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"दुर्गावत् तेजस्विनी दुर्गावती, चंदेल राजपूतों के वंशावतंस की वह अग्नि-शलाका जिसने अपने शूरतागर्भित बुद्धिचातुर्य से शेरशाह सूरी जैसे महापराक्रमी शासक को भी भस्मसात कर दिया था। जिसने चुगलों के बल पर शासन करने वाले बर्बर आक्रांता, मुगलों को, एक बार नहीं अनेक बार धूल चटायी थी। जिसको सूर्य ने तपन, अग्नि ने तेज, विद्युत ने तड़पन, श्री ने सौंदर्य, शशि ने शीतलता, मराल ने विवेक और स्वयं रुद्राणी ने ओज प्रदान किया था।
अकेले गोंडवान ही क्या, संपूर्ण भारत के इतिहास में दुर्गावती ही एकमात्र ऐसा नाम है, जिसे अकबर जैसे धूर्तों से लोहा लेने वाली ऐसी बला के रूप में जाना जाता है, जो पराक्रमी शूरवीरता की मशाल के साथ विकासोन्मुखी, संपन्न और समर्थ राज्य के शासनिक कौशल और प्रबंधपटुता की अक्षमालिका के रूप में भी सुमिरी जाती है।"
आचार्य देवेन्द्र देव
शिक्षा : एम.ए. (संस्कृत), विद्या वाचस्पति।
कृतित्व : विश्व में सर्वाधिक पंद्रह महाकाव्यों, यथा ‘बांग्लात्राण’, ‘राष्ट्र-पुत्र यशवंत’, ‘कैप्टन बाना सिंह’ (सैन्य-वीरों पर), ‘गायत्रेय’ (पं. श्रीराम शर्मा आचार्य), ‘युवमन्यु’ (स्वामी विवेकानंद), ‘ब्रह्मात्मज’ (नैमिषपीठाधीश्वर स्वामी नारदानंद), ‘हठयोगी नचिकेता’, ‘बलि-पथ’ (डॉ. हेडगेवार), ‘इदं राष्ट्राय’ (गुरु गोलवलकर), ‘अग्नि-ऋचा’ (डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम), ‘लोकनायक’, ‘लौहपुरुष’, ‘शंख महाकाल का’ (पं. श्रीकृष्ण ‘सरल’) और ‘बिरसा मुंडा’ एवं ‘पं. रामप्रसाद बिस्मिल’ (क्रांतिक विभूति) के अतिरिक्त गीतों, गजलों, छंदों, समसामयिक एवं बाल-कविताओं के ढाई दर्जन से अधिक संग्रह, लेख, कहानियाँ, संस्मरण, काव्यानुवाद एवं संस्कृत कविताएँ प्रकाशित/प्रकाशनाधीन।
देश-विदेश के प्रतिष्ठित चतुविंशाधिक सम्मानों से अलंकृत।