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शिक्षा-प्रणाली में परिवर्तन की बात करना हमारे देश में एक फैशन-सा बन गया है; किंतु आश्चर्य है कि स्वाधीन भारत साठ वर्षों में ब्रिटिश शासकों द्वारा प्रवर्तित शिक्षा-प्रणाली में रंच मात्र भी मौलिक परिवर्तन नहीं कर पाया। अंग्रेजी शिक्षा-प्रणाली के विरुद्ध हमारी लड़ाई उसी दिन से प्रारंभ हो गई थी जिस दिन से इस प्रणाली का बीज भारत की धरती में बोने का प्रयास किया गया था। वस्तुत:, अंग्रेजी शिक्षा-प्रणाली से छुटकारा पाना और राष्ट्र्रीय शिक्षा-प्रणाली का आविष्कार करना हमारे स्वातंत्र्य आंदोलन की मूल प्रेरणाओं में से एक प्रमुख प्रेरणा रही है। इसलिए ब्रिटिश दासता के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई के साथ-साथ राष्ट्रीय शिक्षा की खोज की दिशा में भी अनेक प्रयोग प्रारंभ किए गए। डी.ए.वी. आंदोलन, गुरुकुल काँगड़ी आंदोलन, शांतिनिकेतन की स्थापना, बंग-भंग विरोधी आंदोलन के समय राष्ट्रीय विद्यालयों की शृंखला का जन्म, असहयोग आंदोलन के समय विद्यापीठों का उद्भव, बेसिक शिक्षा, अरविंद आश्रम का विद्यालय आदि-आदि अनेकानेक प्रयोग ऐसे मनीषियों के द्वारा आरंभ किए गए, जिनकी बौद्धिक एवं संगठनात्मक क्षमता आज के स्वयंभू नेताओं एवं विचारकों की तुलना में कई गुना अधिक थी। इनके आदर्शवाद की गहराई की तह तक पहुँच पाना हम पिग्मियों के लिए लगभग असंभव है। राष्ट्रीय शिक्षा के इन प्रयोगों का क्या हुआ? क्या वे सचमुच अंग्रेजी शिक्षा-प्रणाली का युगानुकूल विकल्प बन पाए? क्या वे कहीं भी राष्ट्रीय शिक्षा का नमूना खड़ा कर पाए हैं?
प्रस्तुत है इस पुस्तक में इन प्रयोगों का आलोचनात्मक अध्ययन, ताकि उसके आलोक में स्वाधीन भारत युगानुकूल शिक्षा-प्रणाली विकसित कर सके।
जन्म 30 मार्च, 1926 को कस्बा कांठ (मुरादाबाद) उ.प्र. में। सन. 1947 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से बी.एस-सी. पास करके सन् 1960 तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता। सन् 1961 में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. (प्राचीन भारतीय इतिहास) में प्रथम श्रेणी, प्रथम स्थान। सन् 1961-1964 तक शोधकार्य। सन् 1964 से 1991 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज में इतिहास का अध्यापन। रीडर पद से सेवानिवृत्त। सन् 1985-1990 तक राष्ट्रीय अभिलेखागार में ब्रिटिश नीति के विभिन्न पक्षों का गहन अध्ययन। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् के ‘ब्रिटिश जनगणना नीति (1871-1941) का दस्तावेजीकरण’ प्रकल्प के मानद निदेशक। सन् 1942 के भारत छोड़ाा आंदोलन में विद्यालय से छह मास का निष्कासन। सन् 1948 में गाजीपुर जेल और आपातकाल में तिहाड़ जेल में बंदीवास। सन् 1980 से 1994 तक दीनदयाल शोध संस्थान के निदेशक व उपाध्यक्ष। सन् 1948 में ‘चेतना’ साप्ताहिक, वाराणसी में पत्रकारिता का सफर शुरू। सन् 1958 से ‘पाञ्चजन्य’ साप्ताहिक से सह संपादक, संपादक और स्तंभ लेखक के नाते संबद्ध। सन् 1960 -63 में दैनिक ‘स्वतंत्र भारत’ लखनऊ में उप संपादक। त्रैमासिक शोध पत्रिका ‘मंथन’ (अंग्रेजी और हिंदी का संपादन)।
विगत पचास वर्षों में पंद्रह सौ से अधिक लेखों का प्रकाशन। अनेक संगोष्ठियों में शोध-पत्रों की प्रस्तुति। ‘संघ : बीज से वृक्ष’, ‘संघ : राजनीति और मीडिया’, ‘जातिविहीन समाज का सपना’, ‘अयोध्या का सच’ और ‘चिरंतन सोमनाथ’ पुस्तकों का लेखन।