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एक युग से आँसुओं, नारों, माँगों और फोटू कमेटी की बरसात हो रही थी। कल गरमी के बावजूद संसद् के एयरकंडीशन से कलेजे में ठंडक लिये वैसे ही मुसकराई देश की संसदीय महिलाएँ, जैसे कभी मुसकराती थीं टूथपेस्ट बेचनेवाली महिलाएँ। आखिर पेश हो गया राज्यसभा में संविधान संशोधन 108वाँ विधेयक। इसमें संसद् और विधानसभा में आबादी के 50 प्रतिशत को 33 प्रतिशत रिजर्वेशन मिल सकेगा।
चाणक्य कहते हैं, कहते हैं या नहीं पता नहीं, क्योंकि स्तंभकार ने चाणक्य का अर्थशास्त्र नहीं पढ़ा है, लेकिन छोटी बात को बड़ी बनाने के लिए बड़े लोगों का नाम लेना चाहिए। इसीलिए चाणक्य कहते हैं कि कुछ भी लिखने के पहले सोच-समझ लेना चाहिए। सोच-समझ के लेखन का मतलब होता है कि लिखने के पहले सोचा ही न जाए। जन्म बीत जाए सोचते-सोचते। लेखन तो बस साप्ताहिक मुद्रास्फीति लेखन है कि बस प्रतिशत बढ़ाते या घटाते जाना लिखना भर होता है। फिर भी इस स्तंभकार ने बाकायदा खोजबीन की। ब्रेकिंग-न्यूज के बकवासी खतरों और टीवीयाना बहसों की सिरदर्द के बावजूद खबरिया चैनलों को देख गया। रंगीन विज्ञापनों से भरे अगर-मगर-लेकिन-परंतु वाले प्रिंट मीडिया को पढ़कर चश्मे का नंबर बढ़ गया। इंटरनेटीय सर्च इंजनों को झाँक गया, जहाँ एक विषय पर लाखों भड़ासी जानकारियाँ होती हैं। तब जाकर समझ में आया कि शोध-अनुसंधान के लिए विषय का होना जरूरी होता है। अब तक सारी खोजबीन बिना विषय के हो रही थी। विषय भी तय कर लिया गया—देश और गांधीजी के तीन बंदर का व्यावहारिक संबंध।
जुगनू शारदेय वरिष्ठ पत्रकार माने जाते हैं, क्योंकि उनका पहला लेख ओम प्रकाश दीपक के संपादन में ‘जन’ में 1968 में छपा था। ‘जन’ के कारण कुछ जान-पहचान बढ़ी और ‘दिनमान’ में 1969 में पहला लेख छपा। 1971 में ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ में भी छपने लगे। ‘धर्मयुग’ में पहला लेख 1972 में छपा। फिर तो दोस्तों ने माना कि जुगनू शारदेय चेक के लिए ही लिखते हैं। इसके अलावा उन्हें कुछ आता भी नहीं। 1978 के आसपास जंगलों का शौक शुरू हुआ। फिल्मकारिता, टेलीविजनकारिता के साथ तरह-तरह के पापड़ बेलते रहे। इन दिनों पटना में रहकर लैपटॉप पर शब्दों का पापड़ बेचते हैं। जंगल के शौक पर किताब ‘मोहन प्यारे का सफेद दस्तावेज’ लिख बैठे, जिसे पर्यावरण और वन मंत्रालय ने हिंदी में मौलिक लेखन के लिए मेदिनी पुरस्कार के योग्य माना। भाषा की जलेबी के अलावा इसमें कुछ भी मौलिक नहीं था। तरह-तरह के अनुवाद किए। नाम बस एक में छपा।
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