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"कला ईश्वर की पोती है और पुत्री'। कला सभी का वरण नहीं करती, और जिसे वरण करती है, उसे विलक्षण बना देती है, असाधारण बना देती है। 'राम विराजे रंगों में' की प्रणेता डॉ. (श्रीमती) रूपलेखा चौहान के हृदय की धड़कन मधुबनी चित्रकला है। इस कला को डॉ. चौहान ने बचपन से ही अपने कल्पनालोक में पुष्पित और पल्लवित किया है। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने पूरे समर्पण और साधना के साथ इस कला को फलित किया है।
'राम विराजे रंगों में' शीर्षक से प्रणीत यह पुस्तक श्रीरामचरितमानस के आख्यान के आधार पर श्रीराम के जीवन पर बालकांड से लेकर उत्तरकांड तक विभिन्न प्रसंगों पर मधुबनी शैली में बने सजीव और प्रेरक चित्रों का सुसज्जित दस्तावेज है। यों तो प्रत्येक चित्र अपनी गाथा स्वयं कहता है. लेकिन चित्रों के साथ दिए गए वर्णन ने चित्रों को सार्थक, सरल और सर्वग्राही बना दिया है। मधुबनी चित्रकला की अनूठी शैली में बने अनेकानेक चित्र पुस्तक की गरिमा और महिमा को प्रतिपादित करते हैं तथा धर्म, समाज और आध्यात्मिकता की शिक्षा देते हैं।
श्रीराम भारत के जनमानस में स्थापित हैं। उनका जीवन भारतीयों को उच्चतम आदर्शों की प्रेरणा देता है। समस्त चित्र डॉ. चौहान के मधुबनी शैली चित्रकला के प्रति समर्पण और श्रीराम के प्रति अनुराग की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति हैं। श्रीराम निश्चित ही इस पुस्तक को कालजयी बनाएँगे।"