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अगर आपको एक ही पुस्तक में भारत के अध्यात्म-दर्शन और प्रख्यात भारतीय दार्शनिकों के विचारों का अध्ययन करना है तो यह पुस्तक आपके लिए ही है।
विद्वान् लेखक मैक्स मूलर ने चैतन्य महाप्रभु, गुरु नानक, स्वामी दयानंद सरस्वती, राजा राममोहन राय ,रामकृष्ण परमहंस, केशवचंद्र सेन आदि विभूतियों के दर्शन के समानांतर चलते हुए भारतीय वेदांत दर्शन को कसौटी पर कसकर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। ।
लेखक ने संन्यासी एवं संत, साधना एवं योग और ब्राह्मणवाद के परिप्रेक्ष्य में लोगों की जिज्ञासाओं को पूर्णरूपेण तुष्ट करने का सफल प्रयास किया है और समस्त अनुत्तरित प्रश्नों का समाधान किया है । यह पुस्तक हर आयु वर्ग के पाठक के लिए बेहद उपयोगी है ।
फ्रेडरिक मैक्स मूलर का जन्म 6 दिसंबर, 1823 को जर्मनी में हुआ था । वह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी करते थे । वर्ष 1859 में उनका विवाह जिओर्जिना एडीलेड ग्रीनफेल से हुभा । उनकी विशेषता थी कि वे सबसे बड़े विदेशी भारतविद् के रूप में जाने जाते थे । उन्हें हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी व जर्मन भाषाओं पर समान अधिकार था । मैक्समूलर काफी हद तक रामकृणा परमहंस से प्रभावित थे । उन्होंने वेदों का भी अनुवाद किया । उन्होंने वेद और भारतीय चिंतन, दर्शन पर अनेक पुस्तकें लिखीं । 28 अक्तूबर, 1900 को उनका निधन ऑक्सफोर्ड में हुआ ।