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रामदरश मिश्र के कथा साहित्य के केंद्र में मनुष्य है, उसकी पीड़ा दुःख कथा है। मनुष्य की चिंता लगभग सभी कहानियों में देखी जा सकती है। यह मनुष्य गाँव का, नगर का अथवा महानगर का है। लेखक ने गाँव भी देखा है, नगर तथा महानगर भी। उसके जीवन के अनुभव व्यापक हैं। मनुष्य तथा उसके साथ जुड़े हुए सुख-दुःख लेखक को भीतर तक विचलित करते हैं। वह व्यक्ति की पीड़ा सिर्फ भावनात्मक स्तर पर ही अनुभव नहीं करता, बल्कि पीड़ा कैसे दूर की जा सकती है, इस पर भी विचार करता है। यही मानवीय चेतना श्री मिश्र को मनुष्य के साथ गहराई से जोड़ती है। वे समयगत सच्चाई से जूझते हैं। इसी कारण समय, परिवेश और उसका यथार्थ प्रामाणिकता तथा ईमानदारी के साथ उनकी कहानियों में उभरता है।
—डॉ. गुरचरण सिंह
जन्म : 15 अगस्त, 1924 को गोरखपुर जिले के डुमरी गाँव में।
रचना-संसार : ‘पानी के प्राचीर’, ‘जल टूटता हुआ’, ‘सूखता हुआ तालाब’, ‘अपने लोग’, ‘रात का सफर’, ‘आकाश की छत’, ‘आदिम राग’, ‘बिना दरवाजे का मकान’, ‘दूसरा घर’, ‘थकी हुई सुबह’, ‘बीस बरस’, ‘परिवार’, ‘बचपन भास्कर का’ (उपन्यास); ‘खाली घर’, ‘एक वह’, ‘दिनचर्या’, ‘सर्पदंश’, ‘बसंत का एक दिन’, ‘इकसठ कहानियाँ’, ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’, ‘अपने लिए’, ‘चर्चित कहानियाँ’, ‘श्रेष्ठ आंचलिक कहानियाँ’, ‘आज का दिन भी’, ‘एक कहानी लगातार’, ‘फिर कब आएँगे?’, ‘अकेला मकान’, ‘विदूषक’, ‘दिन के साथ’, ‘मेरी कथा-यात्रा’ (कहानी-संग्रह) के अलावा बीस काव्य-संग्रह, पाँच ललित निबंध, दो आत्मकथा, दो यात्रा-वृत्तांत, तीन डायरी के अलावा 11 पुस्तकें समीक्षा की; 14 खंडों में रचनावली प्रकाशित।
सम्मान-पुरस्कार : दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान, शलाका सम्मान, भारत भारती सम्मान, व्यास सम्मान, महापंडित राहुल सांकृत्यायन सम्मान, उदयराज सिंह स्मृति सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, रामविलास शर्मा सम्मान, राष्ट्रीय साहित्य पुरस्कार (इंदौर)।