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तुलसीकृत ‘रामचरितमानस’ भारतीयों के गले का हार है, आदर्श व अनुकरणीय है। रामचरितमानस में स्थापित आदर्शों का अनुसरण होता है। रामचरितमानस के धीरोदात्त नायक राम का जीवन तो भारतीयों के लिए एक आदर्श जीवन है। वे एक आदर्श मित्र, आदर्श भाई, आदर्श पुत्र, आदर्श शिष्य, आदर्श प्रजापालक एवं आदर्श राजा थे। उनके द्वारा स्थापित रामराज्य आज भी भारत का राष्ट्रीय लक्ष्य है, जिसे हमें प्राप्त करना है।
‘रामचरितमानस’ विश्व का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य ही नहीं है, यह व्यक्ति के लिए एक आचरण-संहिता भी है, जिसके प्रत्येक पृष्ठ पर जीवन-निर्माण के सूत्र सुसज्जित हैं। आजकल के पाठक को सरल रूप से पढ़ने और आसानी से समझने के लिए इसे नाट्य रूप में प्रस्तुत किया गया है।
पृष्ठभूमि को यथारूप में रखने के लिए एक नए पात्र ‘रमायणी’ की अवधारणा की गई है, जो रामलीला के मंचन के समय अनिवार्य रूप से उपस्थित रहता है।
आशा है, यह कृति दृश्य एवं श्रव्य प्रसार माध्यमों द्वारा जन-जन तक पहुँचेगी तथा असंख्य लोग इस कृति से अनमोल मोती ग्रहण करके अपने जीवन को सफल बनाकर समाज को समुन्नत करने में अपना योगदान देंगे।
मॉरीशस में पं. राजेन्द्र अरुण ‘रामायण गुरु’ के नाम से जाने जाते हैं। उनके अथक प्रयत्न से सन् 2001 में मॉरीशस की संसद् ने सर्वसम्मति से एक अधिनियम (ऐक्ट) पारित करके रामायण सेण्टर की स्थापना की। यह सेण्टर विश्व की प्रथम संस्था है, जिसे रामायण के आदर्शों के प्रचार के लिए किसी देश की संसद् ने स्थापित किया है। पं. राजेन्द्र अरुण इसके अध्यक्ष हैं। 29 जुलाई, 1945 को भारत के फैजाबाद जिले के गाँव नरवापितम्बरपुर में जनमे पं. राजेन्द्र्र अरुण ने प्रयाग विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद पत्रकारिता को व्यवसाय के रूप में चुना। सन् 1973 में वह मॉरीशस गये और मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमन्त्री डॉ. सर शिवसागर रामगुलाम के हिन्दी पत्र ‘जनता’ के सम्पादक बने। उन्होंने वहाँ रहते हुए ‘समाचार’ यू.एन.आई. और ‘हिन्दुस्तान समाचार’ जैसी न्यूज एजेंसियों के संवाददाता के रूप में भी काम किया। सन् 1983 से पं. अरुण रामायण के कार्य में जुट गये। उन्होंने नूतन-ललित शैली में रामायण के व्यावहारिक आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया है। रेडियो, टेलीविजन, प्रवचन और लेखन से वे अपने शुभ संकल्प को साकार कर रहे हैं।