमेंट नॉट अलाउड —Pgs. 70 | 82. हे ईश्वर मुझे आप इतने नाम देना कि... —Pgs. 174 |
31. थोड़ी सी तो लिफ्ट करा दे, थोड़ी सी तो लिफ्ट फँसा दे —Pgs. 72 | 83. नेताजी मानते हैं कि नोटबंदी से होगा नसबंदी जैसा हाल —Pgs. 176 |
32. भैंस तो बेचारी है, वह कहाँ से पटक पाएगी —Pgs. 74 | 84. रिश्ते में तो हम उनके समधी लगते हैं, नाम है... —Pgs. 178 |
33. मुलायम...यह मत कहिए कि नाम में क्या रखा है! —Pgs. 76 | 85. सुनो, सुनो, सुनो...बाल छिला लो और कान भी छिदवा लो —Pgs. 180 |
34. धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और समाजवादी भी होता है दूध —Pgs. 78 | 86. चेहरे के चक्कर में हम तो हुए घनचक्कर —Pgs. 182 |
35. राजनीति के छायावाद का नया यथार्थवाद यही तो है —Pgs. 80 | 87. और भी गम हैं जमाने में सामाजिक न्याय के सिवा —Pgs. 184 |
36. कल तक तारीख उपेक्षित थी, अब समय अपेक्षित आ गया —Pgs. 82 | 88. मिट्टी को भी पता नहीं चला, कहाँ से खुदी, कहाँ पर चिपकी —Pgs. 186 |
37. बहुत बड़ी कला है, हवा से बातें करना —Pgs. 84 | 89. मुन्ना, मेरी बात आखिर तुम्हें कब समझ में आएगी? —Pgs. 188 |
38. निशान बदलेगा, नाम भी बदला तो नामोनिशान... 86 | 90. वैकेंसी निकली है, जल्दी से फॉर्म भर दीजिए —Pgs. 190 |
39. चलो, अपने प्रदेश में असहिष्णुता खोजें —Pgs. 88 | 91. अब पूरा देश देखेगा अपने जुगाड़ का दम —Pgs. 192 |
40. हमें खुद पर गुमान है, आप भी करिए —Pgs. 90 | 92. अपने हिस्से का माल बटोरना कभी भी इनकम नहीं कहलाता —Pgs. 194 |
41. हम दोषी किसको कहें तुम्हारे वध का? —Pgs. 92 | 93. अपने समाज की बदौलत ही हम राजनैतिक हुए हैं जनाब! —Pgs. 196 |
42. गर्व से कहो मैं पी.एम. मटीरियल हूँ —Pgs. 94 | 94. राय साहब! हम सबने आपको बहुत मिस किया —Pgs. 198 |
43. राजा भी होता है, मैन ऑफ द सिस्टम —Pgs. 96 | 95. हे सम्राट्! इस दफा किसने आपका दिल दुःखा दिया —Pgs. 200 |
44. भगवान् का दिया सबकुछ है मेरे पास —Pgs. 98 | 96. किसान माने हॉकी और क्रिकेट तो पहले से है ही कॉरपोरेट —Pgs. 202 |
45. शुक्र है, हम देहाती ज्यादा हैं और शहरी बहुत कम —Pgs. 100 | 97. जी.एस.टी. के सिर्फ मायने जानिए, कोई मतलब न निकालिए —Pgs. 204 |
46. घोर कलयुग, राष्ट्रपति से शासन करने को कहा जा रहा —Pgs. 102 | 98. अपनी तो यह आदत है कि हम कुछ नहीं कहते —Pgs. 206 |
47. मुखियाजी अब एम.पी. बननेवाले हैं —Pgs. 104 | 99. बेनिफिट ऑफ सहानुभूति अब तो बटोर ही ले जाएँगे भैया —Pgs. 208 |
48. ...मगर चप्पल चोरों की भी तो सुनिए —Pgs. 106 | 100. मध्यस्थता ही करवानी थी तो बँगलादेश को क्यों चुना? —Pgs. 210 |
49. तोहमत न लगा मेरे तोहफे पे... 108 | 101. चंदन विष व्यापत है, जब लिपटे रहत भुजंग —Pgs. 212 |
50. तुम मुझे शराब दो, मैं तुम्हें विकास दूँगा —Pgs. 110 | 102. शानदार पटकथा हो, तभी बनती है सुपर-डुपर फिल्म —Pgs. 214 |
भवेश चंद
जन्म : 01 मार्च, 1979
शिक्षा : पत्रकारिता में स्नातकोत्तर।
संप्रति : हिंदुस्तान, पूर्णिया में संपादकीय प्रभारी।
लेखन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानियाँ और व्यंग्य प्रकाशित।
कार्यानुभव : दैनिक जागरण, अमर उजाला और दैनिक भास्कर के संपादकीय विभाग में विभिन्न पदों पर कार्य किया। कई शोधपरक खबरें प्रकाशित।
पता : गाँव बासुदेवपुर, पोस्ट कोरिया, जिला बेगूसराय (बिहार), पिन-851127
मो. : 9771419111
इ-मेल :
bhaweshchand@gmail.com