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जन्म से महान् नहीं होता मनुष्य। कर्म उसे महानता के शिखर पर ले जाते हैं। ऐसा ही एक कर्मयोगी था, जिसने सत्य की शक्ति और अहिंसा के
शस्त्र से पूरी दुनिया को प्रभावित किया। ब्रिटिश हुकूमत को झुका दिया। उसने एक मानव से महात्मा तक की लंबी यात्रा तय कर डाली। दुनिया
उसे ‘बापू’, ‘महात्मा’ और ‘राष्ट्रपिता’ कहने लगी। अगर उसने स्वयं मना न किया होता तो ईश्वर की तरह उसकी पूजा भी की जाने लगती।
रघुपति राघव राजा राम।
पतित पावन सीता राम॥
काठियावाड़ का पोरबंदर— जहाँ करमचंद गांधी (जिन्हें कबा गांधी के नाम से भी पुकारा जाता था) के घर 2 अक्तूबर, 1869 के दिन
एक बालक का जन्म हुआ। उसका नाम रखा गया मोहनदास गांधी।
—इसी पुस्तक से
हिंदी के प्रतिष्ठित लेखक महेश शर्मा का लेखन कार्य सन् 1983 में आरंभ हुआ, जब वे हाईस्कूल में अध्ययनरत थे। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी से 1989 में हिंदी में स्नातकोत्तर। उसके बाद कुछ वर्षों तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए संवाददाता, संपादक और प्रतिनिधि के रूप में कार्य। लिखी व संपादित दो सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाश्य। भारत की अनेक प्रमुख हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक विविध रचनाएँ प्रकाश्य। हिंदी लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अनेक पुरस्कार प्राप्त, प्रमुख हैंमध्य प्रदेश विधानसभा का गांधी दर्शन पुरस्कार (द्वितीय), पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलाँग (मेघालय) द्वारा डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति पुरस्कार, समग्र लेखन एवं साहित्यधर्मिता हेतु डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान, नटराज कला संस्थान, झाँसी द्वारा लेखन के क्षेत्र में ‘बुंदेलखंड युवा पुरस्कार’, समाचार व फीचर सेवा, अंतर्धारा, दिल्ली द्वारा लेखक रत्न पुरस्कार इत्यादि।
संप्रति : स्वतंत्र लेखक-पत्रकार।