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‘‘महापुरुषों के जीवन और यश की स्मृति, जनसाधारण के चित्त पर उनका प्रभाव और जातीय चरित्र-गठन में उनके द्वारा प्रवर्तित आदर्शों की अनुप्राणना राष्ट्र के लिए अमूल्य संपत्ति और शक्ति का झरना है। उनका चिंतन, विचार और आलोचना, जाति (राष्ट्र) में नित्य नवीन उद्दीपन, उत्साह और सजीवता उत्पन्न करती है। इन पुण्यस्थलों पर जीनवदायिनी जाह्नवी में अवगाहन को किसका मन नहीं चाहेगा।’’
—पं. दीनदयाल उपाध्याय
(राष्ट्रीयता का पुण्य-प्रवाह)
जन्म : उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ (अब बागपत) अंतर्गत ग्राम खेकड़ा के संभ्रांत, सुशिक्षित, समाजसेवी, जमींदार वैष्णव परिवार में।
शिक्षा : हिंदी, अंग्रेजी एवं शिक्षा विषयों में स्नातकोत्तर तथा शोधार्थी।
पद/दायित्व : पूर्व प्राचार्य; निदेशक, ब्यूरो ऑफ टैक्स्ट बुक्स; सदस्य, हिंदी अकादमी, दिल्ली; राष्ट्रीय महासचिव, अखिल भारतीय साहित्य परिषद्।
प्रकाशन : हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा में एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।
संप्रति : स्वान्त: सुखाय स्वाध्याय एवं स्वतंत्र लेखन।