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भारत की रोप ट्रिक ने पूरे विश्व को असमंजस में डाला हुआ है । आज भी मेले- ठेलों में भारतीय कलाकार जादू-टोनों और बाजीगरी के अद्भुत कारनामों से परंपरागत लोक-विज्ञान की परिपाटी को सजीव रखे हुए हैं। डुगडुगी बजाता हुआ मदारी कठौती में आम और अदृश्य गंगा की धार निर्मित करता हुआ अपनी आजीविका कमाता है । जिज्ञासु बालमन में ये सभी करतब कौतूहल की वृद्धि करते रहते हैं और बालक सदा गुरुजनों एवं पुस्तकों से इनका उत्तर पाने के लिए लालायित रहता है ।
यह पुस्तक रसायन विज्ञान से संबंधित तथ्यों को उजागर कर यह बताने का सार्थक प्रयास है कि विचित्र खेल-तमाशे जादू-टोने नहीं, बल्कि वैज्ञानिक तथ्यों को हाथ की सफाई के द्वारा दर्शकों के सामने प्रस्तुत करने का एक मनोहारी तरीका है । पुस्तक के माध्यम से अंधविश्वास, जादू-टोना और ठगी के कारनामों का परदाफाश तो होगा ही, साथ ही बच्चों का ज्ञानवर्धन तथा विज्ञान के प्रति रुचि भी बढ़ेगी । बच्चे व वयस्क घर बैठे कोई-न-कोई वैज्ञानिक प्रयोग करने के लिए सदा प्रेरित होंगे । और कौन ऐसा व्यक्ति होगा, जो अपने ड्राइंगरूम में रंग- बिरंगा काँच का बगीचा न उगाना चाहेगा?
लेखिका ने प्रारंभिक शिक्षा होशंगाबाद (म.प्र.) से ग्रहण कर सन् 1967 में जबलपुर विश्वविद्यालय से रसायनशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की । इनका शोध-प्रबंध ' राजस्थान मरुभूमि के पादपों का रासायनिक परीक्षण-केर (डेले )के विशेष संदर्भ में ' उल्लेखनीय है ।
विगत सत्ताईस वर्षों से रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन में महत्त्वपूर्ण शोधकार्यों में संलग्न हैं । विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित इनके शोध पत्रों पर आधारित सारगर्भित लेख हिंदी में विज्ञान के प्रचार-प्रसार हेतु सराहनीय हैं ।
उभरती हिंदी विज्ञान लेखिका को उत्कृष्ट लेखन के लिए अनेक राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है । विज्ञान परिषद् प्रयाग द्वारा प्रदत्त डॉ. गोरख प्रसाद (प्रथम पुरस्कार 1986), डॉ. रत्नकुमारी स्मृति व्याख्यान ( 1992), केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद् का प्रथम महिला पुरस्कार ( 1995) एवं राजभाषा कार्यान्वयन समिति का पुरस्कार इनमें प्रमुख हैं ।
संप्रति : रक्षा प्रयोगशाला, जोधपुर में वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर कार्यरत तथा विभाग की गृह पत्रिक '? रग ' के संपादन से संबद्ध ।